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विधि-विधान से पूजी गईं देवी कात्यायनी

वासंतिक नवरात्र के छठवें दिन रविवार को आदि शक्ति के छठवें स्वरूप मां कात्यायनी विधि पूर्वक पूजा की गई। इस दौरान देवी पाठ एवं मंत्रों से घर और आंगन गुंजायमान रहे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Apr 2021 03:27 PM (IST)Updated: Sun, 18 Apr 2021 03:27 PM (IST)
विधि-विधान से पूजी गईं  देवी कात्यायनी
विधि-विधान से पूजी गईं देवी कात्यायनी

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : वासंतिक नवरात्र के छठवें दिन रविवार को आदि शक्ति के छठवें स्वरूप मां कात्यायनी विधि पूर्वक पूजा की गई। इस दौरान देवी पाठ एवं मंत्रों से घर और आंगन गुंजायमान रहे। घंटा-घड़ियाल की गगनभेदी आवाज से पूरा वातावरण भी देवीमय हो गया है। लाकडाउन घोषित होने से मंदिरों में भक्तों की संख्या कम देखी गई। दर्शन पूजन करने के बाद लोग मंदिर पर रुकने के बजाए घर के लिए रवाना हो जा रहे थे।

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कथा के अनुसार भगवती दुर्गा देवताओं को कार्य सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई और कात्यायनी के नाम से विख्यात हुई। इनका स्वरूप भव्य, दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। माता के चार भुजाओं में दाहिनें ओर के ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है और वाहन शेर है। मौसम के तल्ख तेवर से देवी भक्तों की दिक्कतें बढ़ गई हैं। नौ दिनों तक अनुष्ठान एवं व्रत रहने वाले भक्त प्यास से व्याकुल हैं। बावजूद इसके भक्तों की आस्था इस पर भारी पड़ रही है। रविवार को सुबह से ही घरों में देवी की आराधना शुरू हुई। पूजन सामग्री से सजी थाल, नारियल, चुनरी के साथ भक्त विधि-विधान से पूजन- अर्चन कर रहे थे। आदि शक्ति के एक झलक पाने के लिए लोग आतुर दिखे। नगर के घोपइला माता मंदिर सहित गोपीगंज स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर, काली देवी मंदिर, कबूतरनाथ मंदिर आदि स्थानों पर पुजारी ने आरती की।

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आज पूंजी जाएगीं कालरात्रि

- वासंतिक नवरात्र में सातवें दिन सातवें देवी कालरात्रि के दर्शन- पूजन किए जाते हैं। भगवती के इस रूप में संहार की शक्ति है। मृत्यु अर्थात काल का विनाश करने की शक्ति भगवती में होने के कारण इनको कालरात्रि के रूप में पूजा गया। इनके शरीर का रंग एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। इनकी नासिका के श्वांस- प्रश्वांस से अग्नि की ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है।


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