अनुदान की नर्सरी में पोषित होंगे मत्स्य बीज
मत्स्य पालकों को बेहतर मछली का उत्पादन हासिल हो, उन्हें मत्स्य बीच को पोषित करने के लिए अनुदान देकर नर्सरी बनवाई जाएगी। पहले नर्सरी में मत्स्य बीज को डालकर उन्हें बड़ा किया जाएगा। इसके बाद उन्हें तालाब में छोड़ा जाय। ताकि वह तेजी के साथ विकास कर सके तो पालकों को अधिक उत्पादन हासिल हो सके।
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : मत्स्य पालकों को बेहतर मछली का उत्पादन हासिल हो, उन्हें मत्स्य बीच को पोषित करने के लिए अनुदान देकर नर्सरी बनवाई जाएगी। पहले नर्सरी में मत्स्य बीज को डालकर उन्हें बड़ा किया जाएगा। इसके बाद उन्हें तालाब में छोड़ा जाय। ताकि वह तेजी के साथ विकास कर सके तो पालकों को अधिक उत्पादन हासिल हो सके। मत्स्य उत्पादन क्षमता का विकास योजना के तहत दस हेक्टेयर क्षेत्रफल में नर्सरी तैयार करने का लक्ष्य तय किया गया है। योजना का क्रियान्वयन शुरू कर दिया गया है।
दरअसल, मत्स्य पालन के व्यवसाय में लगे पालकों को तमाम मेहनत के बाद भी बेहतर उत्पादन नहीं हासिल हो पाता है। इसके पीछे कारण यह होता है कि कारण यह होता है कि तालाब में छोड़े जाने वाले अधिकतर मत्स्य बीज (छोटे बच्चों) को या तो बड़ी मछलियां खा जाती हैं या फिर उनका उचित बढ़वार नहीं हो पाता। इससे उत्पादन कम हो जाता है। इसे देखते हुए शासन स्तर से तालाब में छोड़ने के पहले मत्स्य बीज को अलग से नर्सरी में पोषित करने की योजना तैयार की है। सहायक निदेशक मत्स्य पारस ¨सह ने बताया कि जिले में दस हेक्येटर क्षेत्रफल में नर्सरी तैयार करने का लक्ष्य तय किया गया है। बताया कि मत्स्य पालकों का चयन कर लिया गया है। उनके यहां इसे क्रियान्वित कराने की कवायद भी शुरू कर दी गई गई है।
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क्या होगा नर्सरी का स्वरूप
- मत्स्य निदेशक ने बताया कि जैसे एक हेक्टेयर के तालाब के लिए नर्सरी तैयार करनी है तो तालाब के एक बटे दस भाग को बांध बनाकर अलग कर लिया जाएगा। इसमें ही मत्स्य बीज को डालकर तैयार किया जाएगा। करीब एक माह तक उन्हें पोषित करने के बाद जब वह 25 एम.एम के लगभग हो जाएगी तब तालाब में छोड़ा जाएगा। इससे वह तेजी के साथ विकास करेंगी। इसके साथ ही वह इस समय तक तेजी के साथ भागने में भी सफल हो जाती हैं तो बड़ी मछलियां उन्हें आसानी से पकड़कर खा भी नहीं पाती। बताया कि एक हेक्टेयर के तालाब के लिए नर्सरी को तैयार करने सहित उसमें मत्स्य बीज डालने, उनके लिए फीड (दाना) से लेकर अन्य व्यवस्था में 50 हजार रुपये की लागत आएगी। इसमें आधी धनराशि पालकों को लगानी होगी तो आधी अनुदान के रूप में उनके खाते में दिया जाएगा।