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पशुपालकों के लिए बेहतर व्यवसाय होगा बत्तख पालन

जिस तरह अंडों की खपत व मांग देखी जा रही है उसे देखते हुए बत्तख पालन लाभ का धंधा साबित हो सकता है। विशेषकर पशुपालन व मत्स्य पालन कर रहे लोग साथ में बत्तख पालन कर लाभ उठा सकते हैं। जरा सी मेहनत की तो अंडे व मांस उत्पादन से उनकी माली हालत सुधरते देर नहीं लगेगी। मौजूदा समय में अंडा एक प्रमुख खाद्य पदार्थ में शुमार हो चुका है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Nov 2018 05:12 PM (IST)Updated: Wed, 07 Nov 2018 09:01 PM (IST)
पशुपालकों के लिए बेहतर व्यवसाय होगा बत्तख पालन
पशुपालकों के लिए बेहतर व्यवसाय होगा बत्तख पालन

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : जिस तरह अंडों की खपत व मांग देखी जा रही है उसे देखते हुए बत्तख पालन लाभ का धंधा साबित हो सकता है। विशेषकर पशुपालन व मत्स्य पालन कर रहे लोग साथ में बत्तख पालन कर लाभ उठा सकते हैं। जरा सी मेहनत की तो अंडे व मांस उत्पादन से उनकी माली हालत सुधरते देर नहीं लगेगी। मौजूदा समय में अंडा एक प्रमुख खाद्य पदार्थ में शुमार हो चुका है। ऐसे में बत्तख पालन कर अंडे के उत्पादन को बेहतर व्यवसाय के रूप में खड़ा किया जा सकता है।

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कृषि विज्ञान केंद्र बेजवां के पशु चिकित्सा विशेषज्ञ डा. जीके चौधरी ने बत्तख फालन (डक फार्मिंग) के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि जलभराव वाले क्षेत्रों मत्स्य पालन के साथ इसका पालन करना बेहद लाभकारी होता है। बताया कि एक हजार बत्तख की फार्मिंग से होने वाले अंडे के उत्पादन से माह भर में करीब 75 हजार रुपये तक की बचत मिल सकती है। बताया कि मत्स्य पालन के साथ बत्तख का पालन करने से एक फायदा तो यह होता है कि उन्हें पानी मिल जाता है साथ ही वह पानी में मिलने वाले कीड़े मकोड़े व घोंघे व जलीय पौधों को अपना आहार बना लेती हैं। इससे उन्हें खिलाने में आने वाले खर्च की बचत हो जाती है।

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कौन है उत्तम प्रजाति

- बत्तख पालन में मांस उत्पादन के लिए व्हाइट पै¨कग व अंडा उत्पादन के लिए खाकी कैबेल उत्तम प्रजाति होती है। अंडे इन प्रजातियों में जहां मांस उत्पादन वाले बत्तख 40 से 45 दिन में दो से ढाई किलो के तैयार हो जाते हैं तो 120 दिन में अंडे देना शुरू कर देती हैं। एक बत्तख से प्रति वर्ष लगभग तीन सौ अंडे प्राप्त किया जा सकता है।

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पशुओं में नहीं फैलता लीवर फ्लू

- पशुओं में पेट संबंधी लीवर फ्लू का बीमारी अधिक होती है। बत्तख पालन से इस बीमारी के फैलने का खतरा कम हो जाता है। डा. चौधरी ने बताया कि लीवर फ्लू का स्केल वाहक घोंघा की होता है। जिस पानी में घोंघे रहते हैं उसके सेवन से पशुओं में यह बीमारी ज्यादा फैलती है। ऐसे में जब बत्तख रहेंगे व घोघें को अपना आहार बनाएंगे तो पशुओं में मंडराने वाला लीवर फ्लू का खतरा कम हो जाएगा।

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अधिक होती है रोग प्रतिरोधक क्षमता

- बत्तख में मुर्गियों की अपेक्षा रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इस लिहाज से इनके प्रबंधन के लिए भी ज्याता व्यवस्था नहीं करनी पड़ती। छाएदार एक कमरे में इन्हें रखा जा सकता है। डा. चौधरी ने बताया कि इनके पालन के लिए तालाब जरूरी नहीं हैं ¨कतु इतना पानी अवश्य रहना चाहिए जिससे यह अपनी गर्दन डुबा सकें। बताया कि जब यह पानी में गर्दन डुबाते रहते हैं तो इनमें आंख संबंधी रोग नहीं होता। पानी के अभाव में आंख की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है।


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