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इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ही संभव है मुक्ति का मार्ग

दुग्धेश्वरनाथ मंदिर छरदही में श्रीमद्भागवत कथा

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 11:54 PM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 11:54 PM (IST)
इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ही संभव है मुक्ति का मार्ग
इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ही संभव है मुक्ति का मार्ग

जागरण संवाददाता, कुदरहा, बस्ती: कुदरहा विकास क्षेत्र के बाबा दुग्धेश्वर नाथ मंदिर छरदही के परिसर में चल रहे नौ दिवसीय संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा में पंडित प्रदीप शास्त्री ने भागवत कथा का उद्देश्य बताया। कहा कि जीव के उद्धार के चार सूत्र परम आवश्यक होते हैं। जिसमें सबसे पहला सूत्र आसन पर विजय प्राप्त करना, दूसरा श्वांस पर विजय प्राप्त करना, तीसरा संग पर विजय प्राप्त करना और चौथा अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना है। मुक्ति के यह चार परम आवश्यक साधन हैं। मुक्ति के दो मार्ग होते हैं पहला सद्दौ मुक्ति और दूसरा क्रम मुक्ति। सद्दौ मुक्ति के मार्ग में घर द्वार, परिवार को छोड़कर के संत बनकर के भगवान को पाया जाता है। कर्म मुक्ति में घर द्वार परिवार के साथ रहकर, समय निकाल कर भगवान का भजन किया जाता है जिससे जीव का परम कल्याण होता है। आगे सृष्टि का वर्णन करते हुए महाराज ने बताया कि सबसे पहले भगवान के नाभि कमल से चतुर्मुखी ब्रह्मा से चार पुत्र सनक, सनन्दन सनातन और सनत कुमार उत्पन्न हुए। तत्पश्चात भगवान भोलेनाथ प्रगट हुए। उसके बाद 10 पुत्र मरीचि, अत्रि, आगिरस, पुलस्त्य, पुलह, कृतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष और नारद तथा ब्रह्मा के दाहिने अंग से महाराज मनु, बाएं अंग से महारानी शतरूपा का प्राकट्य हुआ। मनु और शतरूपा के नाम को जोड़ करके ही हम सब मनुष्य का प्राकट्य हुआ, यहीं से सृष्टि का विस्तार हुआ।

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यजमान दीपक दुबे, सुभाष चंद्र दुबे, नरेंद्र दुबे, राम ललित चौधरी, वीरेंद्र दुबे, हरि गोविद, दिवाकर चौधरी, मनोज दुबे, इंद्रजीत, हरिप्रसाद दुबे, बंटी सहित क्षेत्र के तमाम लोग उपस्थित रहे।


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