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मिले परदेशी पूर्वजों के वंशज तो भीग गईं आंखें

बस्ती: तुकुन पुत्र मुसई अपनी पत्नी मथुरा देवी व अपने छह माह के बच्चे के साथ 110 वर्ष पूर्व सोनहा तबक

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 10:50 PM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 10:50 PM (IST)
मिले परदेशी पूर्वजों के वंशज तो भीग गईं आंखें
मिले परदेशी पूर्वजों के वंशज तो भीग गईं आंखें

बस्ती: तुकुन पुत्र मुसई अपनी पत्नी मथुरा देवी व अपने छह माह के बच्चे के साथ 110 वर्ष पूर्व सोनहा तबके छपिया थाना क्षेत्र के धवाय गांव के दयालडीह से अंग्रेजों के साथ बतौर मजदूर दक्षिण अमेरिका के सूरीनाम चले गए थे। बाद में वहीं के होकर रह गए। उनके पौत्र आचार्य राम गोपाल तुकुन व रामनाथ तुकुन मंगलवार को अपने पूर्वजों का जन्म स्थान देखने पहुंचे। अपनों से मिलकर उनकी आंखें खुशी से छलछला गईं।

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आचार्य राम गोपाल तुकुन ने बताया कि उनके बाबा तुकुन पुत्र मुसई तीन भाई थे। वर्ष 1908 में तुकुन अपनी पत्नी व बच्चे के साथ पांच साल के कांट्रैक्ट पर कोलकाता से लालारुख पानी के जहाज से सूरीनाम के लिए रवाना हुए थे। मक्खू व राम दीहल गांव में ही रह गए थे। लंबी यात्रा के दौरान जहाज के तमाम यात्री बीमार हो गए व उनमें से बहुत लोगों की मौत भी हो गई। यहां तक कि तुकुन का बच्चा भी बीमारी से मर गया। बताया कि जो लोग मर गए उनके शवों को समुद्र में प्रवाहित कर दिया गया। सूरीनाम पहुंचने पर कांट्रैक्ट खत्म हो जाने के बाद भी तुकुन अपने देश वापस नहीं लौटे। वहां पर उनके पांच पुत्र ओरी तुकुन, रामदास तुकुन, राम पदार्थ तुकुन, महेश तुकुन, रामपति तुकुन व एक पुत्री रामकली पैदा हुई। बताया कि वर्ष 1969 में आखिरी बार उनके बाबा ओरी तुकुन अपने गांव आए थे। यहां से वे काफी खुशी के साथ सूरीनाम लौटे थे। दुर्भाग्य से उनकी मौत की बाद उनके सारे दस्तावेज भी गायब हो गए। आचार्य ने बताया कि वर्ष 1984 व 2017 में वह अपने भाई रामनाथ तुकुन के साथ बस्ती आए थे। काफी खोज के बाद भी वे अपने पूर्वजों का गांव नहीं खोज सके। निराश होकर रुधौली थाने से लौट गए थे। इस बार पूर्वजों की धरती देखने के लिए सोमवार को सोनहा थाना क्षेत्र के असनहरा पुलिस चौकी पर पहुंचे व चौकी प्रभारी दिलीप कुमार ¨सह से गांव के बारे में वार्ता की। उन्होंने मंगलवार को बुलाया। उसके बाद पूर्वजों का गांव व परिजनों को खोजने में सफलता मिली। गांव में पिता के स्वर्गीय भाई नीबर के बेटे रामसागर ने दिल खोलकर स्वागत किया। पूर्वजों की यादों को साझा किया। रामसागर ने बताया कि उन्होंने पिता नीबर से सुना था कि उसके बाबा तीन भाई थे, जिसमें से एक विदेश चले गए थे। रामदीहल के कोई औलाद नहीं थी। राम गोपाल व रामनाथ मार्च में परिवार के साथ वापस आने का वादा कर गए हैं।

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सात समुंदर पार ¨जदा है ¨हदी व भारतीय संस्कृति

आचार्य राम गोपाल तुकुन ने बताया कि भले ही वह लोग सूरीनाम में रहते हैं लेकिन उनका दिल भारत के लिए ही धड़कता है। बताया कि वह रोटरडैम शहर में स्थित प्रभाकर आर्य समाज मंदिर में पंडित का काम करते हैं। भारतीय संस्कृति की जानकारी के लिए वहां प्रत्येक शनिवार व रविवार को नियमित रूप से बच्चों को ¨हदी पढ़ाई जाती है। वह लोग घर में ¨हदी में ही बात करते हैं। ¨हदू पर्व पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाते हैं।


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