होनहार शिष्य से गुरु का आत्मीय जुड़ाव
यह सच है कि गुरु के बिना जीवन दिशाहीन है। शिष्य कची मिट्टी के समान है। तो गुरु वह शिल्पी जहां शिक्षा संस्कार शालीनता के सांचे में ढालकर व्यक्ति के सुंदर जीवन का निर्माण होता है। सुनहरे भविष्य की इबारत गढ़ने वाले गुरु ही होते हैं।
बस्ती : यह सच है कि गुरु के बिना जीवन दिशाहीन है। शिष्य कच्ची मिट्टी के समान है। तो गुरु वह शिल्पी जहां शिक्षा, संस्कार, शालीनता के सांचे में ढालकर व्यक्ति के सुंदर जीवन का निर्माण होता है। सुनहरे भविष्य की इबारत गढ़ने वाले गुरु ही होते हैं। इसीलिए वह सबसे श्रेष्ठ और आदर्श हैं। गुरु-शिष्य की परंपरा अनूठी है। प्रतिभा और तरक्की के मार्ग पर जब शिष्य शिखर को प्राप्त कर लेता है तभी गुरु को आत्म संतुष्टि मिलती है। गुरु और शिष्य सफलता पर दोनों में अवरिल और आत्मीय जुड़ाव सदा-सदा के लिए बन जाता है। बस्ती में भी शिक्षक कैलाश नाथ दुबे और शिष्य शिवम सिंह की एक दूसरे पर अमिट छाप है। शिवम जहां गुरु के आदर्शों पर चलकर आइईएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर लिए, वहीं शिक्षक कैलाश के प्रति आदर भाव उनके पूरे परिवार में अभी भी है। शिक्षक कैलाश नाथ दुबे कहते हैं कि हम जैसे साधारण लोगों के सफल होने का महज एक कारण ईमानदारी पूर्वक शिक्षण कार्य का निवर्हन करना है। सरकारी शिक्षक नहीं बन पाए तो कोई अफसोस नहीं हुआ। ठान लिया हम अपने निजी शिष्य बनाएंगे और उन्हें शिक्षा, संस्कार के अमृत खुराक से संवारेंगे। लगभग बीस साल के शैक्षिक सफर में कई शिष्यों के जीवन में निखार देखकर बहुत सुकून मिलता है। शिवम सिंह भी उन्हीं शिष्यों में से एक हैं। जब यह मेरे संपर्क में आए तब तक मेरे पास अपना विद्यालय हो गया था। कक्षा तीन में इनका दाखिला लिया। शिवम बचपन से ही मेधावी और गंभीर विद्यार्थी रहे। कक्षा दस तक मेरे यहां उसकी पढ़ाई हुई। हर परीक्षा में अच्छे मार्क्स आए। शिवम के अभिभावक भी मेरा सुझाव मानते रहे। हमें अटूट विश्वास है कि भविष्य में उसको बहुत बड़ा मुकाम मिलेगा। आइईएस परीक्षा में उत्तीर्ण जनपद के भेलवल ग्राम निवासी शिवम सिंह बड़े गर्व से अपनी सफलता का श्रेय गुरु कैलाशनाथ दुबे को देते हैं। कहा, हमारे जीवन की जड़ हैं गुरुजी। उन्होंने ही बचपन में हमें एक दिशा दी। सख्त शिक्षक के रूप में उन्होंने हमें सबसे पहले अनुशासित छात्र बनाया। पढ़ाई के प्रति उनकी सख्ती हमारे जीवन में रंग भरती गई। लयबद्ध होकर मेहनत के साथ हमने उनके सानिध्य में हाईस्कूल तक की पढ़ाई की। हमने गुरु के आदेश की अवहेलना कभी करने की चेष्टा ही नहीं की। पढ़ाई के दौरान विषयवार तैयारी पूरी होने पर गुरुजी शाबासी देते थे। खुद शालीन रहकर हमें भी शालीन और संस्कारित होने की हमेशा सीख दिए। आज भी उनका प्रभाव मेरे जीवन पर है। आइईएस में चयन हमारा एक पड़ाव है। अभी आइएएस बनने का लक्ष्य बाकी है।