कल के लिए बचा रहे बूंद-बूंद जल
जल है तो कल है। यह हकीकत जिसने जान ली है वही जलस्त्रोतों को संरक्षित कर सकेगा। बूंद-बूंद जल संरक्षण से ही भू-गर्भ का पानी बचेगा। जल संकट से निजात मिलेगी। इस हकीकत को आत्मसात किया है बस्ती सदर ब्लाक के नंदपुर गांव निवासी अनिल कुमार पांडेय ने। इन्होंने भू-गर्भ जल बचाने के लिए अपने खेतों में ड्रिप ¨सचाई प्रणाली लगा रखी है
बस्ती : जल है तो कल है। यह हकीकत जिसने जान ली है वही जलस्त्रोतों को संरक्षित कर सकेगा। बूंद-बूंद जल संरक्षण से ही भू-गर्भ का पानी बचेगा। जल संकट से निजात मिलेगी। इस हकीकत को आत्मसात किया है बस्ती सदर ब्लाक के नंदपुर गांव निवासी अनिल कुमार पांडेय ने।
इन्होंने भू-गर्भ जल बचाने के लिए अपने खेतों में ड्रिप ¨सचाई प्रणाली लगा रखी है।
उद्यान विभाग द्वारा चलाए जा रहे प्रधानमंत्री ¨सचाई योजना ड्रिप एरीगेशन ¨सचाई प्रणाली से अनिल पांडेय काफी प्रभावित हुए। ड्रिप ¨सचाई पद्धति और परंपरागत विधि में जमीन-आसमान का फर्क है। सामान्य विधि से खेत की ¨सचाई में पानी काफी बर्बाद होता है। ड्रिप सिस्टम में पानी का खर्च काफी कम होता है। फसल की जड़ तक पानी सीधे पहुंचता है। 90 फीसद पानी की बचत होती है। अर¨वद ने ढाई से तीन हेक्टेयर में आम की बाग लगाई है। उसकी ¨सचाई ड्रिप से करते हैं। खेत की ¨सचाई जल्दी हो जाती है। समय की भी बचत होती है। पांडेय कहते हैं कि जिस खेत में पानी लगाने में तीन से चार घंटे का समय लगता है उसी खेत में अब एक से डेढ़ घंटे में ¨सचाई हो जाती है। अन्य लोगों ने भी अपनाई है यह विधि
ड्रिप ¨सचाई सिस्टम से दुबौलिया के डा. वाईडी ¨सह, विक्रमजोत के कौशल ¨सह, पीतपुर के उबैदुर्रमान अपने खेतों की ¨सचाई करते हैं। इन लोगों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस विधि से ¨सचाई करने पर 30 से 35 मिनट में एक एकड़ की खेत की ¨सचाई हो जाती है। सामान्य खुले बो¨रग से 12 से 15 घंटे लगते थे। पानी की बचत, समय और डीजल का खर्च भी कम आता है। तकनीकी जानकार धर्मेंद्र चंद्र चौधरी बताते हैं कि एक घंटे में ड्रिप से 8 हजार लीटर पानी निकलता है, तो सामान्य विधि में एक घंटे में करीब 1 लाख लीटर पानी निकलता है। यह सिस्टम जल संरक्षण को बढ़ावा दे रहा है।