आपसी शत्रुता भूल जाते हैं शिवविवाह में शामिल होने वाले लोग
आपस में प्रेम से रहते हैं एक दूसरे के चिर शत्रु
बस्ती: नगर पंचायत के मथौली में आयोजित नौ दिवसीय संगीतमयी रामकथा के तीसरे दिन अयोध्या से आए संत अवधेश जी महाराज ने शिव विवाह के प्रसंग का वर्णन किया। कहा कि शिव बरात में शामिल होने वाले श्रद्धालु आपसी शत्रुता भूल जाते हैं। कहा कि भगवान शंकर की सवारी बैल है और माता पार्वती की सवारी शेर। शेर, बैल को कभी भी पा जाए तो उसको ग्रास बना सकता है, ¨कतु शिव दरबार में होने के कारण दोनों शत्रुता भूल बैठते हैं। इसी प्रकार शिवजी के गले में माला के रूप में सर्प सुशोभित होता है, और सर्प का सबसे बड़ा शत्रु मोर होता है मोर शिवजी के पुत्र काíतकेय का वाहन है। इसी तरह चूहा, सांप का प्रमुख आहार है और वह गणेश जी का वाहन है। यह सब आपसी कटुता भुलाकर एक साथ रहते हैं । शिव विवाह प्रसंग की चर्चा जहां भी हो उसमें अवश्य शामिल होना चाहिए। जिस व्यक्ति के शत्रु होते हैं वह शत्रुता भूल जाते हैं । कथा के द्वितीय सत्र में श्रीमदभागवत कथा का रसपान कराते हुए बालव्यास आनंद भूषण ने ध्रुव चरित्र की महिमा का वर्णन किया। मंच संचालन डा. एएम त्रिपाठी ने किया । यजमान राणा पाल, गजानन पाल, नवीन पाल, संजय पाल, संतोष पाल, रामनौकर शुक्ल, गोपाल शुक्ल, संजीव पाल, विपिन पाल, दिनेश पाल, मिथिलेश शास्त्री, अनिल शुक्ल, बैजूदास , रंजन कुमार, राजकुमार दास, लक्ष्मण दास, मंटू दास मौजूद रहे ।
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संसार में भरत जैसा भाई होना दुर्लभ
बस्ती: राष्ट्रीय एकता, विश्व शांति के परिप्रेक्ष्य में मानस प्रभा भवन में आयोजित श्रीराम चरित मानस सम्मेलन के 32 वें वर्ष के चौथे दिन पवनदास शास्त्री ने भरत चरित की चर्चा की। कहा कि संसार में भरत जैसा भाई होना दुर्लभ है। संसार में सत्ता के लिए संघर्ष होता है अयोध्या में राजगद्दी पर बैठने के लिए नहीं वरन गद्दी पर बैठाने का द्वंद है। शांति प्रिया और राधा भक्ति भारती ने माता सीता के त्याग का वर्णन करते हुए कहा कि सीता जी भक्ति हैं, उन्हें ज्ञात था कि हिरन सोने का नही है, फिर भी उन्होने श्रीराम जी से हठ किया। उन्होने धर्म रूपी लक्ष्मण के बचन और लक्ष्मण रेखा का भी उल्लंघन किया जिसके कारण सीता जी का हरण हुआ। सीता जी जानती थीं कि यदि वन में 14 वर्ष का समय व्यतीत कर लिया तो अवतार लेना व्यर्थ हो जाएगा । जगद्गुरू रामानन्दचार्य, राम दिनेशाचार्य ने कथा को विस्तार देते हुए कहा कि महाभारत के युद्ध में जब भगवान कृष्ण ने प्रतिज्ञा ले लिया कि मैं हथियार नहीं उठाऊंगा तो भीष्म ने भी प्रतिज्ञा कर ली कि केशव को शस्त्र उठाना ही पड़ेगा। अगले दिन के युद्ध में भीष्म ने अछ्वुत युद्ध करते हुये अर्जुन को मूíछत कर दिया। विचलित कृष्ण जब शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा तोड़ने लगे तो अर्जुन ने उन्हें स्मरण कराया। कृष्ण ने कहा जब मेरा भक्त कोई प्रतिज्ञा कर लेता है तो मेरा धर्म है मैं उसके प्रतिज्ञा की रक्षा करूं। भीष्म की प्रतिज्ञा न टूटने पाये इसलिए शस्त्र उठा लिया। संचालन आयोजक नरेंद्रनाथ शुक्ल ने किया। धनुष टूटते ही लगे श्री राम के जयकारे
दुबौलिया: दुबौलिया ब्लाक क्षेत्र के खुशहालगंज में चल रही रामलीला में तीसरे दिन धनुष यज्ञ, परशुराम लक्ष्मण संवाद की लीला प्रस्तुत की गई।
राजा जनक ने सीता के विवाह के लिए यज्ञशाला का आयोजन किया था। बलशाली राजा व योद्धा शिव धनुष हिला नहीं पाए तो मिथिला नरेश की निराशा भरी बात सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हो उठे। बोल पड़े सत्य वादी हरिश्चंद्र के वंशज, क्षत्रियों तथा रघुवंशी राजा दशरथ के पुत्रों का घोर अपमान है। यह दृश्य देखकर श्रद्धालु रोमांचित हो उठे। गुरु विश्वामित्र के आदेश पर शिव धनुष के पास पहुंचते ही राम ने पहले उसे प्रणाम किया। धनुष को उठाते ही तोड़ दिया। उसके बाद मां सीता ने प्रभु श्रीराम के गले में वरमाला डाल दी। धनुष टूटते ही प्रभु के जयकारों से रामलीला परिसर गूंज उठा। विजय शंकर ¨सह, अमर बहादुर, सुनील ¨सह, दिलीप ¨सह, विनोद ¨सह, हरीराम, जीत बहादुर, श्रीश ¨सह, तेजभान, प्रवीण,सोनू ¨सह, अमरपाल ¨सह, वीरेंद्र पाल ¨सह मौजूद रहे।