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खुदा की इबादत दे रही रमजान में ताकत

नौकरी के साथ कर रही घर का काम, रख रही रोजा

By JagranEdited By: Published: Fri, 25 May 2018 10:40 PM (IST)Updated: Fri, 25 May 2018 10:40 PM (IST)
खुदा की इबादत दे रही रमजान में ताकत
खुदा की इबादत दे रही रमजान में ताकत

बस्ती : पाक रमजान माह में रोजा रखकर दुआएं मांग रही महिला रोजेदार सरकारी ड्यूटी के साथ-साथ परिवार की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं। नौकरी के साथ सुबह सहरी व इफ्तार की भी व्यवस्था करनी पड़ रही है। कहती हैं यह सब रमजान माह की कृपा है। रोजा के साथ सरकारी कार्य को बखूबी निभाना इनकी दिनचर्या में शामिल है। रोजा में जो बंदिशें हैं, उसको निभाने में भले ही कठिनाइयां आ रहीं हो पर, इसको ताक पर रखकर पूरे मन से कार्य ही नहीं बच्चों की परवरिश भी करने में रोजेदार नहीं थक रही हैं। रोजा न सिर्फ पाबंदी और सब्र के बीच जीवन जीने का सलीका बताता है बल्कि अन्न जल त्याग की कीमत से भी रोजेदारों को रूबरू कराता है। इसकी बानगी जिला महिला अस्पताल में कार्यरत महिला चिकित्सक, शिक्षण कार्य में लगी महिला रोजेदार हैं। वह पूरे मन से ड्यूटी समय से कर रही हैं, पूछने पर बताया कि यह पाक माह है, इसमें मेहनत करने पर सबाब मिलता है। ऐसे में कोई भी कार्य हो आसानी से हो जाता है। हां, कुछ परेशानियां जरूर होती हैं पर, वह सब भूल जाते हैं। शुक्रवार को महिला रोजेदारों से की गई चर्चा में यह बात सामने आई।

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रोजा रखकर सरकारी नौकरी करना कठिन नहीं है, पर कुछ ऐसी दुश्वारियां हैं, जिससे थोड़ी बहुत परेशानी जरूर होती है। परिवार बड़ा है, अब बच्चे छोटे नहीं बल्कि बड़े हो गए हैं, जिनकी समस्या कम हो गई है, रोजा रखकर सहरी व इफ्तार कराना साथ में मजिस्दों व अन्य लोगों को सहरी व इफ्तार पहुंचाते हैं। हर साल रोजा व ड्यूटी होती है, कोई समस्या नहीं होती।

नीलोफर उस्मानी, प्रधानाचार्य

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रोजा के साथ-साथ मरीजों को भी परामर्श देना कठिन तो है ही लेकिन, दोनों कार्य महत्वपूर्ण है। पहले दिन कुछ समस्या समय पाबंदी की हुई, धीरे-धीरे यह कार्य दिनचर्या में शामिल हो गया। अब कोई समस्या नहीं है, सहरी, इफ्तार के साथ-साथ घरेलू कार्य भी कर लेते हैं। समय से ड्यूटी आने में भी कोई समस्या नहीं है, इसमें अस्पताल के लोग भी सहयोग करते हैं।

डा. सबनम, चिकित्सक

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रमजान माह में थोड़ा समय का बदलाव हुआ है। सुबह नींद खुलने पर सहरी तैयार करते हैं। समय से परिवार के लोगों को सहरी देकर अपने कार्य में लग जाते हैं। फिर समय से स्कूल भी पहुंचना रहता है, रोजा रखकर नौकरी करना वैसे तो दिक्कत नहीं है पर, इसमें थोड़ी सी राहत मिले तो कार्य आसान हो जाएगा। स्कूल में सहयोगी कर्मचारी भी ऐसे समय में सहयोग कर मनोबल बढ़ाते हैं।

सबीहा मुमताज, प्रवक्ता

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सुबह सहरी से शुरुआत होकर शाम इफ्तार तक व्यस्त रहती हूं। रोजा में जो बंदिशें हैं, उसको निभाने में कोई समस्या नहीं है, हां, सरकारी ड्यूटी के साथ-साथ परिवार को भी देखना रहता है, छोटा बच्चा है, उसकी देखभाल करना थोड़ा कठिन काम है पर, आपसी सहयोग के चलते सब आसानी हो जाता है। अस्पताल में स्टाफ के साथ-साथ मरीज के तीमारदार भी सहयोग करते हैं।

डा. शीबा खान, चिकित्सक महिला अस्पताल


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