साहित्यकार के साथ बेहतर इंसान थे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
अपने जनपद बस्ती की माटी की उपज सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कवि एवं साहित्यकार के साथ ही बेहतर इंसान भी थे। इनकी लेखनी से कोई भी विधा अछूती नहीं रही। कविता,गीत,नाटक हो अथवा आलेख
बस्ती: अपने जनपद बस्ती की माटी की उपज सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कवि एवं साहित्यकार के साथ ही बेहतर इंसान भी थे। इनकी लेखनी से कोई भी विधा अछूती नहीं रही। कविता,गीत,नाटक हो अथवा आलेख। जितनी कठोरता से व्यवस्था में व्याप्त बुराइयों पर आक्रमण किए, उतनी ही सहजता से वह बाल साहित्य के लिए भी लेखनी चलाते रहे। यही वजह है कि बस्ती सहित देश के नामी साहित्यकार उन्हें आज भी श्रद्धा से याद करते हैं।
एंग्लो संस्कृत उच्च विद्यालय बस्ती से हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद क्वींस कालेज वाराणसी में प्रवेश लिया। एमए की परीक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय इलाहाबाद से उत्तीर्ण की। सर्वेश्वर जी ने जिन साहित्यिक ऊंचाइयों को छुआ, वह एक इतिहास है। काव्य संग्रह खूंटियों पर टंगे हुए लोग के लिए 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया। काठ की घंटियां, बांस का पुल, गर्म हवाएं, एक सूनी नाव, कुआनों नदी और गधा आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं। पत्रकारिता जगत में भी उन्होंने बड़ी जिम्मेदारी से काम किया। अध्यापन तथा आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर रहने के बाद वह बाल साहित्य पत्रिका पराग के संपादक रहे और दिनमान की टीम में अज्ञेय जी के साथ भी काम किए। वह मानते थे कि जिस देश के पास समृद्ध बाल साहित्य नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं रह सकता। पिकौरा शिवगुलाम के रहने वाले थे सर्वेश्वर जी
जन्म 15 सितंबर,1927 को बस्ती के पिकौरा शिवगुलाम मोहल्ले में। मृत्यु 23 सितंबर 1983 को नई दिल्ली में। इनके पिता स्व.विश्वेश्वर दयाल सक्सेना अनाथालय की देखरेख करते थे और माता सौभाग्यवती देवी अध्यापिका रहीं। इनकी दो बेटियां विभा सक्सेना और शुभा सक्सेना पिता के साथ ही दिल्ली में रहतीं थी और वहीं की होकर रह गईं। बस्ती के जिस मकान में वह रहते थे वर्तमान में इनके भाई श्रद्धेश्वर दयाल सक्सेना के पुत्र संजीव कुमार सक्सेना और संजय दयाल सक्सेना सपरिवार रहते हैं। संजीव शिक्षक तो संजय कारोबारी हैं। दोनों भाइयों ने बताया ताऊ स्व.सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बस्ती से जाने के बाद लौट कर केवल एक बार अपने पिता की मृत्यु के उपरांत ही आए थे। यह बात भी हमारे पिता ने बताई थी। हम लोगों ने कभी न देखा है न मिल ही पाए हैं। संघर्ष में बीता बचपन
एक साधारण परिवार में जन्म लेकर अपनी संघर्षशीलता से असाधारण बन जाने की कथा का नाम सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है। हमेशा संघर्षों की भूमि पर चलते रहे, पर न झुके न टूटे न समझौते किए। ग्रामीण-कस्बाई परिवेश तथा निम्न मध्यवर्ग की आर्थिक विसंगतियों के बीच सर्वेश्वर का व्यक्तित्व पका एवं निखरा था। गरीबी एवं संघर्षशील जीवन की उनके व्यक्तित्व पर गहरी छाप पड़ी। उनके मन में गहन मानवीय पीड़ा बोध तथा आम आदमी से लगाव था। दिल्ली में रहने के बावजूद बचपन की अनुभूति उनके साथ बनी रहीं। सर्वेश्वर के पिता गांधीवादी विचारों से प्रभावित थे। उनकी मां प्राध्यापिका थीं। इसके चलते उनमें अच्छे संस्कार एवं लोगों के प्रति संवेदना के बीज उगे। व्यवस्था एवं यथास्थितिवाद के खिलाफ हमेशा खड़े रहे। पारिवारिक जिम्मेदारियों, मां-पिता की मृत्यु ने सर्वेश्वर की जीवनचर्या ही बदल दी। बस्ती शहर के खैर इंटर कालेज में साठ रुपए की प्राध्यापकी करनी पड़ी। बस्ती में बिताया समय उनके साथ ता¨जदगी बना रहा।