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सरयू की कटान से खुद ही तोड़ रहे अपना आशियाना

कई पुश्तों से गांव में रह रहे लोग अब खुद ही अपना आशियाना उजाड़ रहे हैं। सरयू की कटान ने गांव में इतना कहर मचा दिया है कि लोग अपना पक्का मकान तोड़ रहे हैं, झोपड़ी उखाड़ रहे हैं, पेड़ों को काट कर उसकी सिल्ली बना रहे हैं। यह सब तब हो रहा है जब नदी में बाढ़ उतार पर है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 11:39 PM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 11:39 PM (IST)
सरयू की कटान से खुद ही तोड़ रहे अपना आशियाना
सरयू की कटान से खुद ही तोड़ रहे अपना आशियाना

बस्ती: कई पुश्तों से गांव में रह रहे लोग अब खुद ही अपना आशियाना उजाड़ रहे हैं। सरयू की कटान ने गांव में इतना कहर मचा दिया है कि लोग अपना पक्का मकान तोड़ रहे हैं, झोपड़ी उखाड़ रहे हैं, पेड़ों को काट कर उसकी सिल्ली बना रहे हैं। यह सब तब हो रहा है जब नदी में बाढ़ उतार पर है। उतर रही सरयू इतना विकराल हो जाएगी यह किसी ने सोचा भी नहीं था। यह सब हो रहा है दुबौलिया ब्लाक के दिलासपुरा व खजांचीपुर गांव में। इन दोनों गांवों के सवा सौ से अधिक लोग अब बेघर हो रहे हैं। शुक्रवार को दोनों गांवों के 17 परिवारों के सहित करीब सवा सौ लोगों की आबादी यहां निवास करती है। क्षत्रिय, यादव, राजभर, कुम्हार और पाल बिरादरी के लोग मिलजुल कर एक साथ निवास करते रहे हैं। सरयू नदी इन गांवों के लोगों के पवित्र नदी है। लोग प्रतिवर्ष पूजा चढ़ाते हैं, हर पर्व त्योहार पर स्नान करते हैं। अब यही नदी इनके घरों को निगलने पर आमादा है।

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दिलासपुरा के बिरेंद्र ¨सह ,राज कुमार ,लाल साहब, राधेश्याम आदि ने बताया कि पहले नदी उनके गांव से कोसों दूर थी लेकिन पिछले कई वर्षों से लगातार जमीन काटती हुई गांव की तरफ बढ़ रही है। इस वर्ष कटान इतनी तेज हुई कि अब घर भी कटने लगा है। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन ने उन्हें बाढ़ राहत किट तो दिया लेकिन नई जगह बसने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की। अब अपने पक्के मकानों को तोड़ ईंट निकाल रहे हैं। जहां जाएंगे वहां नया घर बनाने में उपयोग हो जाएगा। जो ही थोड़ा-बहुत खर्च से राहत मिल जाएगी। नदी काट ले जाएगी तो कुछ नहीं मिलेगा। खजांची पुर के विक्रम आदि ने बताया की 4 परिवारों के पास एक इंच भी भूमि नहीं है। प्रशासन ने उन्हें सुरक्षित जगहों पर ग्राम समाज की जमीन देकर बसा दिया। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण झोपड़ी डालकर रह रहे हैं। जिनके पास तटबंध के इस पार जमीन है वह लोग भी आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं जिससे घर नहीं बनवा पा रहे हैं। इन गांवों के लोगों की किस्मत में शायद हर साल उजड़ना लिख गया है।


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