राम के वियोग का जीवंत अभिनय देख रो पड़े थे सभी
इस दिन वृहद मेला भी आयोजित होता है
बस्ती: विकास खण्ड सल्टौआ में कुआनो नदी के तट पर महादेवा घाट में बाबा बाल्केश्वर नाथ का मंदिर है। यहां की रामलीला क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। बाबा बालकेश्वर नाथ रामलीला समिति यहां 1989 से प्रति वर्ष 10 दिन तक भगवान राम की लीला का मंचन स्थानीय कलाकारों द्वारा किया जाता है। आखिरी दिन दोपहर बाद रावण का पुतला जलाया जाता है। इस दिन वृहद मेला भी आयोजित होता है। राम लीला के कुछ पात्रों को अभिनय के लिए अयोध्या से भी बुलाया जाता है। यहां की रामलीला की खासियत यह है कि मंचन के लिए मिट्टी का चबूतरा बनाया जाता है। प्रतिवर्ष दिवाली के बाद भैयादूज से रामलीला की शुरुआत होती है।
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इस वर्ष का आकर्षण:
इस वर्ष भगवान राम का विवाह खास रहेगा। जिस दिन इसका मंचन होगा उस दिन विधिवत बरात निकाली जाएगी। सुसज्जित वाहनों पर भगवान राम चारो भाइयों के साथ दर्जनों गांवों का भ्रमण करेंगे उसके बाद विवाह का मंचन किया जाएगा।
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आगंतुकों व दर्शकों को कोई असुविधा न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। प्रतिदिन आरती होती है व श्रद्धालुओं में प्रसाद की वितरण किया जाता है। महिलाओं की सुरक्षा व बैठने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
फूल चंद्र चौधरी, अध्यक्ष रामलीला समिति
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रामलीला समिति पूरी जिम्मेदारी से श्रद्धालुओं की सुविधा का ध्यान रखती है। महिलाओं व बच्चों के बैठने के लिए अलग दरी का इंतजाम किया जाता है। वालंटियर लोगों की समस्याओं का समाधान करते हैं।
राजेश कुमार पांडेय, महामंत्री, रामलीला समिति
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शुरू में रामलीला जब प्रारंभ होती थी तो स्थानीय कलाकारों द्वारा अभिनय किया जाता था। मंदिर पर एक माह पूर्व से अलग-अलग पात्रों को संवाद तैयार कराए जाते थे। सभी पात्र प्रत्येक दिन दो घंटे अभिनय की तैयारी करते थे। कुछ वर्षो से प्रमुख कलाकारों को बाहर से बुलाया जाता है।
जुग्गीलाल वर्मा, सदस्य, रामलीला समिति
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नहीं भूलता वह अभिनय
रामलीला में विभिन्न पात्रों की भूमिका निभाने वाले कुंज बिहारी वर्मा ने बताया कि एक बार राम की भूमिका में था। सीता जी की खोज का मंचन चल रहा था। भारी भीड़ थी। राम के वियोग का ऐसा जीवंत अभिनय हुआ कि दर्शक दीर्घा में बैठे पुरुष दर्शक जहां अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे वहीं महिलाएं फफक-फफक कर रो पड़ीं।