मेरी धारा ही बन गए मेरे आंसू
मैं मनवर हूं। त्रेताकाल में मेरा उछ्वव हुआ था। उद्यालक ऋषि की तपस्या से निकली मैं वह पावन सलिला थी जो भगवान राम की मर्यादा बनी। मेरे ही तट पर स्थित मखधाम में पुत्रेष्टि यज्ञ और धर्म ध्वज फहरने का साक्षी बना
बस्ती : मैं मनवर हूं। त्रेताकाल में मेरा उछ्वव हुआ था। उद्यालक ऋषि की तपस्या से निकली मैं वह पावन सलिला थी जो भगवान राम की मर्यादा बनी। मेरे ही तट पर स्थित मखधाम में पुत्रेष्टि यज्ञ और धर्म ध्वज फहरने का साक्षी बना।
भगवान राम और माता जानकी ने जब बहन कुआनो से मेरे विलय स्थल लालगंज में बाटी चोखा बनाकर खाया तभी से मैं मोक्षदायिनी हुई। मेरे तट पर मोक्षेश्वरनाथ विराजमान हैं। द्वापर में पांडव अज्ञातवास मेरे ही तट पर पंडूलघाट आए थे। बस ढाई दशक पहले तक मेरी कल-कल धारा गोंडा के तिर्रे ताल से लेकर बस्ती के लालगंज तक 115 किमी दूरी में धरा को धानी चूनर बनाकर रखती थी। खेतों को हरा भरा रखने का यश सदियों से मेरी विनम्रशील और शीतलयुक्त धारा को प्राप्त हुआ है। जलीय जंतुओं की अठखेलियां, पशु-पक्षियों के कलरव के बीच मेरी अविरल धारा हिलोरे मारते चलती थी। चैत्र पूर्णिमा पर अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा की शुरूआत मेरे मखौड़ा धाम से होती है। इसी तिथि पर लालगंज में लिट्टी चोखा का प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा अभी जीवंत है। अफसोस यह कि मेरी ही गोद से निकली संतानें भागमभाग की दुनिया में इतना उलझ गईं कि हमसे दूरी बना लीं। मेरी सुरक्षा और संरक्षा को पलटकर देखना छोड़ दिया। मेरी निर्मल काया मैली कर डाली। मेरे रास्ते में अतिक्रमण कर लिए। फैक्ट्रियों का गंदा पानी बहा रहे हैं। कैसे मैं पवित्रता कायम रखूं। मेरी धारा मेरे आंसू बन गए हैं। बस आप मेरी ¨चता शुरू कर दो। हमें आचमन के योग्य बना दो। नदी के संरक्षण को बढ़ाएं हाथ
जिला प्रशासन ने नदी के उद्धार के लिए योजना बनाई है। इसमें जनभागीदारी आवश्यक है। नदी की सफाई के प्रति सभी लोग संकल्पित हों। कूड़ा, कचरा व गंदा पानी न आने दें। अभियान शुरू हो तो प्रत्येक घर से लोग निकलें।
सूर्य नरायन दास वैदिक, पुजारी मखौड़ा धाम