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परंपरागत जलस्त्रोतों को निगल रही जलकुंभी

मूल रूप से अमेरिकी मूल का यह पौधा प्राय: स्थिर जल में पाया जाता है

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 10:45 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 10:45 PM (IST)
परंपरागत जलस्त्रोतों को निगल रही जलकुंभी
परंपरागत जलस्त्रोतों को निगल रही जलकुंभी

बस्ती: जलाशयों में भारी मात्रा में उगी जलकुंभी उनके विनाश का कारण बन रही है। इनके प्रभाव से न केवल जल स्त्रोत समाप्त हो रहे हैं बल्कि उनमें पाए जाने वाले जलीय जीव भी समाप्त हो रहे हैं । मूल रूप से अमेरिकी मूल का यह पौधा प्राय: स्थिर जल में पाया जाता है। अपने देश में यह हर जगह पाया जाता है। इसके पत्ते फूले हुए होते हैं जिस कारण यह जल पर तैरता रहता है। नीले बैंगनी रंग के इसके फूल काफी सुंदर दिखाई देते हैं। कायिक जनन की प्रचुर क्षमता होने के कारण 10 से 12 दिन में पौधा अपनी संख्या दोगुनी कर लेता है। एक पौधा लगभग 5000 तक की संख्या में बीज उत्पन्न करता है तथा 9 से 10 माह में लगभग 1 एकड़ जल क्षेत्र को ढंक लेता है।

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हानिकारक प्रभाव

जलकुंभी अपने विस्तृत फैलाव के कारण जलाशय की पूरी सतह को ढंक लेती है जिससे सूर्य का प्रकाश जलाशय में गहराई तक जाने को कौन कहे सतह पर भी ठीक से नहीं पहुंच पाता। इससे जलमग्न पौधों तथा जीवों की जीवनचर्या बुरी तरह प्रभावित होती है। सतह के नीचे आक्सीजन न पहुंच पाने से मछली,घोंघे आदि जलीयजीव मरने लगते हैं। सबसे बुरा प्रभाव जलाशय के अस्तित्व पर पड़ता है। जलकुंभी के सड़ने से पैदा हुआ मलबा जलाशय की तली में जमा होकर उसे पाटता रहता है। धीरे धीरे जलाशय की गहराई घटती जाती है तथा वह समतल भूमि में परिवर्तित होने लगता है। जलकुंभी की मौजूदगी में जल प्रवाह 20 से 40 फीसद तक घट जाता है जिससे पानी की शुद्धता प्रभावित होती है। इसकी उपस्थिति में वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है जिससे जल हानि अधिक होने लगती है। जलकुंभी युक्त जलाशयों में मच्छर अधिक पनपते हैं।

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नियंत्रण के उपाय

जलकुंभी के नियंत्रण के लिए भौतिक,रासायनिक तथा जैविक तीनों विधियां प्रयोग में लाई जा सकती हैं। सबसे कारगर भौतिक विधि है जिसके तहत पौधों को जल स्त्रोत से बाहर निकाल दिया जाता है। रासायनिक उपचार के तहत 2,4 डी, ग्लाइफोसेट या पैराक्वाट रसायनों का प्रयोग करके जलकुंभी को खत्म किया जाता है। जैविक नियंत्रण की विधि के तहत नियोकोटिना आइकार्नी तथा आर्थोगेलुमना टेरेबा जैसे कीटों का प्रयोग किया जाता है, जो जलकुंभी के तने में छेद करके उसे सुखा डालते हैं।

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फायदेमंद हो सकती है जलकुंभी

जलकुंभी जल स्त्रोत के लिए भले ही हानिकारक प्रभाव प्रदर्शित करती है परंतु यह खेती के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। इसमें लगभग 42 फीसद कार्बन 2.5 प्रतिशत नाइट्रोजन 5.5 फीसद पोटेशियम 0.5 प्रतिशत फास्फोरस तथा लगभग 3 फीसद चूने की मात्रा होती है। ऐसे में थोड़े से प्रयास के द्वारा जलकुंभी का खेती में लाभकारी उपयोग किया जा सकता है। तालाब से निकालने के बाद इसे सड़ाकर इसकी जैविक खाद बनाई जा सकती है जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देती है। इस प्रकार यह समाप्त भी होगा और इसका सदुपयोग भी हो सकेगा। जलकुंभी को बायोगैस उत्पन्न करने में भी प्रयोग किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद में कृषि कार्य देख रहे संयुक्त निदेशक डा.डीके श्रीवास्तव कहते हैं कि यह सच है कि जलकुंभी जलाशयों के लिए यमराज साबित हो रहा है। जल स्त्रोतों को इससे मुक्त कराने हेतु परिषद स्तर पर मंथन चल रहा है। शीघ्र ही जलाशयों को जलकुंभी मुक्त कराने हेतु कार्य योजना पर अमल प्रारंभ हो जाएगा।


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