चमचमाती सड़कों पर भी अदृश्य दुश्मन का खौफ
आपाधापी खत्म हुआ तो विकास की साज-सज्जा निखर गई है।
बस्ती : टू-लेन, फोर-लेन की चमचमाती सड़कों पर दूर तक सन्नाटा है। काफी देर तक निहारने पर इक्का-दुक्का वाहन दिखें,वह भी जरूरी सेवाओं से जुड़े है। सूनेपन में पर्वतीय आकार के फ्लाई ओवर, नदियों के पुल सब दिखने लगे हैं। भागमभाग भरी जिदगी अचानक ठहर गई है। चंचल मन, चलने को आतुर जिदगी, सरपट दौड़ते वाहन सब थम गए हैं।
यह सब अदृश्य दुश्मन कोरोना का खौफ भले हैं। लेकिन इस सन्नाटे में पुरातन भारत की झलक भी साफ दिख रही है। भय के साए में यह जो माहौल सृजित हुआ इसमें शांति, सहिष्णुता और एकता दिख रही है। रोजी, रोजगार, व्यवसाय, नौकरी, यात्रा सब झंझट लगने लगा है। प्रधानमंत्री का दोहराया स्लोगन जान है तो जहान है. सभी को सच लग रहा है। जिदगी घरों में कैद हो गई हैं। कस्बा और नुक्कड़ों पर घंटों खड़े होकर सवारी का इंतजार करना पड़ता था। पैदल भी चलने का अलग महत्व था। सड़कों पर कम भीड़ पर्यावरण को सुरक्षित रखती थी। सफाई पर पहले जैसा ही ध्यान दिया जा रहा है। गांव में घरों से लेकर दरवाजे तक सुबह झाड़ू लगाए जा रहे हैं, शहर में सफाईकर्मियों की टीम गलियों और सड़कों को चमका रही है। इस खाली-खाली माहौल में चहुंओर स्वच्छता छाया हुआ है। बुधवार लाकडाउन भारत का नजारा बस्ती में भी दिखा। बस्ती-बांसी मार्ग पर पड़िया चौराहे के पास मिले 60 साल के प्रभाकर शुक्ल ने बताया कि काफी देर हो गए बस्ती जाने के लिए साधन का इंतजार करते नहीं मिला। वीरान सड़क को देखकर 90 के दशक से पहले की याद आ गई। पहले इतने गाड़ी, वाहन, सड़क नहीं थे। अब सबकुछ होने के बाद भी पुराने दौर में सबको लौटना पड़ा।