दस हजार की नौकरी छूटी, अब फावड़ा और ढाई सौ दिहाड़ी
ऊंचाई तक पहुंचने का हक उनका भी था। गांव में मौके कम थे इसलिए गलियां छोड़ दीं शहर का रुख कर लिया। कड़ी मेहनत से जमीन बना भी ली मगर कोरोना संक्रमण फैला इसलिए घर की चौखट लेना जरूरी हो गया था। लौट तो आए मगर रोजी-रोटी के इंतजाम के लिए हर दिन नई परीक्षा से गुजरना हो रहा।
जेएनएन, बरेली: ऊंचाई तक पहुंचने का हक उनका भी था। गांव में मौके कम थे इसलिए गलियां छोड़ दीं, शहर का रुख कर लिया। कड़ी मेहनत से जमीन बना भी ली मगर कोरोना संक्रमण फैला इसलिए घर की चौखट लेना जरूरी हो गया था। लौट तो आए मगर रोजी-रोटी के इंतजाम के लिए हर दिन नई परीक्षा से गुजरना हो रहा।
खजुरिया गांव में रहने वाले रिकू उत्तराखंड के सिडकुल में एक बिस्किट फैक्ट्री में काम करते थे। हाईस्कूल की पढ़ाई कर छह साल पहले गांव छोड़कर चले गए थे। इस उम्मीद के साथ कि यहां न जमीन है न नौकरी की उम्मीद, इसलिए अब शहर में रोजी-रोटी का जरिया तलाशेंगे। निजी कंपनियों में पसीना बहाने के बाद बिस्किट फैक्ट्री में सुपरवाइजर का पद मिल गया। बताते हैं ़ ़ ़दस हजार रुपये मिलने लगे थे। तीन हजार रुपये बचा भी लेते थे। छह साल की मेहनत के बाद नौकरी ढर्रे पर आने लगी थी। अचानक कोरोना वायरस का संक्रमण फैला तो फरवरी में कंपनी वालों ने कर्मचारियों से घर जाने को कह दिया। सबसे जरूरी जान बचाना था इसलिए वहां से घर चले आए। अप्रैल के शुरूआती पंद्रह दिन बमुश्किल कटे। इस फिक्र में कि आगे क्या होगा। सवाल किया ़ ़ ़खेती-बाड़ी में कोशिश करो। ईख के खेत से घास हटाते हुए बात कर रहे रिकू ने सवाल सुनते ही काम रोक दिया। जवाब आया- जमीन होती तो फैक्ट्री में नौकरी करने क्यों जाते। अब लौट तो आए हैं मगर रोजी-रोटी का क्या इंतजाम होगा, यह समझ नहीं आया। मजबूरन फावड़ा उठाया और खेतों की ओर निकल गए। खजुरिया गांव में ही रहने वाले लोगों ने काम दे दिया। दिन भर ईख के खेत में काम करने के बदले रुपये तय हुए ढाई सौ। इतने में गुजारा चल जाएगा, सवाल पर कहने लगे कि आप ही बताओ। ढाई सौ रुपये दिहाड़ी पर भी संतोष कर लें तब भी एक महीने में दस हजार रुपये का काम नहीं मिल सकेगा। खेती है ़ ़ ़ अभी जरूरत है तो काम मिल गया। कल का किसने देखा है, काम मिले या न मिले। चेहरे पर गंभीर भाव लिए रिकू ने दोबारा फावड़ा थामा और काम पर लग गए। क्या वापस जाएंगे ़ ़़ ़सवाल पर कहने लगे- देखेंगे कि आगे क्या माहौल बनता है। फिलहाल तो रोजी-रोटी ढाई सौ रुपये दिहाड़ी पर टिकी है।
जिल में आ चुके हैं तीस हजार से ज्यादा प्रवासी
अब तक जिले में तीस हजार से ज्यादा प्रवासी लौट चुके हैं जोकि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब आदि प्रदेशों में कारखानों आदि में काम करते थे। इनमें से अधिकतर भूमिहीन हैं या बेहद छोटे रकबा की जमीन वाले। ऐसे में गुजारा करने के लिए नए रास्ते बनाने होंगे। सरकार प्रवासियों के लिए योजनाएं बना रही। उन्हें रोजगार-स्वरोजगार से जोड़ने की कवायद कर रही है। क्रियान्वयन होने और लाभ पहुंचने तक प्रवासियों के सामने ऐसे कई चुनौतियां हैं।