World Environment Day : बरेली में दर्द और दहशत के बीच पड़ी सात हजार लाेगाें काे जरूरत, तब समझा आक्सीजन का माेल
पिछले दो महीने दर्द और दहशत की दास्तां लिख गया। दम घोंटता संक्रमण अस्पतालों के बाहर लंबी सांसें खींचते लोग। मुंह में आक्सीजन मास्क लगाए जीवन के लिए संघर्ष। साल के शुरुआत में ही यह नजारा रूह कंपाने वाला रहा। महामारी में आक्सीजन की मारामारी हो गई।
बरेली, जेएनएन। : पिछले दो महीने, दर्द और दहशत की दास्तां लिख गया। दम घोंटता संक्रमण, अस्पतालों के बाहर लंबी सांसें खींचते लोग। मुंह में आक्सीजन मास्क लगाए जीवन के लिए संघर्ष। साल के शुरुआत में ही यह नजारा रूह कंपाने वाला रहा। महामारी में आक्सीजन की मारामारी हो गई। अस्पतालों में भर्ती होने वाले करीब 70 फीसद लोगों को आक्सीजन की जरूरत पड़ी। आक्सीजन से ही उनकी सांसों की डोर बंधी। उन्हें पता चला कि धरती में आक्सीजन अनमोल है। अब चूंकि शनिवार को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाना है, इसलिए धरा की इस अनमोल धरोहर को सहेजने के लिए सभी एक पौधा अवश्य लगाएं। पौधा लगाने तक ही जिम्मेदारी नहीं रखें, उसकी देखभाल करें और पर्यावरण संरक्षण में सहायक बनें।
करीब सात हजार लोगों को पड़ी अस्पताल की जरूरत
कोरोना ने अप्रैल में कहर बरपाना शुरू कर दिया था। महीने के बीच में संक्रमण तेजी से फैलता गया। कई परिवार के सभी सदस्य प्रभावित हो गए। अधिकतर लोगों ने जिन्हें हल्के लक्षण थे, उन्होंने घर में ही दरी बनाकर रहना शुरू किया। जिन लोगों के लक्षण बढ़ गए, उन्हें अस्पतालों में भर्ती होने की जरूरत पड़ी। करीब सात हजार लोगों को अस्पतालों में भर्ती किया गया। उनमें से 70 फीसद से अधिक लोगों को आक्सीजन की जरूरत पड़ी। करीब 287 मरीजों की मौत हो गई। घरों में आइसोलेट होने वालों की संख्या 35 हजार से अधिक रही।
घर-आंगन, पार्कों में लगाए पौधे
जिन लोगों की सांसों की डोर आक्सीजन ने नहीं टूटने दी, उन्हें तो शायद आक्सीजन का मोल समझ में आ ही गया होगा। तमाम लोगों ने आक्सीजन कनसंट्रेटर का सहारा लिया, जो वातावरण से ही आक्सीजन बनाता है। वातावरण में यह आक्सीजन पेड़ों से ही मिलती है। इसका इल्म भी शायद उन्हें हो गया होगा। इसलिए पौधरोपण का संकल्प लें और विश्व पर्यावरण दिवस को उत्सव के रूप में मनाए। नए जीवन की शुरुआत के साथ ही भविष्य में जीवन बचाने की मंशा से घर-आंगन, पार्कों व घरों के आगे पौधे लगाएं।