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फिटनेस नहीं मेडल के लिए खेलने से बदलेगी सूरत

एशियन गेम्स में बरेली के तीन खिलाड़ियों का खेलना जिले के खिलाड़ियों के लिए हौसले का सुबूत है

By JagranEdited By: Published: Wed, 29 Aug 2018 10:14 AM (IST)Updated: Wed, 29 Aug 2018 10:14 AM (IST)
फिटनेस नहीं मेडल के लिए खेलने से बदलेगी सूरत
फिटनेस नहीं मेडल के लिए खेलने से बदलेगी सूरत

जागरण संवाददाता, बरेली : एशियन गेम्स में बरेली के तीन खिलाड़ियों का खेलना जिले के खिलाड़ियों के लिए हौसले का सुबूत है। तीरंदाजी और सेपक टाकरा को छोड़ हॉकी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, कुश्ती समेत बाकी खेलों में बरेली से टीम इंडिया से खेलने लायक खिलाड़ी क्यों नहीं निकलते हैं? स्पो‌र्ट्स स्टेडियम के कोच इसकी सबसे बड़ी वजह खेल के प्रति सोच को मानते हैं।

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क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बास्केटबाल के कोच से खेल की बदहाली पर बात की तो सबने इसका जिम्मेदार स्कूलों को माना। उनका मानना है कि स्कूलों में खिलाड़ियों को खेल का शुरुआती माहौल मिलना जरूरी है। यहां से वह बेसिक खेल सीखकर कोचिंग के लिए आएं। तब उनमें खेलने का जुनून होगा और स्टेडियम में उन्हें बेहतर सुविधाएं-कोचिंग मिलें। निश्चित तौर पर खिलाड़ी देश के लिए खेलने लायक बनेंगे। अभी इसका उल्टा है। स्कूल-कॉलेज में खेल रत्ती भर नहीं होते। इसलिए स्टेडियम के कोच के पास खेल के जुनूनी खिलाड़ी भी नहीं आ पाते हैं।

एक दिन नहीं सुधरेगा खेल

29 अगस्त को खेल दिवस है। इस दिन खेल के सुधार को लेकर तमाम वादे-दावे होते हैं। इसके बाद खेल में सुधार की रत्ती भर भी ललक नजर नहीं आती।

खेल में दिलचस्पी कौन दिखाता

हॉकी संघ के सचिव वसीम खां कहते हैं कि खिलाड़ियों को खेल का मंच देने के लिए नियमित खेल होना जरूरी हैं। मगर अभ्यास तो चलता पर प्रतियोगिताएं नहीं होती। खेल संघ खुद चंदा डालकर प्रतियोगिताएं कराए। स्थानीय स्तर पर कोई स्पांसर तक नहीं मिलता है।

लोकल से ही तो चमकेंगे सितारे

कोच सोनू श्रोत्रिय के मुताबिक जब स्थानीय स्तर पर अच्छे खिलाड़ी तैयार होंगे तभी वह आगे चलकर देश के लिए खेल पाएंगे। हर स्तर पर खेल को सींचने की प्रक्रिया शुरू हो जाए बरेली का नाम भी खेल जगत में चमकने लगेगा।

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बास्केटबाल में मेरे पास करीब 46 खिलाड़ी थे। अब मुश्किल से 25 खिलाड़ी होंगे। कई मां-बाप तो बच्चों को फिटनेस के लिए खेलने भेजते हैं। इस स्थिति में उन्हें कैसे देश के लायक तैयार किया जा सकता है। कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो जुनूनी हैं, वह राष्ट्रीय स्तर तक खेल चुके हैं।

सोनू श्रोत्रिय, बास्केटबाल कोच

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विदेशों में खेल को स्कूल स्तर से ही प्राथमिकता दी जाती है। हमारे यहां स्कूल हॉकी को रत्ती भर तवज्जो नहीं देते। क्योंकि हॉकी महंगा खेल है। दो टीम भी बनाएंगे तो 32 हॉकी देनी पड़ेंगी। जब स्कूल में खिलाड़ी तैयार नहीं होंगे तो कोच के पास कहां से आएंगे। खेल संवारना है तो स्कूल में खेल को जिंदा करना होगा।

वसीम खां, सचिव जिला हॉकी संघ

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क्रिकेट कोच के तौर पर मैंने हाल में ही ज्वाइन किया है। आगरा और कानुपर में मेरे कई खिलाड़ी आइपीएल में खेले हैं। खेल सुधारने के लिए अभिभावक, खेल संघ और विभाग सबको एकजुट होना होगा। तभी इसकी सूरत बदलेगी।

-सुनील कुमार सिंह, क्रिकेट कोच

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फुटबाल के हमारे कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेले हैं। उम्मीद है जल्द कोई न कोई खिलाड़ी टीम इंडिया का हिस्सा होगा। रही बात खेल के स्तर की तो इस पर एक दिन में सोचने से सुधार नहीं होगा। स्कूल, कॉलेज, स्पो‌र्ट्स विभाग सबको पूरी शिद्दत से लगना होगा। इस उम्मीद के साथ कि देश के लिए खिलाड़ी तैयार करना है।

शमीम अहमद, फुटबाल कोच


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