Positive India : वसीम बरेलवी बोले- हम फिर जीतेंगे जिंदगी की जंग Bareilly News
इमरजेंसी से लेकर अब तक बीच-बीच में कई मर्तबा कर्फ्यू लगा। 2012-13 में 28 दिन तक शहर फोर्स के हवाले रहा था। तब मुहब्बतों की डोर कमजोर होते देख आंखें छलक पड़ी थीं।
बरेली, वसीम अख्तर : कोरोना वायरस... दुनिया के सबसे ताकतवर दुश्मन के रूप में उभरकर सामने आया हैं। देखते ही देखते भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों को अपने आगोश में ले लिया। लाखों चपेट में आ गए और हजारों की मौत हो चुकीं। देश और बरेली भी इस मुश्किल वक्त से निबटने के लिए खड़ा हो चुका है। जागरण टीम ने जब बरेली के मानिंद लोगों से बात की तो सभी ने एक स्वर से कहा कि यह सकंट की घड़ी है, फिर भी हम सतर्कता व समझदारी से यह जंग आसानी से जीत लेंगे.....।
इमरजेंसी से लेकर अब तक बीच-बीच में कई मर्तबा कर्फ्यू लगा। 2012-13 में 28 दिन तक शहर फोर्स के हवाले रहा था। तब मुहब्बतों की डोर कमजोर होते देख आंखें छलक पड़ी थीं। हालात पर काबू पाने के लिए सौहार्द का परचम लेकर सड़क पर निकले तो कारवां बनता गया। आखिरकार प्रशासन को कर्फ्यू हटाना पड़ा। यह दौर उस दौर से ज्यादा फिक्रमंद कर रहा है। डरता हूं कि कहीं नादानी में लोग अपना बड़ा नुकसान नहीं कर बैठें। रूह कांप जाती है, कोरोना वायरस की चपेट में आने वालों के वीडियो देखकर।
उन्हें उनके अपने हाथ नहीं लगा सकते, सिर्फ मरते हुए देख सकते हैैं। यह जिंदगी का इंतहाई दर्दनाक पहलू है। इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। तमाम हिंदुस्तानियों के लिए मेरी सलाह है कि कुदरत ने भागमभाग की जीवनशैली में ठहराव का मौका दिया है। इसका सदुपयोग करते हुए घर में रहें। जिंदगी अनमोल कहिए नहीं बल्कि जानिए। अपने रवैये इसका सुबूत दें। यह कहना है प्रोफेसर जाहिद हसन (वसीम बरेलवी) का। वह 11 दिन से घर पर हैैं।
वसीम बरेलवी पुरानी यादों के बारे में बताते हैैं कि शहर ने कर्फ्यू के बहुत दौर देखे हैैं। जब कभी माहौल खराब हुआ तो जहां भी खबर मिली लौटकर आया हूं। समझाकर, बुझाकर, मनाकर माहौल को बदला है। सबसे लंबा कर्फ्यू कोहाड़ापीर पर जुलूस में बवाल के बाद चला था। लोग परेशान हो गए थे। तब कुतुबखाना से बांसमंडी की तरफ मार्च किया था। तब तनाव भरे लम्हों में छतों से लोगों के फूल बरसाने का मंजर देखकर आंखें छलक आई थीं। उस दिन अंदाजा हो गया था, शहर में सौहार्द की जड़ें किस कदर गहरी हैैं।
जहां तक इमरजेंसी की बात है तो यह राजनेताओं के लिए और अब से पहले के कफ्र्यू सांप्रदायिक माहौल को सामान्य करने के लिए लगते रहे हैैं लेकिन लॉकडाउन एकदम अलग तरह का मामला है। ऐसा जिस सोच के तहत किया गया है, उसमें सीधे आम आदमी जुड़ा है। एक-एक शख्स की जिम्मेदारी है। खास के साथ आम लोगों को भी यह समझना होगा कि इतना खतरनाक वायरस अब से पहले देखना तो दूर सुनने को भी नहीं मिला। अगर धार्मिक तौर पर देखें तो हमारे नबी ने ताऊन (पुराने जमाने में चूहों से माहमारी फैली थी) और वबा (बीमारी) फैलने पर लोगों को जाने से रोका था।
लिहाजा, खुद को रोकने की जरूरत है। लॉकडाउन घरों में रहने के लिए किया गया है। बाहर घूमना अपनी और अपने अपनों की जान को जोखिम में डालना है। हमारे मुल्क में ही नहीं दुनियाभर में जिंदगी ठहर गई है। वसीम बरेलवी कनाडा के बारे में बताते हैैं, वहां सरकार के आह्वïन पर लोग बिल्कुल भी घरों से नहीं निकल रहे हैैं। बेटा मौजू और बेटी बासिरा कनाडा में ही हैैं। उनसे अब दिन में दो-तीन बार बात हो रही है। बेटी का कहना था कि नौ दिन से बाजार की सूरत नहीं देखी। घर पर हैैं।
खानपान की चीजें भी सरकार ने घर पर पहुंचाने की व्यवस्था कराई है। हमारी सरकार भी ऐसा ही कर रही है। घरों से बाहर आना समझदारी नहीं है। कुछ वक्त की बात है, संकट टल जाएगा। इस परेशान करने वाली घड़ी में सुकून की बात यह है कि हिंदुस्तानी परिस्थितिवश बीमारियों से लडऩे में ज्यादा सक्षम है लेकिन इसका फायदा हमें तब मिलेगा, जब हम एहतियात की कसौटी पर विदेशी मुल्कों जितना ही खरा उतरेंगे। जागरण से बातचीत में वह इस शेर से देशवासियों को नसीहत देने का प्रयास करते हैैं- इरादा छोडि़ए अपनी हदों से दूर जाने का, जमाना है जमाने की निगाहों में न आने का।