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सुपोषण की जंग : यशोदा बन प्रेमलता संवार रही कुपोषित बच्चों का जीवन Shahjahanpur News

कुपोषण को लेकर उनकी असल जंग छह माह पहले तब शुरू हुई जब उन्हें पता चला कि गांव के ही तीन अतिकुपोषित बच्चे जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे हैं।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Sat, 07 Sep 2019 07:57 AM (IST)Updated: Sat, 07 Sep 2019 07:57 AM (IST)
सुपोषण की जंग : यशोदा बन प्रेमलता संवार रही कुपोषित बच्चों का जीवन Shahjahanpur News
सुपोषण की जंग : यशोदा बन प्रेमलता संवार रही कुपोषित बच्चों का जीवन Shahjahanpur News

शाहजहांपुर [अजयवीर सिंह ] : भगवान कृष्ण का जन्म तो देवकी के गर्भ से हुआ था, लेकिन असल जीवनदाता मइया यशोदा कहलाई। ठीक उसी तरह अतिकुपोषित बच्चों को यशोदा बनकर जीवनदान दे रही है प्रेमलता। हम बात कर रहे है विकासखंड ददरौल के अकर्रा रसूलपुर निवासी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता प्रेमलता की।

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प्रेमलता ने करीब एक दशक तक अकर्रा रसूलपुर गांव में अपनी सेवाएं दी। 2017 में उन्हें पास के ही गांव ऊधौपारा का जिम्मा सौंप दिया गया। जहां कुपोषण के शिकार कई बच्चों को सामान्य श्रेणी में पहुंचाने के लिए मेहनत की। कुपोषण को लेकर उनकी असल जंग छह माह पहले तब शुरू हुई, जब उन्हें पता चला कि गांव के ही तीन अतिकुपोषित बच्चे जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे हैं। जागरूकता के अभाव में इन्हें उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। 

प्रेमलता को इसकी जानकारी हुई तो करीब दो साल के एक बच्चे को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया। जबकि दो बच्चे, जो महज तीन माह के थे उनकी मइया यशोदा की तरह खुद ही देखभाल करना शुरू कर दी। बच्चों की मां, परिवार को कुपोषण के बारे में समझाया। आस छोड़ चुके परिजनों को सहारा दिया। उनके अंदर उम्मीद की नई किरण जगाई। करीब तीन माह के अथक प्रयास रंग लाए। दोनों बच्चे सामान्य श्रेणी के करीब पहुंच गए।

बच्चों को पिलाया जा रहा था भैंस का दूध
मां का दूध बच्चों के लिए अमृत समान है, लेकिन दोनों अतिकुपोषित बच्चों को मां के बजाय भैंस का दूध पिलाया जा रहा था। प्रेमलता ने पहले दोनों महिलाओं को पौष्टिक आहार दिलाया। ताकि बच्चों के लिए दूध बन सके।

बताया दूध पिलाने का तरीका, मिली कामयाबी
महिलाओं को बच्चों को दूध पिलाने का सही तरीका भी नहीं आता था। प्रेमलता ने उन्हें खुद बच्चों को अपने आंचल में लेकर दूध पिलाने का सही तरीका बताया। प्रेमलता नियमित बच्चों के घर जाकर अपनी देखरेख में बच्चों को फीडिंग कराती थी। साफ-सफाई से लेकर खान-पान तक की व्यवस्था देखती। जिससे बच्चों की सेहत में सुधार नजर आने लगा। इसके लिए अधिकारी उन्हें सम्मानित भी कर चुके हैं।


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