यूपीपीसीबी की जांच में बायो मेडिकल वेस्ट प्लांट में मिली कई खामियां
परसाखेड़ा स्थित इनविराड बायो मेडिकल वेस्ट प्लांट पर आंच और तेज हो सकती है।
बरेली(जेएनएन)। लखनऊ से आई उप्र प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की जांच से परसाखेड़ा स्थित इनविराड बायो मेडिकल वेस्ट प्लांट पर आंच और तेज हो सकती है। क्षेत्रीय कार्यालय की टीम के साथ निरीक्षण के दौरान प्लांट में कई बुनियादी खामियां मिलीं। वहीं, मौके पर जरूरी दस्तावेज भी नहीं दिखाए जा सके।
शाम करीब साढ़े सात बजे तक जांच हुई। टीम ने मेडिकल वेस्ट से निकलने वाले पानी की प्राथमिक जाच की। संदिग्ध दिखने पर पानी के सैंपल साथ ले गई। इनकी रिपोर्ट आने के बाद जांच रिपोर्ट तैयार की जाएगी। प्लांट मालिक की दरख्वास्त पर हुआ निरीक्षण परसाखेड़ा में कई सालों से चल रहे इनविराड बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट में मानक पूरे न होने के चलते क्षेत्रीय कार्यालय ने प्लांट चलाने की अनुमति नहीं दी थी। जिसके बाद प्लांट संचालक ऋषि कपूर ने स्थानीय रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए लखनऊ से जांच कराने की दरख्वास्त की थी। इसी के चलते प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की लखनऊ एवं बरेली की आठ सदस्यीय टीम शुक्रवार शाम करीब चार बजे बायो मेडिकल वेस्ट प्लाट पर पहुंची।
मेडिकल वेस्ट से भरी पन्नी और दबी राख पर भड़के
टीम का नेतृत्व लखनऊ से आए सहायक पर्यावरण अभियंता सीबी वर्मा कर रहे थे। साथ क्षेत्रीय अधिकारी एके चौधरी भी थे। मेडिकल वेस्ट प्लाट में लगी मशीनों को देख रिपोर्ट में दर्ज किया। फिर टीम मेडिकल वेस्ट के स्टोर पहुंची। यहां मेडिकल वेस्ट से भरे थैले मिले। वहीं, बड़े क्षेत्र में गढ्डा कर राख भी दबाई जा रही थी।
सामने आया क्षमता से ज्यादा क्षेत्र का सवाल
मेडिकल वेस्ट प्लाट की क्षमता सौ किलो और डेढ़ सौ किलो प्रति घंटे और अधिकतम सीमा 12 हजार बेड के बायो मेडिकल वेस्ट की है। यहा बरेली, पीलीभीत, रामपुर, शाहजहापुर और बदायूं का मेडिकल वेस्ट पहुंचता है। जबकि बरेली सीएमओ ही अपनी ओर से बरेली में 12 हजार बेड दिखा चुके हैं। ऐसे में क्षमता से ज्यादा एरिये का सवाल टीम के सामने भी उठा।
किसने क्या कहा
समय-समय पर बरेली प्रदूषण बोर्ड द्वारा प्लाट की जांच होती है। प्लाट में सभी चीजें मानक अनुरूप ही हैं। - ऋषि कपूर, प्लांट संचालक
बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट के जरूरी नियमों का पूरी तरह पालन नहीं मिला है। कुछ सैंपल लिए हैं। जांच के बाद विस्तृत रिपोर्ट देंगे। - सीबी वर्मा, सहायक पर्यावरण अभियंता, लखनऊ