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Independence Day 2020 : 1857 की क्रांति में विद्रोह कर लूटा था खजाना, 1930 में तोड़ा था नमक कानून Badaun News

UP Independence Day महात्मा गांधी भी जब बदायूं आए तो यहां के लोगों ने उनका दिल खोलकर साथ दिया। नमक कानून तोडऩे का आंदोलन भी चलाया। उनकी कुर्बानी का ही प्रतिफल है।

By Ravi MishraEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 08:00 AM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 01:30 PM (IST)
Independence Day 2020 : 1857 की क्रांति में विद्रोह कर लूटा था खजाना, 1930 में तोड़ा था नमक कानून Badaun News
Independence Day 2020 : 1857 की क्रांति में विद्रोह कर लूटा था खजाना, 1930 में तोड़ा था नमक कानून Badaun News

बदायूं, जेएनएन। Independence Day 2020 : स्वाधीनता आंदोलन में देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने में जिले के क्रांतकारियों ने भी अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। आजादी की लड़ाई में फैजगंज बेहटा से लेकर नगला शर्की, गुलडिय़ा, ककराला समेत जिले के हर कोने से निकले क्रांतिकारी कदम से कदम मिलाकर लड़ाई लड़ते रहे और आखिरकार अंग्रेजों को भगाकर दम लिया।

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महात्मा गांधी भी जब बदायूं आए तो यहां के लोगों ने उनका दिल खोलकर साथ दिया। नमक कानून तोडऩे का आंदोलन भी चलाया। उनकी कुर्बानी का ही प्रतिफल है कि आज हम स्वाभिमान के साथ खुली हवा में सांस ले रहे हैं, तिरंगा शान से लहरा रहा है। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1857 में जब मेरठ में आंदोलन की शुरूआत हुई थी, उसकी आग यहां बदायूं में भी धधकी थी। सबसे पहले बेहटा गुसाई में आक्रोश पनपा था। एक जून 1857 को पहरेदारों ने बगावत कर खजाना लूट लिया था और बंदियों को रिहा करा लिया था। बिल्सी में नील का कारखाना भी तबाह कर दिया गया था।

सैनिकों के विद्रोह करने के बाद आम नौजवानों में भी क्रांति की ज्वाला भड़क उठी थी। बिल्सी, गुधनी, इस्लामनगर, उझानी, संजरपुर, खुनक, ककराला, बेलाडांडी, हत्सा, बिसौली, करियामई, पीपरी के क्रांतिकारियों के नाम आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। 1930 में गुलडिय़ा में हजारों की संख्या में एकत्रित होकर लोगों ने नमक कानून तोड़ा था। शहर में यूनियन क्लब से भी अंग्रेजों का खुला विरोध किया गया था। ककराला में हुई थी आमने-सामने की लड़ाई क्रांतिकारियों के आंदोलन को अंग्रेजी हुकूमत कुचलने में लगी थी।

27 अप्रैल 1957 को ब्रिटिश फौज ने आधी रात को उसहैत से ककराला की तरफ कूंच किया। जनरल पैनी तोपखाना और सैनिकों केक साथ आगे बढ़ रहा था। जब वह ककराला से एक मील दूर रह गया था तब सुबह हो चुकी थी। डॉ.वजीर अहमद और फैज अहम फैज की जमात ने अंग्रेजी सैनिकों पर हमला बोल दिया था। यहां आमने-सामने की लड़ाई में अंग्रेजी फौज को पीछे हटनी पड़ी थी। हालांकि बाद में अंग्रेज सैनिकों ने तोपखाना चलाकर अपना कब्जा जमा लिया था।

बितरोई रेलवे स्टेशन को लगा दी थी आग

आजादी की लड़ाई में युवाओं के साथ बुजुर्ग और महिलाओं ने भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। बड़ी संख्या में क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया था। 1941 में चौधरी बदन ङ्क्षसह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने बितरोई रेलवे स्टेशन पर आग लगा दी थी। इसके बाद अंग्रेजी सैनिक उन्हें तलाशने लगे थे, तब उन्होंने बरेली कॉलेज के इतिहास विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष चेतराम ङ्क्षसह के यहां रहकर आंदोलन को आगे बढ़ाया था। दो बार जिले में आए थे गांधी जी स्वाधीनता आंदोलन की अलख जगाने के लिए महात्मा गांधी भी दो बार यहां आए थे।

पहली बार एक मार्च 1921 में असहयोग अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ आंदोलन के दौरान पहुंचे थे। रेलवे स्टेशन से जुलूस निकला था और सभा भी हुई थी। दूसरी बार वह 9 नवंबर 1929 में बदायूं आए थे। जिले के क्रांतिकारियों ने उनका भरपूर समर्थन करते हुए आंदोलन को प्रभावी बनाने का विश्वास दिलाया था और आर्थिक मदद भी दी थी। स्वतंत्रता दिवस पर उन क्रांतिकारियों का नाम बरबस ही जुबां पर आ जा रहा है, जिन्होंने देश को आजाद कराने में अपना सर्वस्व होम कर दिया था। 


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