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Republic Day Jagran Special : प्रथम गणतंत्र दिवस पर आजादी की पहली सुबह देखने वाले बोले- हर तरफ था देशभक्ति का माहौल Bareilly News

उन्होंने आजादी की पहली सुबह देखी तो पूर्ण स्वराज्य बनने के क्षण के साक्षी भी बने। 26 जनवरी 1950 के वह गौरवमयी क्षण उन्हें आज भी याद है

By Ravi MishraEdited By: Published: Sun, 26 Jan 2020 11:17 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 05:53 PM (IST)
Republic Day Jagran Special : प्रथम गणतंत्र दिवस पर आजादी की पहली सुबह देखने वाले बोले- हर तरफ था देशभक्ति का माहौल Bareilly News
Republic Day Jagran Special : प्रथम गणतंत्र दिवस पर आजादी की पहली सुबह देखने वाले बोले- हर तरफ था देशभक्ति का माहौल Bareilly News

 जेएनएन, बरेली : उन्होंने आजादी की पहली सुबह देखी तो पूर्ण स्वराज्य बनने के क्षण के साक्षी भी बने। 26 जनवरी 1950 के वह गौरवमयी क्षण उन्हें आज भी याद है, जब संविधान को लागू करने के साथ ही भारत को स्वतंत्र गणराज्य घोषित किया गया। 71वें गणतंत्र दिवस पर हमने उम्र के 80 पड़ाव पूरे कर चुके ऐसे ही कुछ बुजुर्गो से बात की। जानने की कोशिश की कि आखिर उस दिन शहर से लेकर गांव तक माहौल कैसा था। किस तरह लोग इस राष्ट्रीय उत्सव में शरीक हुए थे। जिक्र करते ही आंखों में चमक आ गई। इतनी उम्र हो जाने के बाद भी उस दिन का एक-एक क्षण उन्हें बखूबी याद है। पहले गणतंत्र दिवस से जुड़े उनके बेहद रोचक संस्मरण।

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26 जनवरी 1950 का दिन काफी खास था। उस दिन तो पूरा शहर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। सड़कों को झालरों से सजाया गया था। भारत माता की जय के नारे लगाते हुए टोलियां निकल रही थीं। 15 अगस्त 1947 के बाद यह दूसरा मौका था, जब इस तरह का उत्साह देखने को मिल रहा था। उस समय स्कूल में पढ़ता था। संविधान लागू हो चुका है यह पता था। झंडे लेकर स्कूल पहुंच गए। खूब नारे लगाए। अब तक 15 अगस्त को ही ऐसा उत्सव होता था। बताया गया कि अब इसे भी राष्ट्रीय उत्सव की तरह मनाया जाएगा। शाम में फिर से शहर में घूमने निकले। तिरंगे वाली लाइट जल रही थीं। उस दिन जो उल्लास व उमंग थी वह अब तक याद है। - नानक चंद्र मेहरोत्रा, शाहजहांपुर

1950 में मेरी उम्र लगभग 13 वर्ष की रही होगी। उस समय हम खुदागंज में रहते थे। 26 जनवरी की सुबह परचून की दुकान पर बैठे हुए थे। लोग हाथों में झंडा लेकर भारतमाता के जयकारे लग रहे थे। दुकानों पर लड्डू की खरीदारी हो रही थी। सबके चेहरों पर खुशी थी। उत्सव सा माहौल था। जो आजादी के बाद दूसरी बार देखने को मिला। हम भी उस जश्न में शामिल हुए। कस्बे में धूमधाम से गणतंत्र दिवस मनाया। उल्लास के साथ झंडा फहराया गया, सभी ने राष्ट्रगान भी गाया। बताया कि अब हर वर्ष इस दिन उत्सव मनाया जाएगा। बहुत खुशी हो रही थी। कुछ वर्षों तक तो वैसा उल्लास देखने को मिला, लेकिन अब दिखावा ज्यादा हो रहा है। - राजेंद्र कुमार आर्य, शाहजहांपुर

हमारा परिवार उस समय रंगमहला में रहता था। बहुत ज्यादा तो याद नहीं, लेकिन हां उस समय मेरी उम्र लगभग दस वर्ष रही होगी। गणतंत्र दिवस के बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं पता था, लेकिन सुबह जब उठा तो हर तरफ उत्सव सा माहौल था। ऐसा माहौल 15 अगस्त को ही देखा था। इसलिए परिवार वालों से पूछा कि आज क्या है तो उन्होंने बताया कि देश पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गया है। उस समय मंगलसेन स्कूल में पढ़ता था। वहां गया तो कार्यक्रम हुए। देशभक्ति के गीत गाए गए। मिठाई बांटी गई, हम लोगों को गणतंत्र दिवस के बारे में बताया गया। गजब का उत्साह था लोगों में उस दिन। हर तरफ तिरंगा लहरा रहा था। घरों की छतों पर भी लोगों ने झंडे लगा रखे थे। -प्रहलाद राय अग्रवाल, शाहजहांपुर

देश आजाद हुआ तो पूरे देश में हर्षोल्लास था। 26 जनवरी 1950 को जब हमारे देश का संविधान लागू हुआ तो मेरी उम्र करीब 19 वर्ष थी। मन में आजादी मिलने और अपना संविधान लागू होने की खुशी हिलोरें मार रही थी। सहसवान में गजब का उल्लास था। संविधान लागू होने के बाद तहसील भवन में तहसीलदार द्वारा पहली बार 26 जनवरी को ध्वजारोहण किया गया तो सरकारी कर्मचारियों के साथ काफी लोग कार्यक्रम में शामिल हुए थे। मैं भी इस कार्येक्रम को देखने गया था। उस समय मन में जो अनुभूति थी उसे आज शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। गणतंत्र दिवस के दौरान आज भी कार्यक्रम देखते समय पहले ध्वजारोहण की तस्वीर नजरों के सामने घूमने लगती है। -राजेंद्र नारायण सक्सेना, बदायूं

मेरी उम्र 84 वर्ष हो गई। 1950 में गांव के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा चार में पढ़ रहा था। उस दिन स्कूल में जलसा होना था। गांव में भी काफी चहल पहल थी। मिठाई बांटी जा रही थी। आजादी तो हमें पहले ही मिल चुकी थी। उसकी हल्की याद भी ताजा थी, इसलिए अपने पिता मुंशी सिंह से पूछा कि आज 15 अगस्त तो नहीं है, फिर उत्सव क्यों मनाया जा रहा है। पिताजी ने बताया कि अंग्रेज सरकार की गुलामी से पूरी तरह आजादी मिली है। हमारा अपना संविधान देश में लागू हो गया है। उस समय बात ज्यादा तो समझ नहीं आई थी, लेकिन हां जलसे में खूब आनंद आया था। उस समय जो जोश व उत्साह लोगों में था। अब नहीं है। अधिकांश युवाओं में तो राष्ट्रप्रेम दिखावा बन गया है। -लल्ला सिंह, शाहजहांपुर

देश आजाद हो चुका था। व्यवस्थाएं बदलने लगी थीं। माता-पिता से अंग्रेजों के शासनकाल के बारे में सुनते रहते थे। 25 जनवरी का दिन था। नगर में काफी चहल-पहल थी। सरकारी भवनों को सजाने के लिए रंग-बिरंगी झालरें लगाई जा रही थीं। पिताजी से पूछा तो उन्होंने बताया कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा। उस समय मेरी उम्र 11 वर्ष रही होगी। स्कूल में भी कार्यक्रम हुआ था। वहां पर झंडा फहराया गया। इस दिन के बारे में बहुत तो ज्यादा नहीं पता था, लेकिन गुरुजी ने बताया कि भारत पूरी तरह स्वतंत्र हो गया है। उस दिन स्कूल में मिठाई बांटी गई थी। जगह-जगह चौराहों पर युवाओं की टोलियां मौजूद थी। उस दिन उत्सव सा माहौल था। -शंकर शरण अग्रवाल, शाहजहांपुर

देश का माहौल तो 1947 में आजादी मिलने के बाद ही बदल गया था, लेकिन 1950 में जब भारतीय संविधान लागू हुआ और पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया तो उल्लास चरम पर था। उस समय मेरी उम्र 14 साल थी। पहले गणतंत्र दिवस की सुबह वाली धुंधली तस्वीर अब भी याद है। नगर के हर वासी के दिल में गजब का उत्साह था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आया जोश इस दिन और ज्यादा बढ गया। उस समय नगर में एक-दो रेडियो थे। जिन पर लालकिले से हुए प्रसार को सभी ने सुना। जगह-जगह मिठाई बांटी गई, एक-दूसरे को गले लगाकर राष्ट्रप्रेम का संदेश दिया गया। आज भी उसी जोश और जज्बे की जरूरत है। -ब्रह्मेंद्र मिश्र शास्त्री, संस्कृतविद, बदायूं

स्वतंत्र भारत के पहले गणतंत्रत दिवस पर गजब का उत्साह दिखाई दे रहा था। जिले से लेकर दिल्ली तक जश्न का माहौल रहा। उस समय मैं हाईस्कूल का विद्यार्थी था। मन में इतना उत्साह था कि खुद को रोक नहीं सका और साथियों के साथ परेड देखने दिल्ली तक पहुंच गया। वहां देश के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद ने जब तिरंगा फहराया तो हर कोई खुशी से झूम उठा। उस समय जब झाकियां निकल रही थीं तो हर कोई अपनी जगह पर खड़ा होकर उन्हें सम्मान दे रहा था। राजपथ से लेकर लाल किला तक लोगों का हुजूम उमड़ा था। बाद में साथियों के साथ राष्ट्रपति भवन भी गए थे। वहां का माहौल और व्यवस्था भी देखी थी। उस समय की स्मृतियां आज भी याद करने मन गर्वित हो उठता है। - डॉ. मनीराम मिश्र, सेवानिवृत्त प्राचार्य, बदायूं


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