शरद पूर्णिमा में इस बार बन रहा 27 योगों में सभी मनोरथोंं को पूर्ण करने वाला सिद्धि योग
शारदीय नवरात्र के बाद रात्रि व्यापिनी शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर शुक्रवार को मनाई जाएगी। पूर्णिमा शाम 5 बजकर 45 मिनट से प्रारंभ हो जाएगी। जो 31 अक्टूबर को रात 8 बजकर 21 मिनट तक रहेगी। महालक्ष्मी विष्णु पूजा और खुले आसमान के नीचे खीर रखने की परंपरा है।
बरेली जेएनएन : शारदीय नवरात्र के बाद रात्रि व्यापिनी शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर शुक्रवार को मनाई जाएगी। पूर्णिमा इस दिन शाम 5 बजकर 45 मिनट से प्रारंभ हो जाएगी। जो 31 अक्टूबर को रात 8 बजकर 21 मिनट तक रहेगी महालक्ष्मी विष्णु पूजा और खुले आसमान के नीचे खीर रखने की परंपरा का कार्य 30 अक्टूबर को ही किया जाएगा। स्नान व्रत दान की पूर्णिमा का मान 31 को होगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश मिश्रा ने बताया कि शरद पूर्णिमा पर रात में खुले आसमान के नीचे खीर रखने की भी परंपरा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रात में माता लक्ष्मी खीर का भोग लगाती हैं। चंद्रमा की अमृतमयी किरणें पड़ने से खीर अमृत के समान बन जाती है। पुराणों के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण को आती हैं। इसलिए इस पर्व को कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु का विधि विधान से पूजन और व्रत करने से माता लक्ष्मी सुख समृद्धि ऐश्वर्य का वरदान देती हैं। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होकर अपनी अमृतमयी किरणों की बारिश करता है। कहां जाता है चंद्र दोष से पीड़ित और ऐसे लोग जिनकी कुंडली में चंद्रमा नीच राशि का हो या चंद्रमा कि महादशा अंतर्दशा चल रही हो उन्हें शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजन करने से काफी हद तक दोषो से मुक्ति मिल जाती है। इस बार तो पूर्णिमा का महत्व हजारों गुना बढ़ गया है क्योंकि 27 योगों में सभी मनोरथो को पूर्ण करने वाला सिद्धि योग भी इस दिन व्याप्त रहेगा।
ग्रह नक्षत्रों का बनेगा दुर्लभ संयोग
आचार्य मुकेश मिश्रा ने बताया कि शरद पूर्णिमा पर मीन राशि में चंद्रमा और कन्या राशि में मंगल रहेगा। इस तरह दोनों ग्रह एक दूसरे के बिल्कुल आमने सामने रहेंगे। वहींं हस्त नक्षत्र में भी मंगल रहेगा। जोकि चंद्रमा के स्वामित्व वाला नक्षत्र है और चंद्रमा मंगल की दृष्टि के कारण महालक्ष्मी योग का निर्माण होगा। साथ ही सिद्धि योग तो और चार चांद लगा देगा।
श्रीकृष्ण ने भी रचाया था इस दिन महारास
धर्म ग्रंथों के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। इसलिए इस पूर्णिमा को श्री कृष्ण की रास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य अनंत मंगल दायक और कल्याणकारी होता है। क्योंकि इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण प्रभाव में होता है।
खुले आसमान के नीचे खीर रखने का वैज्ञानिक महत्व
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा धरती के बहुत नजदीक आ जाता है। चंद्रमा के प्रकाश में मौजूद दिव्य रासायनिक तत्व सीधे पृथ्वी पर गिरते हैं। ऐसे में खुले आकाश के नीचे की रखने से उसमें सभी पोषक तत्व मिल जाते हैं जो हमारी सेहत के लिए काफी अनुकूल होते हैं। मान्यता है खाने की प्रत्येक चीज चंद्रमा की रोशनी में रखी जा सकती है। सफेद रंग चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करता है ऐसे में खीर को शुद्ध सात्विकता से जोड़ कर देखते हुए खीर को ही चंद्रमा की रोशनी में रखने का विधान है।