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बरेली की 27 साल की देवांशी ने लिया ऐसा फैसला कि टूट गई रूढि़वादी सोच Bareilly News

यह एक ऐसाघर है जिसमें तीन पीढिय़ां रहती हैं। जिनमें अंग्रेजों का शासन काल देख चुकी 80 साल की नानी हैं नए जमाने की सोच रखने वाली मां हैं और आजाद विचारों वाली 27 साल की बेटी है

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Wed, 23 Oct 2019 09:26 AM (IST)Updated: Wed, 23 Oct 2019 05:52 PM (IST)
बरेली की 27 साल की देवांशी ने लिया ऐसा फैसला कि टूट गई रूढि़वादी सोच Bareilly News
बरेली की 27 साल की देवांशी ने लिया ऐसा फैसला कि टूट गई रूढि़वादी सोच Bareilly News

केके सक्सेना, बरेली : यह एक ऐसा घर है जिसमें तीन पीढिय़ां रहती हैं। जिनमें अंग्रेजों का शासन काल देख चुकी 80 साल की नानी हैं, नए जमाने की सोच रखने वाली मां हैं और आजाद विचारों वाली 27 साल की बेटी है देवांशी। वो देवांशी, जिन्होंने ऐसा फैसला लिया जिसने रूढिय़ों को तोड़ दिया। एक अनाथ बच्ची को गोद लिया, उसे मां का दुलार दे रहीं। मार्च में उन्हें पता चला कि कोई अपनी बच्ची को सड़क पर छोड़कर चला गया है। उस बच्ची को एक संस्था के सुपुर्द कर दिया गया। देवांशी ने मई में उस बच्ची को गोद ले लिया, तब वह नवजात छह महीने की थी। 

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बच्ची ने तोड़ा घर का सन्नाटा

वर्ष 1992 में उनके पिता रामाश्रय यादव बाजपुर में शहीद हो गए थे। जिसके बाद मां संजू यादव को नौकरी मिली और अब वह डिप्टी एसपी हैं। घर में मां, नानी और देवांशी हैं। जब से बच्ची को गोद लिया, घर का सन्नाटा टूट गया। कहती हैं कि जब उसे गोद ले रही थी तब नानी ने सवाल खड़े किए समाज क्या कहेगा। कौन शादी करेगा? लोग तरह-तरह की बातें कहेंगे। मां को भी इन सवालों ने बेचैन किया मगर समझाया तो सहमति दे दी। घर में सारी रस्म रिवाज करके नामकरण कराया। किसी को नहीं पता बच्ची के मां-बाप कौन हैं। वह किस धर्म की है।

कोई अनाथ नहीं होता समाज बनाता है अनाथ

देवांशी कहती हैं कि कोई बच्चा अनाथ नहीं होता, अनाथ तो उसे समाज बनाता है। लोग अपने बच्चे व उनके रिश्तेदारों के बच्चे से ऊपर सोचते ही नहीं। हमें सोचना चाहिए हर बच्चा एक परिवार चाहता है।

सिंगल पैरेंट्स एडोप्शन को स्वीकार करना चाहिए

देवांशी कहती हैं कि लोगों और समाज को अब सिंगल पैरेंट्स एडॉप्शन को भी स्वीकार करना चाहिए। मशहूर हीरोइन सुष्मिता सेन ने बगैर शादी किए बेटी को गोद लिया है। वह खुश है। कुछ और भी ऐसे उदाहरण हैं।

बच्चों के लिए गैराज को बना डाला पाठशाला

देवांशी पांच सालों से बच्चों के लिए काम कर रही हैं। चौकी चौराहा पर नंगे पैर गुब्बारे बेचते बच्चों को देखा तो अपने घर ले आईं थीं। उन्हें पढ़ाया। ऐसे 25-30 बच्चों को शिक्षा का इंतजाम कर रहीं। बच्चों की संख्या बढ़ गई तो उन्होंने अपने गैराज को डेकोरेट कर पाठशाला बना लिया।

शादी उसी से करुंगी जो बच्ची को भी स्वीकारे

देवांशी दिल्ली में मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई कर चुकी हैं। कहती हैं कि गोद ली हुई बच्ची उनके परिवार का हिस्सा है। भविष्य के बाबत कहती हैं कि शादी उसे से करुंगी जो गोद ली हुई इस बच्ची को भी स्वीकारे।

बेटी की सोच पर गर्व है। उसने एक बच्ची का जीवन बनाने का संकल्प लिया है। हम उसके फैसले के साथ हैं।

संजू यादव, देवांशी की मां


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