Republic Day : बरेली में परिवर्तन की पतवार बनीं ये शख्सियतें... Bareilly News
नियम कानून और जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी अपनी जीवन-दिनचर्या में उतारा। लेकिन जब हक की आवाज उठाने की जरूरत पड़ी तो वह भी बुलंद हुई।
जेएनएन, बरेली : नियम, कानून और जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी अपनी जीवन-दिनचर्या में उतारा। लेकिन जब हक की आवाज उठाने की जरूरत पड़ी तो वह भी बुलंद हुई। ऐसी कि नए कानून बनाने का दरवाजा खोल गई। गणतंत्र दिवस पर आपको 'दैनिक जागरण' शहर के ऐसे ही कुछ शख्सियत से मिलाने जा रहा है जिन्होंने बड़े परिवर्तन से समाज और युवाओं की राह आसान की...
तीन तलाक के खिलाफ आवाज बनकर उभरीं फरहत, निदा
फरहत नकवी और निदा खान आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है। इनकी गिनती देश की उन संघर्षशील महिलाओं में होती है जिन्होंने तमाम दिक्कतों के बावजूद तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की। सैकड़ों पीडि़ताओं की आवाज बनकर उभरीं। यही नहीं बहु विवाह और हलाला प्रथा के खिलाफ भी दोनों लगातार आवाज बुलंद कर रही हैं।
निदा आला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी और फरहत मेरा हक फाउंडेशन नाम से सामाजिक संस्था चलाती हैं। निदा खान आला हजरत खानदान की बहू थीं लेकिन पति ने तलाक दे दिया। जिसके बाद वो अपने मायके में रह रही हैं और पति के खिलाफ उनकी कानूनी जंग भी जारी है। जबकि फरहत नकवी को भी उनके पति ने तीन तलाक दे दिया था। इसके खिलाफ उन्होंने भी आवाज बुलंद की। उनका मामला कोर्ट में लंबित है। फरहत मेरा हक फाउंडेशन के जरिए अब तीन तलाक, बहुविवाह, हलाला जैसे मुद्दों के खिलाफ जंग लड़ रही हैं। वह इन कुरीतियों से पीडि़त महिलाओं की मदद करती हैं। निदा आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी की अध्यक्ष हैैं।
हलाला का पहला मुकदमा
किला थाना क्षेत्र में रहने वाली विवाहिता को तीन तलाक के बाद ससुर से हलाला कराया गया। निदा खान के इसके खिलाफ आवाज उठाने के बाद यह मामला तूल पकड़ गया। यह तीन तलाक कानून लागू होने से पहले की बात है। पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए आरोपित पति, ससुर और देवर इत्यादि पर मुकदमा दर्ज किया। ससुर से हलाला को लेकर दुनियाभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई। यहां तक कि दिवंगत पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी ट्वीट कर नाराजगी जताई थी।
बरेली में फतवे का पहला मुकदमा
हलाला का मामला प्रमुखता से उठाने के बाद निदा खान के खिलाफ दरगाह आला हजरत से जुड़े मुफ्तियों ने फतवा जारी किया। यह अपनी तरह का पहला कठोर फतवा था, जिसमें कहा गया था कि मुसलमान उनसे सभी तरह के संबंध तोड़ लें। यहां तक कि बीमार पड़ जाएं तो देखने नहीं जाएं और मरने पर कब्रिस्तान में दफनाने के लिए जमीन नहीं दी जाए। फतवे पर मुकदमा दर्ज हुआ और अल्पसंख्यक आयोग की टीम स्वत: संज्ञान लेकर जांच के लिए बरेली आई थी।
लाखों छात्रों के हक की लड़ाई लड़ी
रुहेलखंड विश्वविद्यालय में एलएलएम के छात्र अवधेश प्रताप सिंह वह शख्स हैं जिन्होंने लाखों युवाओं के हक की न केवल लड़ाई लड़ी बल्कि उन्हें सफलता भी दिलाई। आज भी अवधेश अपने अधिकारों की लड़ाई जारी रखे हुए हैं।
मूल रुप से आजमगढ़ के रहने वाले अवधेश प्रताप सिंह ने कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से एलएलबी की है। इस दौरान उन्होंने देश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय में कई सुधारात्मक बदलाव करवाए। सत्र 2015-16 में लॉ के पर्यावरण विधि के पेपर में तीन सवाल आउट ऑफ कोर्स पूछे गए थे। आपत्तियां कई छात्रों की थी लेकिन किसी ने इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई। अवधेश ने बिना किसी डर के इसके खिलाफ आवाज उठाई। विश्वविद्यालय को अपनी गलती माननी पड़ी और करीब दो लाख छात्रों को विश्वविद्यालय ने उस परीक्षा में 12 प्रतिशत औसत अंक दिया।
पाठ्यक्रम से पुराने कानून को हटवाया
समाजवादी सरकार में लैंड लॉ पर नया कानून बना था लेकिन सीएसजेएमयू सहित कई विश्वविद्यालयों में विधि छात्रों को पुराने कानून को ही पढ़ाया जाता रहा। इसके खिलाफ भी अवधेश ने आवाज उठाई। मजबूरन विश्वविद्यालय को उनकी बात माननी पड़ी और सत्र 2016-17 में पाठ्यक्रम बदल गया।
विवि छोडऩे के बाद भी जंग रखी जारी
अवधेश ने कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के कई गलत नियमों के खिलाफ अभी भी जंग जारी रखी है जबकि वहां से उनकी पढ़ाई पूरी हो चुकी है। अवधेश ने विश्वविद्यालय के चैलेंज इवैल्यूशन नियमों को गलत ठहराया था। हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ी। मजबूरन विश्वविद्यालय को नियम बदलना पड़ा। हालांकि अभी भी यह लड़ाई अवधेश ने जारी रखी है क्योंकि वह सही नियम के तहत खुद का उपचार भी चाहते हैं।
सूचना न देने पर आयोग में लड़ी लड़ाई
अवधेश ने कई मुद्दों पर छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना मांगी थी लेकिन हर बार विश्वविद्यालय गुमराह करता रहा। दो से तीन साल निकल गए लेकिन अवधेश ने हार नहीं मानी। अभी दिसंबर में ही सूचना आयोग ने विश्वविद्यालय को फटकार लगाते हुए 25 हजार रुपये का जुर्माना ठोक दिया है। यही नहीं 24 मार्च 2020 तक स्पष्टीकरण भी मांगा है। कहा है कि अगर नहीं मिलता तो जुर्माने के साथ हर्जाना भी देना होगा।