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रजा की कोशिश से संवरेगा मोहन मंदिर

बरेली क्षेत्र के उपनिदेशक पर्यटन वीरेश कुमार ने मंदिर के जीर्णोद्धार और सुंदरीकरण का प्रस्ताव पर्यटन महानिदेशक को भेजा है।

By Edited By: Published: Sat, 10 Feb 2018 02:24 AM (IST)Updated: Sat, 10 Feb 2018 09:23 AM (IST)
रजा की कोशिश से संवरेगा मोहन मंदिर
रजा की कोशिश से संवरेगा मोहन मंदिर
जागरण संवाददाता, बरेली : आजादी की क्रांति के लिए पहली चिंगारी सन् 1857 मे गदर से जली थी। इस गदर मे रुहेलखंड की धरती पर अंग्रेजो के पांव उखाड़ने वाले ¨हदू क्रांतिकारियो की याद मे बनाए गए एक मंदिर को संवारने की सुध सरकार को 161 सालो बाद आई। वह भी एक मुस्लिम युवक उर्फी रजा की शिद्दत और पहल पर। डीएम से लेकर मुख्यमंत्री तक की गई कोशिशे रंग लाई। बरेली क्षेत्र के उपनिदेशक पर्यटन वीरेश कुमार ने मंदिर के जीर्णोद्धार और सुंदरीकरण का प्रस्ताव पर्यटन महानिदेशक को भेजा है। मुस्लिम नवाब के वंशज ने बनवाया था मंदिर यह मंदिर शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर नवाबगंज तहसील के थाना सेथल के पास पट्टी गांव मे स्थापित है। नाम मोहन मंदिर। स्थापना कराई थी सेथल के नवाब गालिब अली के छोटे बेटे मीर मुहम्मद जफर ने। मुस्लिम नवाब के वंशज के हाथो किसी मंदिर की स्थापना करने की जिक्र थोड़ा चौकाता है ना। मंदिर की स्थापना के पीछे का इतिहास भी कम रोचक नही है। स्थानीय निवासियो के मुताबिक, गदर के वक्त मे सेथल रियासत मे नवाब गालिब अली का हुक्म चलता था। 1857 के गदर के बाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उठे विद्रोह की तपिश रुहेलखंड भी पहुंची थी। तब क्रांतिकारी खान बहादुर खान की मदद के लिए नवाब ने सेथल निवासी खेमकरन अहीर की अगुवाई मे एक टुकड़ी बनाई थी। इस टुकड़ी मे सेथल क्षेत्र के ही गांव पट्टी निवासी भोला बेलदार भी शामिल था। दोनो ने फिरंगी फौज से जमकर लोहा लिया था। उसी गांव मे फांसी मिली जहां लिया अंग्रेजो से लोहा दोनो की जांबाजी ने रुहेलखंड की धरती पर अंग्रेजो के पांव उखाड़ डाले थे। लेकिन, अंग्रेजी सैनिको की संख्या बढ़ने पर ताकत कमजोर हुई थी। जांबाजी से लड़ने वाले दोनो क्रांतिकारियो को अंग्रेजी फौज ने बंधक बना लिया था। इन दोनो को सेथल के उसी पट्टी गांव मे फांसी दी गई थी, जहां जांबाजी से लड़े। नवाब के बेटे ने अपनी जांबाज फौज की याद मे एक मस्जिद बनवाई और इसी के पास मे दोनो हिदू वीरो को पहचान देने के लिए मंदिर भी बनवाया था। गांव के मुस्लिम युवक ने की कोशिश आजादी के 161 साल बाद मंदिर जीर्ण हालत मे पहुंच गया। इसी गांव के युवक उर्फी रजा ने मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए पहले गांव और फिर क्षेत्र के लोगो को जोड़ा। लेकिन, वक्फ संपलिा होने पर पेच फंसा। उर्फी ने यात्री शेड और जीर्णोद्धार के लिए डीएम से लेकर मुख्यमंत्री तक की चौखट पर गुहार लगाई। सीएम ऑफिस के निर्देश पर मामला पर्यटन विभाग पहुंचा। अब बरेली पर्यटन विभाग के उपनिदेशक वीरेश कुमार ने मंदिर के जीर्णोद्धार व सुंदरीकरण के लिए इसे जिला योजना मे शामिल करने का प्रस्ताव पर्यटन निदेशक को भेजा दिया है। --------------- हमारे गांव के वीरो ने अंग्रेजी हुकूमत को धूल चटाई थी। गांव मे मंदिर हम सबके लिए आजादी की निशानी के साथ ही प्रेरणा है। वतनपरस्ती का जज्बा जगाने वाला यह मंदिर अब जीर्ण हो चुका है। इसके लिए तमाम कोशिशे की। खुशी है अब सरकारी सिस्टम ने सुध ली। कोशिश है कि पर्यटन विभाग इसे विकसित करे तो लोगो को आजादी के लिए अपने वीरो की कुर्बानी का महत्व पता चल सकेगा। -उर्फी रजा, निवासी सेथल

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