World Television Day: स्मार्ट तो हुआ पर मिलनसार न रहा 'बुद्धू बक्सा'
आज एक क्लिक पर सैकड़ों चैनल ओटीटी प्लेटफार्म आपके स्मार्ट टीवी पर हैैं। लेकिन इस स्मार्टनेस में खत्म होने लगा परिवारों के बीच का लगाव। आज सभी अपने-अपने कमरों में कैद होकर अलग-अलग प्रोग्राम देखते हैैं। इससे स्मार्टनेस तो बढ़ी लेकिन इंसानियत खोती जा रही।
बरेली, जेएनएन : वर्ष 1925 में टेलीविजन का आविष्कार जेएल बेयर्ड ने किया। श्याम-श्वेत (ब्लैक एंड व्हाइट) स्क्रीन वाले टेलीविजन को बुद्धू बक्सा कहा जाने लगा। इसके कुछ समय बाद बरेली में भी सीमित घरों तक टीवी पहुंचा। पूरा परिवार एक साथ बैठकर कार्यक्रम देखता था। बीच-बीच में एक दूसरे की जरूरत, गतिविधियां जानता था। लेकिन समय के साथ-साथ बक्सा बुद्धू नहीं रहा बल्कि तकनीक के मामले में स्मार्ट होता चला गया। आज एक क्लिक पर सैकड़ों चैनल, ओटीटी प्लेटफार्म आपके स्मार्ट टीवी पर हैैं। लेकिन इस स्मार्टनेस में खत्म होने लगा परिवारों के बीच का लगाव। आज सभी अपने-अपने कमरों में कैद होकर अलग-अलग प्रोग्राम देखते हैैं। इससे स्मार्टनेस तो बढ़ी लेकिन इंसानियत खोती जा रही।
रामायण-महाभारत साथ देखकर मिलते थे संस्कार
शहर निवासी एचएल यादव बताते हैैं पहले ब्लैक एंड व्हाइट टीवी पर महज दूरदर्शन था। इसमें सीमित और ज्ञानवर्धक नाटक आते थे। शुरू-शुरू में पूरा मुहल्ला उस घर में आता था, जहां रामायण और महाभारत टेलीकास्ट होता था। फिर परिवार के सदस्य साथ बैठकर टेलीविजन देखते। इससे बच्चों को समय-समय पर सीख और संस्कार भी मिलते थे। इसके अलावा उनकी दिनचर्या पर भी बैठकर बात हो जाती थी।
1991 से शुरू हुआ केबिल का जाल
शहर में सन 1991 से केबिल का जाल फैलना शुरू हुआ। सिविल लाइंस में गोल्डन व्यूज और केबिल विजन ने लोगों के घर तक चैनल पहुंचाए। केबल ऑपरेटर राजीव गुप्ता बताते हैैं कि शुरूआत चार केबल कनेक्शन से हुई। आज शहर में करीब 75 हजार कनेक्शन हैैं। लेकिन ओटीटी प्लेटफार्म आने के बाद माहौल फिर बदल रहा है।