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पराली प्रबंधन में अपर मुख्य सचिव को पसंद आया शाहजहांपुर के युवक का नवाचार, बना रहा वर्मी कंपोस्ट खाद

कामधेनु डेयरी व वर्मी कंपोस्ट प्रोजेक्ट से सूबे की पहचान बने ज्ञानेश तिवारी पराली प्रबंधन से खेत में सोना उगा रहे है। उनके घर से लेकर खेतों तक हरियाली व खुशहाली है। रोजाना 350 से 400 लीटर दूध तथा केंचुआ खाद उत्पादन से कमाई कर रहे हैं।

By Ravi MishraEdited By: Published: Sat, 10 Oct 2020 12:35 AM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2020 12:35 AM (IST)
पराली प्रबंधन में अपर मुख्य सचिव को पसंद आया शाहजहांपुर के युवक का नवाचार, बना रहा वर्मी कंपोस्ट खाद
पराली प्रबंधन से उगाया सोना हरियाली से भरा खेत का कोना

शाहजहांपुर, जेएनएन। कामधेनु डेयरी व वर्मी कंपोस्ट प्रोजेक्ट से सूबे की पहचान बने ज्ञानेश तिवारी पराली प्रबंधन से खेत में सोना उगा रहे है। उनके घर से लेकर खेतों तक हरियाली व खुशहाली है। रोजाना 350 से 400 लीटर दूध तथा 1500 से 1800 क्विंटल प्रतिमाह केंचुआ खाद उत्पादन से तीन से चार लाख की कमाई कर रहे हैं। दर्जन भर से अधिक लोगों को रोजागर भी मुहैया करा रहे है। गत वर्ष से उन्होंने पराली प्रबंधन में नवाचार किया। कंबाइन से धान व गेहूं कटाई के बाद बचे फसल अपशिष्ट को गाय भैंस के चारा व मिट्टही में मल्चिंग कर मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में प्रयोग कर रहे हैं। इसके उपज वृद्धि संग पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिल रही है।

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शिक्षक की नौकरी छोड़ अपनाया खेती व दूध का कारोबार

निगोही ब्लाक के गांव नबीपुर निवासी ज्ञानेश तिवारी के पिता जानकी प्रसाद तिवारी शिक्षक हे। वह पांच बच्चों में सबसे छोटे ज्ञानेश को शिक्षक पिता शिक्षक बनाना चाह रहे थे। ज्ञानेश ने इसके लिए एमए बीएड की शिक्षा प्राप्त की। 2014 कामधेनु डेयरी परियोजना आने पर ज्ञानेश तिवारी ने सवा करोड़ की मदद से 90 भैंस खरीदी। नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट से डेेयरी फार्मिग का प्रशिक्षण लेकर काम में जुट गए। 10 मुर्रा भैंस व अच्छी नस्ल की गाय समेत 90 दुधारू पशुओं से करीब 400 लीटर दूध उत्पादन कर दो लाख मासिक का शुद्ध मुनाफा कमाकर नई मिसाल पेश की।

पराली प्रबंधन से सवाई की पैदावार, आधी घटाई लागत

डेयरी से रोजाना दस क्विंटल गोबर उत्पादन बड़ी समस्या थी। इसका समाधान निकाला वर्मी कंपोस्ट उत्पादन से। शुरुआत में 15 फुट लंबी, तीन फुट चौडी ,एक फुट गहरी पांच पिट बनाकर प्रत्येक 10 किलो आस्ट्रेलियन प्रजाति का केंचुआ डाली। इससे दो माह में गोबर से वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन शुरू हो गया। कमाई होने पर पिट की संख्या बढ़कार 20 कर दी है। इससे अब 1500 से 1800 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट इससे करीब डेढ़ लाख का फायदा होगा।

इस तरह कर हरे मल्चिंग : खेती की पराली का 60 फीसद चारा और 40 फीसद पराली का वर्मी कंपोस्ट में प्रयोग किया जाता हे। खेत में अवशेष पराली को चैप कटर से खेत में पलटकर डिकंपोजर डालकर सड़ा दिया जाता है।

अपर मुख्य सचिव ने की सराहना : अपर मुख्य सचिव डा. देवेश चतुर्वेदी ने भी ज्ञानेश तिवारी के उद्यम व नवाचार की सराहना की। मंडलीय रबी गोष्ठी में उन्होंने पराली प्रबंधन से खेती के साथ वर्मी कंपोस्ट उत्पादन के सरोकार के लिए सराहा। प्रशासन की ओर से कई मंचों पर ज्ञानेश तिवारी को प्रगतिशील कृषक के रूप में सम्मानित किया जा चुका है।


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