'खामोश' परिवार में सिर चढ़कर बोल रही तरक्की
बरेली [नरेंद्र यादव]। पिता, चाचा, बुआ, भाई.. सारे के सारे 'खामोश'। वो भी दो पीढि़यों से। कहने को परि
बरेली [नरेंद्र यादव]। पिता, चाचा, बुआ, भाई.. सारे के सारे 'खामोश'। वो भी दो पीढि़यों से। कहने को परिवार में सदस्य 18 हैं लेकिन, उनमें सात बोल नहीं पाते। यही कारण है, उपहास करने वालों ने उनके घर का नाम ही रख दिया-गूंगा घर लेकिन..। लाचारी का तंज कसने वालों से इतर इस परिवार की मिसाल देने वाले कहीं ज्यादा है। जानते हैं क्यों? इसलिए क्योंकि इस मुस्लिम परिवार की तीन महिलाओं ने पूरे कुनबे को तरक्की की जुबां बोलना सिखा दिया। कंप्यूटर, सिलाई, गाड़ियों की मरम्मत सरीखे तकनीकी कामों के दम पर नई पीढ़ी के मूक बधिरों में दो सरकारी सेवा, तीसरा छात्र होने के साथ राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी और होनहार चित्रकार बन चुका है।
आइये, पहले स्पेशल परिवार से परिचय। तारीन बहादुर गंज निवासी लतीफ अहमद और शमीम बेगम की छह औलादों चार मूकबधिर हैं- लईक अहमद, तुफैल अहमद, शकील और मामूना बी। सिर्फ तामीना और डॉ. फरहद ही बोल पाते हैं लेकिन, उन्होंने कभी दिव्यांग भाई-बहनों को अकेला नहीं छोड़ा। उनकी जुबां और कान बनकर आगे बढ़ाया। पढ़ाया। काबिल बनाया। उसी का नतीजा है, लईक ऑर्डिनेंस क्लोदिंग फैक्ट्री (ओसीएफ) में सरकारी नौकर हैं। बखूबी परिवार संभाल रहे हैं। तुफैल अहमद गाड़ियों की मरम्मत करते हैं। उनके दो बच्चे है। शकील घर का काम करते हैं। मामूना बी पूरे परिवार का ख्याल रखती हैं। काफी हुनरमंद हैं। उनके हाथ बना खाना सभी को बेहद पसंद है। -मूक बधिर पति के अनुभव से औलाद बनाई कामयाब :
लतीफ अहम के कुनबे की मुश्किल उनके बच्चों तक सीमित नहीं रही। दूसरी पीढ़ी भी प्रभावित हुई। उन्होंने ओसीएफ कर्मी लईक की शादी फुफेरी बहन शाहीन से हुई। इनके पांच बच्चे हुए। उनमें भी तीन बेटे मूक बधिर हुए। हालांकि, शाहीन ने हिम्मत नहीं हारी। पति के अनुभव की पाठशाला पढ़कर बेजुबान बेटों की जिंदगी में सुनहरे रंग भरने शुरू कर दिए। सभी को पढ़ाया। नतीजा, बेटे अनीस मियां को होमगार्ड में माली की नौकरी मिल गई। मोनिस पुवायां में सफाई कर्मी हैं। छोटे बेटा फैसल लखनऊ के मूक -बधिर स्कूल में पढ़ रहा है। -खेलकूद और आर्ट से जीते दर्जनों मेडल : दूसरी पीढ़ी के 15 वर्षीय मूक बधिर फैसल 'गूंगों के घर' की शान व जिले का गौरव बन चुके हैं। विद्यालय के साथ ही ऑल इंडिया डीफ वेलफेयर एसोसिशन की खेल व कला प्रतियोगिताओं में फैसल राष्ट्रीय स्तर पर छाप छोड़ चुके हैं। चेन्नई, रांची समेत दो दर्जन स्थलों पर खेलकूद में शामिल होकर दर्जनो मेडल जीत हैं। साथ ही यह होनहार उभरता चित्रकार भी है। लोककला संग्रहालय लखनऊ भी पुरस्कृत कर चुका है। -वीडियोकॉल से मन की बात : सभी मूक बधिर हाईटेक है। स्मार्ट फोन पर वीडियोकाल करके इशारों में मन की बात करते है। त्योहार व जन्मदिन पर व्हाट्सएप व फेसबुक से मैसेज भेज खुशी का इजहार करना भी नहीं भूलते। इंटरनेट से सभी भाई जानकारी जुटाते हैं। -सोचा था खूब बात करेंगे, इशारों में सिमटी दुनिया : शाहीन की तरह ही उनकी देवरानी नाजमा बानो भी अपने पति के मूक बधिर होने से आहत हैं, लेकिन दुखी नहीं। उन्होंने शादी के दौरान की यादें ताजा की। बोलीं, निकाह से पूर्व सपना था कि पति से खूब बातें करेंगे, लेकिन शादी के बाद इशारे . ¨जदगी का हिस्सा बन गए। शाहीन बताती है, उनके बड़े बेटे तारिक को बहू फरजाना काफी सपोर्ट करती है।
- यह जीन का असर : शहीन ने बताया कि जब वह लखनऊ में डॉक्टरों ने मिली तो खून के रिश्ते में शादी दिव्यांगता का बड़ा कारण पता चला। डॉक्टरों का कहना है कि जीन के असर की वजह से भी औलाद मूक बधिर हो जाती।