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जिन कमरों में कभी जुएं की फड़ चलती थी वहां अब स्मार्ट क्लास चलती है

सिविल इंजीनियर शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने दृढ़ इच्छा शक्ति नवाचार व सेवा से विद्यालय ही नहीं गांव की तस्वीर बदल दी।

By Ravi MishraEdited By: Published: Mon, 07 Sep 2020 01:43 PM (IST)Updated: Mon, 07 Sep 2020 05:54 PM (IST)
जिन कमरों में कभी जुएं की फड़ चलती थी वहां अब स्मार्ट क्लास चलती है
जिन कमरों में कभी जुएं की फड़ चलती थी वहां अब स्मार्ट क्लास चलती है

शाहजहांपुर, जेएनएन। सिविल इंजीनियर शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने दृढ़ इच्छा शक्ति, नवाचार व सेवा से विद्यालय ही नहीं गांव की तस्वीर बदल दी। दरवाजा खिड़की विहीन जिन कमरों में सुबह शाम जुआ होता था, वहां बच्चे डिजिटल पढ़ाई करते हैं। विद्यालय का कचरा मैदान सुपोषण वाटिका के रूप में सेहत का पर्याय बन गया। गांव के अब न तो बच्चे बंधुआ मजदूरी करते हैं और न ही उनके अभिभावकों को कोई जबरन काम के लिए बाध्य करता है।

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परमवीर चक्र विजेता नायक जदूनाथ सिंह पैतृक गांव खजुरी के मजरा ग्योड़ी में प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक है। 2010 में यहां शिक्षिक सुरेंद्र सिंह की नियुक्ति हुई। पहले ही दिन सुरेंद्र को जुआंरियों से जूझना पड़ा। अंदर जाने पर बिना दरवाजे खिड़के आठ कमरों में घोड़ी, गाय, भैंस आदि पशु बंधे मिले। सुरेंद्र सिंह ने सख्त तेवर देख अतिक्कारियों के पैर उखड़ गए। उन्होंने विद्यालय के पत्र व्यवहार रजिस्टर पर गांव वालों से विद्यालय में घोड़ी समेत मवेशी न बांधने के लिए हस्ताक्षर कराकर दवाब में ले लिया। इसके बाद घर घर जाकर बच्चों को बुलाया। नतीजतन 15 दिन में ही 20 बच्चों की संख्या 50 के पार पहुंच गई। जो दस साल बाद अब 400 के पार पहुंच गई है।

पोषण वाटिका से बचाए 2.50 लाख, लगवाया एलइ्रडी, प्रोजेक्टर, इन्वर्टर सुरेंद्र सिंह ने विद्यालय के कचरा घर को बच्चों की मदद से किचन गार्ड में बदल दिया। करीब दो बीघा खेत में लोकी, तोरई, कद्दू, सेम आदि सब्जियां बोयी। इससे पांच साल के भीतर करीब ढाई लाख की बचत हुई। इस बचत से सुरेंद्र सिंह ने विद्यालय में सब मर्सिबल, इनवर्टर तथा डिजिटल पढाई के लिए एलईडी व प्रोजेक्टर लगवाया। नतीजतन ग्योडी विद्यालय कलान ब्लाक का इकलौता डिजिटल स्कूल बन गया। पोषण वाटिका की देख रेख के लिए निजी पैसे से माली भी लगा दिया।

खुद की विद्यालय पेंटिंग, बनाई कुर्सी मेज कलान तहसील के ही दमुलिया गांव निवासी सुरेंद्र सिंह ने 1993 में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। इसके बाद खाद फैक्टरी समेत कई जगह नौकरी की। 1998 में बीटीसी के बाद शिक्षक बन गए। लेकिन इंजीनियरिंग के अनुभव से उन्होंने से खुद की कुर्सी व मेज वेल्डिंग करके तैयार कर ली। स्कूल की खुद पेंटिंग करके उसका पैसा भी बचाकर बच्चों के हाईटेक शिक्षा पर खर्च किया।

बंधुआ मजदूरी से दिलाई निजात सुरेंद्र सिंह बताते है कि 2010 में क्षेत्र के लोेग ग्योड़ी से जबरन बच्चों व उनके अभिभावकों को काम के लिए ले जाते थे। उनके विरोध करने तथा पुलिस कार्रवाई की चेतावनी से लोगों को बंधुआं मजदूरी से निजात मिली। ग्राम प्रधान नीतू सिंह बताती है कि शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने गांव को नई दिशा दी। कलान विकास खंड के पूर्व माध्यमिक विद्यालय ग्योड़ी खजुरी के सिविल इंजीनियर शिक्षक ने सुपोषण वाटिका से बच्चों की सेहत संवारने के साथ स्कूल को स्मार्ट बना दिया। सात वर्ष पूर्व विद्यालय की दो बीघा जमीन पर सब्जी की पैदावार से शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने करीब ढाई लाख मिडडे मील का पैसा बचाया। इस पैसे से स्कूल में सब मर्सिबल, डिजिटल क्लास के लिए एलईडी प्राजेक्टेर, सतत बिजली आपूर्ति के लिए इनर्वटर लगवाकर विद्यालय को भी स्मार्ट बना दिया। जबकि कार्यभार संभालने से पूर्व विद्यालय जर्जर था। वहां लोग ताश खेला करते थे। अब यह विद्यालय ब्लाक में आदर्श है।


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