बरेली, जेएनएन। Encroachment Problem in Bareilly :नावेल्टी चौराहा से घंटाघर चौराहे तक की दूरी बमुश्किल आधा किलोमीटर होगी। मगर इतना सफर तय करने में लगभग हर रोज दस से पंद्रह मिनट लगते हैं। वजह, कोतवाली के सामने से ही यहां सड़क किनारे अवैध बाजार की वजह से यहां आधी सड़क पर कब्जा रहता है। खास बात कि ये दुकानदार भले ही फड़ और ठेला लगाते हों, लेकिन इनसे इलाकाई पुलिस थाना-चौकी और नगर निगम को मोटा हफ्ता पहुंचता है। यही नहीं, बताया यह भी जाता है कि स्वास्थ्य विभाग तक भी कुछ हिस्सा पहुंचता है। यही वजह है कि भले ही इन अवैध दुकानों की वजह से जिला अस्पताल जैसी जगह पर जाम के हालात रहते हैं, लेकिन दिन-रात गुजरती पुलिस कब्जों के आगे मुंह फेरे रहती है। वहीं नगर निगम इस ओर झांकता तक नहीं। ये हाल तब हैं जबकि खुद मंडलीय अपर निदेशक एवं प्रमुख अधीक्षक कब्जा हटाने के बाबत प्रशासन को पत्र लिख चुके हैं।
कोतवाली से घंटाघर तक करीब 700 अवैध दुकान व रेहड़ी
पटेल चौक से नावेल्टी होते हुए कोतवाली पहुंचते ही अवैध दुकानें, फड़ और रेहड़ी लगनी शुरू हो जाती हैं। जिला अस्पताल से जुड़ा परिसर आते-आते सड़क के दोनों और कपड़ों, जूते-सैंडल फुटपाथ तक बिछ जाते हैं। इनके बीच में कहीं-कहीं रेहड़ी सड़क पर जगह जमाए दिखती हैं। घंटाघर चौराहे तक यही हाल मिलता है। दोनों तरफ मिलाकर करीब 700 दुकानें पड़ती हैं। जाहिर सी बात है कि बाजार होंगे तो ग्राहक भी आएंगे। ऐसे में आधी सड़क पर भीड़ आ जाती है। ग्राहक गाड़ी से रुके तो हालात और भी बुरे हो जाते हैं। ऐसे में सड़क के दोनों ओर वाहनों का जाम लग जाता है।
अवैध दुकान के हिसाब से 200 से 500 तक खर्चा
दुकानदार ही दबी जुबान में बताते हैं कि इस बाजार के एवज में नगर निगम से लेकर पुलिस तक मोटा खर्च पहुंचता है। दुकान के हिसाब से जगह पर कब्जे का रेट तय होता है। कपड़े से जुड़ी ज्यादा चलने वाली दुकान है तो रोज का 500 रुपये तक होता है। वहीं छोटी दुकान या रेहड़ी है तो रोज के 200 रुपये के हिसाब से पुलिस और नगर निगम का बनता है। यह ऊपरी कमाई हर हफ्ते बंडल बनाकर इलाकाई पुलिस थाना-चौकी और नगर निगम में बंटती है। नगर निगम का हिस्सा करीब 60 फीसद और 40 फीसद पुलिस महकमे के इलाकाई बिहारीपुर और कुतुबखाना पुलिस चौकी के पास पहुंचता
जैसी अवैध दुकान वैसा शिफ्ट के हिसाब से हफ्ता
एडीएसआइसी की फरियाद भी हफ्ते भर से अनसुनी
नगर निगम, पुलिस और सड़क पर अवैध बाजार लगाने वालों का कांकस कितना मजबूत हो गया है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खुद मंडलीय अपर निदेशक एवं प्रमुख अधीक्षक (एडीएसआइसी) डा.सुबोध शर्मा मामले की शिकायत सिटी मजिस्ट्रेट राजीव पांडेय से कर चुके हैं। दिए पत्र में उन्होंने जिला अस्पताल से सीएमएस आवास तक अवैध कब्जे और इससे जुड़े जाम हटाने की जरूरत बताई है। सिटी मजिस्ट्रेट कोतवाली थाने को कब्जा हटाने के लिए पत्र भेजा था, लेकिन एक हफ्ता बीतने के बावजूद अभी तक पुलिस ने अवैध कब्जा हटाना तो दूर, अवैध दुकानें लगाने वाले लोगों को खुद हटने के लिए मुनादी तक नहीं कराई है।
वैध दुकानों के मालिकों को भी मिलती है धमकी
प्रशासन का काफी दबाव पड़ा तो कुछ महीने पहले नगर निगम और कोतवाली पुलिस कब्जा हटाने पहुंची थी। तब काफी हंगामा भी हुआ, हालांकि एक दिन बाद फिर से दुकान जस की तस लगने लगीं। यही नहीं हंगामे वाले दिन अवैध दुकान लगाने वाले लोगों ने वैध दुकान वालों को यह कहते हुए धमकाया था कि उनकी शिकायत पर ही नगर निगम और पुलिस की टीम कब्जा हटवाने आई हैं। अगर अवैध दुकानें हटीं तो व्यापार कोई दुकानदार नहीं कर पाएगा।
सायरन भी रहता बेअसर, रोज फंसती है एंबुलेंस
जिला अस्पताल होने की वजह से कोतवाली से घंटाघर चौराहे तक लगने वाले जाम का असर सीधे स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। लगभग हर रोज यहां से आते-जाते एंबुलेंस जाम में फंसी हुई देखी जा सकती हैं। हाल ये हैं कि यहां सड़क छोड़िये डिवाइडर तक की बोली लगाई जा चुकी है। इससे डिवाइडर की ओर भी लोग रुककर खरीदारी करते हैं। ऐसे में जाम की वजह से जान का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है।
जिला अस्पताल के दोनों तरफ अवैध कब्जे और इनसे लगने वाले जाम के बारे में शिकायती पत्र देकर प्रशासन को अवगत कराया जा चुका है। हालांकि अभी तक कब्जे नहीं हटे हैं। इस बाबत एक बार फिर रिमांडर प्रशासन को भेजेंगे। - डा.सुबोध शर्मा, मंडलीय अपर निदेशक एवं प्रमुख अधीक्षक
जिला अस्पताल की ओर से आसपास अवैध कब्जे हटाने के बाबत पत्र मिला है। पत्र को मार्क कर आवश्यक कार्रवाई के लिए कोतवाली भेजा जा चुका है। मामले में अभी तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई, इस बारे में जानकारी ली जाएगी।
- राजीव पांडेय, सिटी मजिस्ट्रेट
कई बार इस बाजार को हटाने की कोशिश की जा चुकी, लेकिन हालात जस के तस हैं।
इनपुट : अतिक्रमण में फंस जाती एंबुलेंस, मरीज की जान को रहता है खतरा। सीएमएस जिलाधिकारी से कर चुके हैं शिकायत। सिटी मजिस्ट्रेट के जरिए कोतवाली तक पहुंच चुका अतिक्रमण हटाने का खत।
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