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Loksabha Election 2019: शकील बदायूंनी की जमीन पर सियासत का हर तराना

साहित्य के फलक पर जिस तरह यहां के साहित्यकारों ने बड़ा नाम किया ठीक उसी तरह राजनीति के माहिर भी सियासत के मुकाम पर अहम किरदार निभा रहे।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Fri, 05 Apr 2019 02:56 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 02:56 PM (IST)
Loksabha Election 2019: शकील बदायूंनी की जमीन पर सियासत का हर तराना
Loksabha Election 2019: शकील बदायूंनी की जमीन पर सियासत का हर तराना

प्रसून शुक्ल, बदायूं : अजीम शायर व गीतकार शकील बदायूंनी की सरजमीं.. जहां इन दिनों राजनीति के गीत गुनगुनाए जा रहे। साहित्य के फलक पर जिस तरह यहां के साहित्यकारों ने बड़ा नाम किया, ठीक उसी तरह राजनीति के माहिर भी सियासत के मुकाम पर अहम किरदार निभा रहे। इस क्षेत्र की गांव-गलियां घूमेंगे तो हर रंग मिलेगा। भगवा भी, लाल-हरा और नीला भी। चर्चा करने वाले कांग्रेस को भी दरकिनार नहीं कर रहे। बदायूं का सियासी माहौल बता रहे हमारे संवाददाता...।

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गांव की ओर निकलेंगे तो मेंथा, गन्ना और गेहूं की फसल इस क्षेत्र को आच्छादित करती दिखती है। यहां से समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव (अब सपा संरक्षक) के परिवार का करीबी नाता रहा है। उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव सपा-बसपा गठबंधन से प्रत्याशी हैं। उनके सामने सूबे के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी डॉ. संघमित्र मौर्य हैं। जातिगत वोटबैंक के गुणा-भाग के बाद जिले के प्रभारी मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी बेटी को इस मैदान में लाए। वहीं कांग्रेस से पूर्व सांसद सलीम इकबाल शेरवानी यहां के चुनावी रण को दिलचस्प बना रहे। चुनाव की तारीख करीब आ रही, इसलिए हम सियासी पारा मापने के लिए उझानी कस्बे की ओर निकल पड़े। वहां तक जाते वक्त रास्ते में तमाम चुनावी किस्से सुनाई पड़े। किसी को मोदी पर एतबार तो कोई गठबंधन का तलबगार तो कोई कांग्रेस का पक्षकार। किसकी बात में कितना दम है, यह जानने के लिए उझानी से वापसी करते हुए एक दर्जन से ज्यादा गांव में रुके। उझानी से सीधे गांव बसोमा में पहला पड़ाव मिला। ग्रामीण रामऔतार दिवाकर दिखे तो उन्हें रोक लिया। चुनाव पर बात शुरु की तो तपाक से बोल पड़े। संसदीय चुनाव है, इसमें गांव की गली की बात कोई नहीं करता। हमें तो प्रधानमंत्री का चेहरा दिख रहा। बाकी बहुत ज्यादा चक्कर में नहीं पड़ते। उनका मन भांपने के बाद कुछ आगे बढ़े तो साग-सब्जी लेकर लौट रहे धर्मेद्र को रोक लिया। मन लिया तो जवाब आया, इस बार पिछली बार जैसा नहीं है साहब। राह कठिन पड़ेगी। कांग्रेस की 72 हजार रुपया वाली बात कान के अंदर बैठी जा रही है। हालांकि यह भी बात वो कहने से गुरेज नहीं करते कि घोषणा तो जनधन वाली भी हुई थी, मिला कुछ नहीं। कहते हुए वह अपने घर की ओर बढ़ गए और हम अगले गांव की ओर। बिल्सी रोड पर बदरपुर गांव जाने से पहले बाईपास पर कबूलपुरा निवासी अजीम अली को देखा, दुआ-सलाम हुई। सपा-बसपा गठबंधन के मुरीद अजीम बोले कि अबकी बार यूपी में बड़ा दांव है बहन मायावती और अखिलेश भइया का। उनका मन उस गांव के लोगों की कहानी बयां रहा था।

वहां से बदरपुर पहुंचे तो बातचीत में एक बुजुर्ग के शब्द मानो फूट पड़े। साठ साल से अगर लड़कन कौन रुजगार दओ होतो तो जा दशा काहे होती। कैमरा निकलते देखा तो भड़क गए। फोटो काहे खींच रै। हम उनकी बात सुनकर आगे बढ़े, वेदप्रकाश से मुलाकात हुई। घोषणा करने से क्या होता है, पब्लिक को फायदा मिले तो बात बने। हाल ही में दो हजार रुपये मिलने का मैसेज फोन पर दिखाने लगे। उनसे आगे बढ़े तो भूपेंद्र सिंह देशभक्ति के भाव में डूबे दिखे। पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक पर वह बोलते चले गए, हालांकि गन्ना किसानों के बकाया, पर्ची सिस्टम से खिन्न नजर आए। पास बैठे महताब सिंह बोले कि मोदी की लड़ाई है बाकी सब से। आगे बढ़े तो ईंट भट्ठे पर काम करने वाले श्रमिक भोजन करते दिखे। उनका चुनावी मतलब सिर्फ फूल तक ही सीमित रहा। राम बहादुर उज्जवला, आयुष्मान, सौभाग्य योजना गिनाने लगे। साथ बैठे श्रमिक दीन दयाल बोले, गठबंधन को कमजोर मत समझना। इस बीच भट्ठा के सुपरवाइजर ढाकन सिंह और कालीचरन भी वहां पहुंच चुके थे। केंद्र की योजनाओं का अब तक लाभ न मिल पाने का दर्द साझा करते हुए बोले, फिलहाल यह सब बर्दाश्त करेंगे।

इससे पहले हम अलापुर मार्ग पर बसे पडौआ गांव गए। वहां बैठे नौजवान से पूछा, पूछा तुम्हारा वोट है? उसने ना का इशारा करते हुए सिर हिला दिया। पास ही खड़े पद्म सिंह बोल बैठे, हां हमें बताओ। चर्चा शुरू हुई तो बोले हमरे गांव में सबै कुछ है..। पास ही खड़े राम सिंह बोले, गांव पूरी तरह से ओडीएफ है। एक दौर था कि जब शौचालय की बात करते ही लोग कतरा जाते थे। बीते सालों में बहुत कुछ बदला है। इसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हमने ग्राम प्रधान अंजलि सागर के घर की तरफ रुख किया। रास्ते में ही प्रधान के देवर से मुलाकात हुई पता चला कि वो पति प्रेमशंकर के साथ जिला मुख्यालय बच्चे की दवा लेने गईं हुई हैं। अलबत्ता ग्रामीणों संग ही केंद्रीय योजनाओं और देश के वर्तमान हालातों पर चर्चा का दौर शुरू हो गया। ग्रामीण कहते हैं, घर की औरतें भी अब चूल्हा नहीं जलाती। उज्ज्वला योजना के बाद चूल्हे का धुआं अब खत्म हो चुका है। वे लोग बताते हैं कि जिलाधिकारी ने इस गांव को गोद ले रखा है। परमवीर, राजीव कुमार, सुखवीर और श्याम लाल से चुनाव पर बात होती है तो कहते हैं कि उज्ज्वला योजना से काफी लाभ मिला है। मोदी पर काफी कुछ बोलने वाले वे ग्रामीण राहुल गांधी के नाम पर बोलने बचते रहे। इसी बीच किसी ने बयां किया कि सपा और बसपा के गठबंधन से फर्क पड़ेगा इस बार। यही नहीं उदाहरण देते हुए बताया कि जब एक घर में चार भाई हो और तीन किसी मुद्दे पर एक हो जाएं तब फर्क तो पड़ता है।

बदायूं ससंदीय क्षेत्र से भाग्य आजमा चुके नेता

सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो.रामगोपाल सम्भल लोकसभा से चुनाव लड़ चुके हैं। बिसौली और गुन्नौर तब संभल लोस क्षेत्र में ही आते थे। शाहजहांपुर के स्वामी चिन्मयानंद बदायूं से रह चुके हैं सांसद, रामनरेश यादव पूर्व मुख्यमंत्री उप्र रहे और यहां से लोकसभा चुनाव लड़े और हारे, शरद यादव यहां से सांसद बन कर कपड़ा मंत्री बने थे। मायावती बिल्सी से जीत कर मुख्यमंत्री बनीं थीं। 


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