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HOLI Special: पढ़े यहां... नवाबों के गांव में गालियां देकर होती फगुआ की वसूली

होली को सौहार्द का त्योहार यूं ही नहीं कहा जाता। यह कोई आजकल की रवायत भी नहीं है। सदियों की परंपरा है जो समाज की नींव को संस्कारों का खाद-पानी देकर मजबूत कर रही हैैं।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 01:30 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 01:30 PM (IST)
HOLI Special: पढ़े यहां... नवाबों के गांव में गालियां देकर होती फगुआ की वसूली
HOLI Special: पढ़े यहां... नवाबों के गांव में गालियां देकर होती फगुआ की वसूली

जेएनएन (पीलीभीत) : होली को सौहार्द का त्योहार यूं ही नहीं कहा जाता। यह कोई आजकल की रवायत भी नहीं है। सदियों की परंपरा है, जो समाज की नींव को संस्कारों का खाद-पानी देकर मजबूत कर रही हैैं। नवाबों के गांव शेरपुर कलां उसी मिसाल पेश करता है। मुस्लिम बहुल आबादी वाले इस गांव में सैकड़ों हिंदू परिवार हैं। जब होली आती है तो सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि मुस्लिम भी उत्साहित हो जाते हैं। वे होलिका की तैयारी में हिंदू भाइयों का हाथ बंटाते हुए सहयोग करते हैैं। असली नजारा तो दुल्हैड़ी के दिन दिखता है। धमाल में शामिल रंग-गुलाल से सराबोर होरियारों की टोलियां मुस्लिम परिवारों के घरों के दरवाजे पर पहुंचती हैं और फिर गालियां देना शुरू होता है। वे गालियां देते हुए मुस्लिमों से फगुआ वसूलते हैं। प्यार भरी इन गालियों को सुनकर मुस्लिम समाज के लोग हंसते हुए फगुआ के तौर पर कुछ नकदी हुरियारों को भेंट करते हैं।

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पूरनपुर तहसील की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत का रुतबा रखने वाला यह गांव नवाबों का रहा है। नवाब खानदान के शमशुल हसन खां सांसद भी रहे थे। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि होली का यह रिवाज नवाबी दौर से ही चला आ रहा है। वक्त बदल गया, पीढिय़ां बदल गईं लेकिन, रिवाज कायम है। गांव की आबादी करीब चालीस हजार है, जिसमें लगभग दो हजार हिंदू परिवार हैैं। यहां कभी सांप्रदायिक तनाव की समस्या नहीं आती।

खूब होता हुड़दंग, नवाब परिवार को भी मिलती गालियां

होली पर हिंदू समुदाय के लोग जमकर हुड़दंग करते हैं लेकिन, कोई बुरा नहीं मानता। होलिका दहन स्थल की सफाई से लेकर अन्य तैयारियों में मुस्लिमों का पूरा सहयोग रहता है। दुल्हैड़ी के दिन सुबह आठ बजे से धमाल शुरू हो जाती है। इसमें शामिल हुरियारों की टोली सबसे पहले नवाब साहब की कोठी पर पहुंचती है। गेट पर खड़े होकर हुरियारे गालियां देना शुरू कर देते हैं। यह इस बात का संकेत होता है कि हुरियारे आ चुके हैं। अब इन्हें फगुआ देकर विदा करना है। नवाब की कोठी से फगुआ वसूलने के बाद टोली आगे बढ़ जाती है। इसी तरह से गांव के अन्य प्रभावशाली मुस्लिम परिवारों के घरों के दरवाजे-दरवाजे पहुंचकर गालियां देने और फगुआ वसूलने का सिलसिला कई घंटे तक चलता है।

हम सब भारतीय...

ग्राम प्रधान नाजिया खानम के पति हाजी रियाजत नूर खां कहते हैं कि हमारे गांव की होली तो अनोखी है। सभी भारतीय हैैं। हम होली पर ङ्क्षहदू भाइयों का पूरा सहयोग करते हैं। पूर्व जिला पंचायत सदस्य असलम कुरैशी कहते हैं कि हुरियारे तो त्योहार की खुशी में गालियां देते हैं, उसका बुरा क्या मानना। यह तो नबावी दौर से परंपरा चली आ रही है। जिसे पूरा गांव निभाता है। 


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