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और सस्ते की होड़ में देसी को पीट रही तन्जानिया की अरहर

दालें महंगाई के चरम पर पहुंचकर गरीबों की थाली से दूर हो गई थीं, उनके रेट घटकर अब एक तिहाई रह गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 May 2018 09:31 AM (IST)Updated: Mon, 14 May 2018 09:31 AM (IST)
और सस्ते की होड़ में देसी को पीट रही तन्जानिया की अरहर
और सस्ते की होड़ में देसी को पीट रही तन्जानिया की अरहर

जागरण संवाददाता, बरेली : कुछ महीने पहले अरहर, उरद, मसूर और मूंग जैसी जो दालें महंगाई के चरम पर पहुंचकर गरीबों की थाली से दूर हो गई थीं, उनके रेट घटकर अब एक तिहाई रह गए हैं। अरहर की जो दाल दो सौ रुपये किलो तक बिक गई थी, अब वह 50 से 70 रुपये प्रति किलो रेट पर बाजार में उपलब्ध हो रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बार दलहन की पैदावार पिछले कई वर्षो बाद अधिक हुई है। इससे देसी दलहन पर महंगाई कम हुई तो बाहर से आयात हो रहीं विदेशी दालों के रेट और कम हो गए हैं। ऐसे में और सस्ते की होड़ में ग्राहक विदेशी दालों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।

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तन्जानिया की अरहर खूब बिक रही

तन्जानिया की अरहर देसी के मुकाबले थोक रेट में 15 रुपये प्रति किलो तक कम दाम पर मिल रही। इसके दाने बड़े हैं मगर देसी अरहर की तुलना में इसका स्वाद अच्छा नहीं है। थोक में यह दाल 47 से 48 रुपये प्रति किलो और फुटकर में 55 से लेकर 60 रुपये तक में बेच दे रहे हैं। जबकि महाराष्ट्र, जलगांव और अकोला तथा अन्य राज्यों की अरहर थोक में 64 से 66 रुपये रेट में रहती है, जो दुकानों पर 70 से 75 रुपये किलो के रेट पर बेची जाती है। ऐसे में लगभग 15 रुपये किलो अधिक रेट होने के चलते लोग विदेशी अरहर तन्जानिया को ज्यादा खरीद रहे हैं। श्यामगंज खाद्य मंडी में दलहन के थोक विक्रेता जगदीश खंडेलवाल बताते हैं कि बरेली में हर दिन लगभग 15 हजार कुंतल विदेशी तन्जानिया की दाल का आयात होता है। वैसे, कुछ लोग इसे सिंगापुर की रंगून अरहर बताकर भी बेचते हैं लेकिन सच यह है कि रंगून अरहर का आयात फिलहाल न के बराबर है, क्योंकि वह तन्जानिया की अरहर के मुकाबले रेट में कुछ ज्यादा है इसलिए दुकानदारों ने उसे लेना बंद कर रखा है।

मसूर भी विदेश की

मंडी में इन दिनों विदेशी मलका मसूर की बिक्री खूब है, क्योंकि दूसरे स्थानों से आने वाली देसी मसूर के मुकाबले इसका रेट थोक में 15 से 18 रुपये किलो तक कम है। विदेशी मलका जहां 35 से 38 रुपये प्रति किलो तक उपलब्ध है वहीं देसी मसूर 51 से 52 रुपये किलो रेट पर बेची जाती है।

220 तक बिकी उरद अब 80 रुपये किलो

कुछ महीनों पहले जो देसी उरद 220 रुपये किलो फुटकर में बिक गई, वह अब 80 रुपये किलो के रेट में बेची जा रही है, लेकिन लोगों को विदेशी उरद ही भा रही है, जो फुटकर में लगभग 60 रुपये प्रति किलो रेट पर बिक रही है।

मूंग का स्टॉक खत्म

मूंग पर जरूर विदेशी वैरायटी का प्रभाव ज्यादा नहीं है। इन दिनों शहर की खाद्य मंडी में पुराने स्टॉक की मूंग दाल ही बेची जा रही है, जो बहुत कम रह गई है इसलिए इन दिनों इसका थोक रेट 65 से 70 रुपये तक है। फुटकर में यह 80 से 85 रुपये किलो तक में बेची जा रही है। हालांकि सस्ता होने के लिए नई मूंग मंडी में आने का इंतजार किया जा रहा है। कासगंज, मैनपुरी और इटावा में इसकी पैदावार ठीक ठाक होती है इसलिए वहां से यह अगले 15 दिन के अंदर उपलब्ध हो जाएगी। इससे रेट भी कम होंगे।

कनाडा, रसिया और फ्रांस की मटर

खाद्य मंडी में विदेशी मटर दाल का बोलबाला है। कनाडा, रसियन और फ्रांस की मटर के मुकाबले रेट में देसी मटर नहीं ठहरती। विदेशी मटर जहां 37 रुपये किलो तक थोक रेट में है वहीं देसी मटर 40 रुपये किलो पर है लेकिन फुटकर में सस्ता बेचने की होड़ में दुकानदार ग्राहकों को विदेशी मटर ही बेचते हैं।

भूटान के राजमा ने चीन को पीछे किया

खाद्य मंडी में राजमा की बिक्री को लेकर भूटान और चीन में होड़ दिखती है। थोक में भूटान वाला राजमा 60 रुपये तो चीन वाला 84 रुपये प्रति किलो रेट पर उपलब्ध है। ऐसे में सस्ता खरीदने वाले भूटान के राजमा को खरीदते हैं लेकिन स्वाद पसंद करने वाले चीन के राजमा को तरजीह देते हैं। इन दोनों की होड़ में देसी राजमा नहीं ठहरता, जिसका थोक रेट 87 रुपये है।

रेट लिस्ट प्रति किलो ग्राम

दाल थोक फुटकर पहले फुटकर

अरहर 47-66 50-72 200

मसूर 35-52 40-65 220

उरद 60-80 65-90 180

मूंग 65-80 70-85 200

मटर 37-40 40-50 160

राजमा 60-87 65-90 140

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देश में दलहन का उत्पादन बढ़ा जरूर है लेकिन विदेशी आयात भी कम नहीं हुआ, इसलिए दालें सस्ती हो गई हैं। मंडी में दालों की कमी नहीं है लेकिन लोग अभी भी सस्ते की होड़ में देसी दालों की क्वालिटी से समझौता करके विदेशी वैरायटी को तरजीह दे रहे हैं।

-जगदीश खंडेलवाल, थोक दलहन विक्रेता

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विदेश से सस्ता दलहन आने से देसी दालें भी सस्ती हो गई हैं। इससे नुकसान किसानों को है, जिन्हें लागत मूल्य से भी कम पर मंडी में दाल बेचनी पड़ रही है। बहुत सारे ग्राहकों को सस्ते से सस्ता चाहिए, भले ही उसकी क्वालिटी अच्छी न हो।

-राजीव अग्रवाल, दलहन व्रिक्रेता


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