जागरण विमर्श : उचित जांच और निर्धारित समय सीमा में समाधान निकलेगा Bareilly News
पहले हैदराबाद फिर उन्नाव की घटना। इससे पूरे देश में उबाल है। सड़क से लेकर संसद तक माहौल गर्म है। दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं को बहस छिड़ गई है।
जेएनएन, बरेली : पहले हैदराबाद, फिर उन्नाव की घटना। इससे पूरे देश में उबाल है। सड़क से लेकर संसद तक माहौल गर्म है। दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं को बहस छिड़ गई है। कोई कठोर कानून बनाने की बात कह रहा है तो कोई हैदराबाद जैसे एनकाउंटर करने की। मगर, विशेषज्ञों की राय इससे बिल्कुल जुदा है। उनके अनुसार, दंड जितना कठोर होगा, उतने ही अधिक झूठे मामले दर्ज होंगे। दहेज या हरिजन एक्ट इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है। वहीं, कानून को ताक पर रखकर हैदराबाद जैसे एनकाउंटर से भी स्थिति में बदलाव नहीं होने वाला।
यदि पुलिस समय रहते उचित जांच पूरी कर लें और कोर्ट की समय सीमा निर्धारित कर दी जाए तो इससे काफी हद समस्या कम हो सकती है। त्वरित न्याय प्रक्रिया से अपराधियों में खौफ कायम होगा और झूठे केसों का बोझ भी कम हो सकेगा। वहीं, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए नई पीढ़ी को उचित ज्ञान देकर ही समाधान निकाला जा सकता है। बच्चों को संस्कार और सामाजिक मूल्यों की सीख देनी चाहिए। जिससे वह सही और गलत में फर्क समझ सके। सोमवार को दुष्कर्म की घटनाओं पर लगाम कैसे लगे विषय पर आयोजित जागरण विमर्श में विशेषज्ञों ने यह विचार रखे। कार्यक्रम में सेवानिवृत्त जज एसएन तिवारी और बरेली कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग की डॉ. हेमा खन्ना बतौर अतिथि मौजूद रहे।
अभिभावक स्कूलों पर न थोपे जिम्मेदारी
डॉ. हेमा खन्ना ने कहा कि पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे। बच्चों को परिवार के बुजुर्गों से संस्कार और नैतिक मूल्य की शिक्षा मिलती थी। मगर अब अधिकतर परिवार एकल है। वहीं, अभिभावक जॉब करते हैं। ऐसे में उनके पास बच्चों के लिए समय नहीं रहता। वह बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूल में कराकर संस्कार और नैतिक ज्ञान देने की जिम्मेदारी उन पर डाल देते हैं। 11 से 17 साल के बीच किशोर का मानसिक विकास हो जाता है। अभिभावकों को चाहिए कि वह इससे पहले बच्चों को नैतिक मूल्यों का ज्ञान दें। लड़कियों व महिलाओं का सम्मान करने की सीख दें।
सामाजिक परिवेश के साथ बदलना होगा सिलेबस
डॉ. खन्ना ने कहा कि दुष्कर्म की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए स्कूलों में बच्चों को सेक्स एजुकेशन दी जानी चाहिए। सामाजिक परिवेश के साथ सिलेबस में बदलाव करना चाहिए। वहीं, वर्चुअल दुनिया के जाल में फंसकर कई बार बच्चे अज्ञानता में ही अपराध की राह पर चल पड़ते हैं इसलिए उन्हें सही ज्ञान देने की आवश्यकता है।
ऐसे मामलों में एनकाउंटर से नहीं होगा समाधान
सेवानिवृत्त जज एसएन तिवारी ने कहा कि हैदराबाद मामले में पुलिस एनकाउंटर को किसी भी सूरत में आदर्श नहीं माना जा सकता। क्योंकि एनकाउंटर से दुष्कर्म जैसी घटनाएं रोकी नहीं जा सकती। न्यायिक प्रक्रिया में ही वो ताकत है जो दूध का दूध और पानी का पानी कर सकती है। यदि पुलिस समय रहते दुष्कर्म के मामलों में उचित जांच पूरी कर साक्ष्य व गवाहों को कोर्ट में पेश कर दें और कोर्ट की समय सीमा निर्धारित कर दी जाए तो इससे काफी हद ऐसे मामलों में कमी आ सकती है।