Rohilkhand University : प्रोफेसर योगेंद्र सिंह बोले- पाकिस्तानी झंडा उठाने वाले आज उठा रहे तिरंगा Bareilly News
जो लोग पहले पाकिस्तान का झंडा लहराते थे आज उनके हाथों में तिरंगा है। यह अच्छी बात है लेकिन इससे राष्ट्रीयता का आकलन नहीं किया जा सकता।
जेएनएन, बरेली : जो लोग पहले पाकिस्तान का झंडा लहराते थे आज उनके हाथों में तिरंगा है। यह अच्छी बात है लेकिन इससे राष्ट्रीयता का आकलन नहीं किया जा सकता। सही मायने में राष्ट्रीयता समझ में आएगी जब ये लोग भारत की सांस्कृतिक विरासत से जुड़ेंगे। उसे दिल से स्वीकार करेंगे। राष्ट्र के प्रति सचेत और वफादार होंगे। यह बातें रविवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर योगेंद्र प्रताप सिंह ने कहीं।
वह रुहेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में मुख्य वक्ता के तौर पर बोल रहे थे। इसका विषय ‘मुस्लिम कवियों में राष्ट्रीय चेतना : रहीम, रसखान और नजीर अकबराबादी’ रहा। देश के कई हिस्सों में पाकिस्तान का झंडा लहराने वाले युवाओं पर तंज कसते हुए प्रो. योगेंद्र ने खुलकर अपनी बातें रखीं। बोले, ऐसे लोगों को रहीम, रसखान और नजीर को पढ़ना चाहिए। उन्होंने राष्ट्रीयता को दो संदर्भ में विभाजित किया।
एक राजनीतिक और दूसरा सांस्कृतिक होता है। राजनीतिक संदर्भ में राष्ट्रीयता का हेरफेर हो सकता है लेकिन सही मायने में सांस्कृतिक राष्ट्रीयता ही आईना होती है। सैकड़ों मुस्लिम कवियों, साहित्यकारों के नाम इसमें शामिल है जिन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया। ऐसे महान व्यक्तित्व से आज देश को बांटने के लिए नारेबाजी करने वाले युवाओं को सीखना चाहिए।
इस दौरान विशिष्ट अतिथि राजस्थान विश्वविद्यालय की डॉ. मीता शर्मा, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की उप संपादक डॉ. अमिता दुबे ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. क्षमा पांडेय ने सेमिनार के दोनों दिन की आख्या प्रस्तुत की। प्रो. नलिनी श्रीवास्तव, डॉ. एके सिंह, डॉ. नीरज, डॉ. आभा, डॉ. रूचि, कामिनी, नेमपाल, हेमपुष्पा, जूली पाराशरी आदि ने सेमिनार आयोजन में अहम योगदान दिया।
कर्म से धर्म की पहचान हो : मुख्य अतिथि डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के पूर्व कुलपति प्रो. डीएन जौहर रहे। उन्होंने कहा कि किसी भी इंसान का धर्म,कर्म से पहचानना चाहिए। कहा, हर इंसान को कर्तव्य और अधिकार की जानकारी होनी चाहिए.. लेकिन आलम यह है कि लोग अधिकार जानना चाहते हैं लेकिन कर्तव्य भूल जाते हैं।
गुलामी ङोली पर नहीं टूटे : कुलपति प्रो. अनिल शुक्ला ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि हमारी देश की संस्कृति की मिठास यही है कि सैकड़ों वर्ष गुलामी ङोलने के बावजूद हम टूटे नहीं। आगे उन्होंने कहा कि आज हमारे देश को अशिक्षित लोगों से खतरा नहीं है बल्कि शिक्षित लोगों से है। पढ़े-लिखे लोग ही हमारे देश को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने की जरूरत है।