सत्ता की लालसा में राजनीति के मूल्य व मर्यादा भूले नेता
अटल युग कुछ और था। उसे वापस नहीं लाया जा सकता।
जागरण संवाददाता, बरेली : अटल युग कुछ और था। उसे वापस नहीं लाया जा सकता। वर्तमान राजनीति की अपरिपक्वता को दूर करने के लिए अटल युग एक नजीर की तरह है। उस दौर में वैचारिक प्रतिबद्धता के बावजूद समावेशी राजनीति थी। मतभेद थे, मनभेद नहीं थे। पक्ष व विपक्ष के बीच तमाम मुद्दों पर वैचारिक मतभिन्नता होती थी, व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप की बौछार नहीं होती थी। राष्ट्र हित पक्ष व विपक्ष से ऊपर रहता था। जबकि, वर्तमान में नेता मूल्य व मर्यादा की राजनीति भूल चुके हैं। राजनीति वोटों के आंकड़ों के मकड़जाल में उलझकर रह गई है। राजनीतिक दल कैसे भी सत्ता की लालसा में रहते हैं। आज के नेताओं के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आदर्श राजनीति के प्रेरक हैं। समावेशी राजनीति के अग्रदूत अटल जी से उन्हें भाषा व शब्दों पर नियंत्रण, लीक से हटकर कार्य करने की शैली और दूरदर्शिता सीखनी चाहिए। खासकर, राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखने की सोच। ये बातें सोमवार को 'क्या आज संभव है अटल जी के दौर वाली राजनीति और वर्तमान परिदृश्य' विषय पर आयोजित जागरण विमर्श कार्यक्रम में बरेली कॉलेज में राजनीति शास्त्र विभाग की डॉ. नीलम गुप्ता ने कहीं।
राष्ट्रीय पार्टी के रूप में भाजपा अटल जी की देन
वह बोलीं कि आजादी के संघर्ष के बाद लंबे समय तक देश में कांग्रेस पार्टी का एकाधिकार रहा। इसके बाद जनसंघ का गठन हुआ। उस समय कांग्रेस के समानांतर पार्टी खड़ी करने में बड़ी चुनौतियां आई, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सर्वग्राही छवि और समावेशी राजनेता वाले गुणों से पार्टी को जनता के बीच स्थापित किया। भाजपा का राष्ट्रीय पार्टी बनना अटल जी की ही देन है।
जनता के मर्म को जान डाली अटल युग की नींव
अटल कुशल कवि, पत्रकार, वक्ता और राजनेता थे। वैचारिक प्रतिबद्धता के बावजूद उन्होंने विरोधियों पर कभी व्यक्तिगत आक्षेप नहीं लगाएं। दलगत राजनीति से हटकर अलग शैली अपनाई। दूरदर्शी सोच, कठोर निर्णय लेने की क्षमता के साथ वह जनता के मर्म को जानते थे। उनमें लोगों को जोड़ने की कला थी। उन्हीं गुणों ने अटल युग की नींव डाली।
पक्ष व विपक्ष की राजनीति से राष्ट्रहित को रखा ऊपर
डॉ. गुप्ता ने कहा कि अटल जी राष्ट्र हित को पक्ष व विपक्ष की राजनीति से ऊपर रखते थे। इसलिए विपक्ष में होने के बावजूद नरसिंह राव सरकार की ओर से उन्हें भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता के रूप में जेनेवा भेजा गया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में ¨हदी में भाषण देकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत को स्थापित करने का प्रयास किया। देश में वह पक्ष व विपक्ष के नेता होते थे, लेकिन देश के बाहर भारत के नेता होते थे। भारत को विश्व गुरू के रूप में स्थापित करने के लिए सुरक्षा के क्षेत्र में परमाणु परीक्षण व तमाम आर्थिक प्रतिबद्धता के बावजूद विदेश नीति में परिवर्तन उनकी राष्ट्रहित वाली राजनीति को दर्शाते हैं।
ऐसे ही नहीं जुटा जनसैलाब
कई सालों से राजनीति से दूर रहने के बावजूद उनके निधन पर देश में जैसा जनसैलाब उमड़ा। वह उनके जनमानस का नेता होने और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने की सोच का ही नतीजा है। उनकी राष्ट्र हित वाली बातों में एक पाकीजगी थी, जो आज के नेताओं में नहीं दिखती। उन्होंने देश में पहली गैर कांग्रेसी गठबंधन सरकार बनाई और क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय आकांक्षाओं व हितों से जोड़ा। जबकि अब केवल सत्ता की लालसा में दलगत राजनीति होती है।