Pandit Ramprasad Bismil Jayanti: शहीद अशफाक उल्ला खान के राम थे काकोरी कांड के नायक पंडित बिस्मिल
1920 में बिस्मिल से अशफाक उल्ला खान की मुलाकात हुई। अपने बड़े भाई के साथ टाउन हाल स्थित आर्य समाज मंदिर में मिलने गए अशफाक तब से बिस्मिल के दोस्त बन गए।
शाहजहांपुर, जेएनएन। 11 जून 1897 को यहां जन्मे पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने 1925 में काकोरी कांड से वह गौरव गाथा लिखी, जिससे ब्रिटिश साम्राज्य हिल गया। मैनपुरी षड्यंत्र के बाद सुर्खियों में आये बिस्मिल आजादी आंदोलन के अगुवाकर के रूप में सामने आए। 1920 में बिस्मिल से अशफाक उल्ला खान की मुलाकात हुई। अपने बड़े भाई के साथ टाउन हाल स्थित आर्य समाज मंदिर में मिलने गए अशफाक तब से बिस्मिल के दोस्त बन गए। यह दास्तां काकोरी कांड के बाद इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गईं। दोनों अमर सपूतों की सांप्रदायिक सौहार्द की भी मिसाल है। बताते हैं कि एक बार अशफाक उल्ला खान बीमार हुए। उनके मुंह से राम राम का उच्चारण निकल रहा था। घर वाले परेशान हो गए। आर्य समाज मंदिर में आजादी आंदोलन की रणनीति के चलते स्वजन धर्म परिवर्तन की चिंता में पड़ गए। बिस्मिल से अशफाक को मिलवाने गए उनके बड़े भाई सब समझ गए। उन्होंने कहा कि अशफाक रामप्रसाद बिस्मिल को याद कर रहे। बिस्मिल के पहुंचने के बाद अशफाक की सेहत सुधरने लगी। दरअसल, बिस्मिल को राम और अज्ञात नाम से भी उनके जानने वाले बुलाते थे।
19 दिसंबर, 1927 को दी गई थी फांसी
सन् 1897 में आज के ही दिन यानी 11 जून को शाहजहांपुर जिले में खिरनी बाग मुहल्ले में माता मूलारानी और पिता मुरलीधर के पुत्र के रूप में जन्मे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर, 1927 को उन्हें गोरखपुर की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था।
गोरखपुर ने कर्ज चुकता हम फर्ज को भूले
गोरखपुर जेल में राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी हुई । गोरखपुर वासियों ने स्मारक बना कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी। बिस्मिल का जहां जन्म हुआ वहां के लोग संग्रहालय का निर्माण नहीं करा सके।
जयंती पर याद किया गया नमन
शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती पर शहर के खिरनीबाग स्थित बिस्मिल पार्क में डीएम इंद्र विक्रम सिंह व एसपी डॉ एस चिनप्पा ने प्रतिमा पर माल्यर्पण किया। इस मौके पर लोगों ने उनको नमन किया।