सौ साल पुराना 'दिवालिया' अधिनियम पढ़ रहे छात्र
बरेली (जेएनएन)। अक्सर सवाल उठते हैं, छात्र-छात्राओं की काबिलियत कम हो रही है। वे मौजूदा कंप्टीशन
बरेली (जेएनएन)। अक्सर सवाल उठते हैं, छात्र-छात्राओं की काबिलियत कम हो रही है। वे मौजूदा कंप्टीशन का सामना करने लायक नहीं हैं। नौकरी के लिए परीक्षा उनकी वश की बात नहीं..। सवाल बेशक लाजिमी हैं। कुछ हद तक क्षमताओं पर सवाल उठाने वाला भी, लेकिन सौ फीसद ठीकरा स्टूडेंट्स के ऊपर फोड़ना ठीक नहीं होगा। उच्च शिक्षा और उसके नतीजों के लिए मौजूदा हालात भी कम जिम्मेदार नहीं है। वो इसलिए क्योंकि जमाना टैक्स के सबसे अपडेट वर्जन जीएसटी पर चल रहा है और रुहेलखंड विश्वविद्यालय के रुटीन कोर्स वैट पढ़ा रहे हैं..। नतीजा, रुविवि के छात्र नेट-जेआरएफ क्वालिफाई नहीं कर पाते हैं।
ऐसे समझें हालात
काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी और मैथ्स की नेट-जेआरएफ परीक्षा कराता है। इसीलिए देश के अमूमन सभी बड़े विश्वविद्यालयों में सीएसआइआर का सिलेबस पढ़ाया जाता है। जबकि रुहेलखंड विश्वविद्यालय में क्लासिकल कोर्स ही चल रहा है, जिसमें सीएसआइआर की 20 फीसद भी सामग्री नहीं है। यही हाल अन्य रुटीन कोर्स पर लागू होता है। सोचिये, जब सिलेबस ही आउट ऑफ कोर्स होगा तो सवालों का जवाब प्रतिभागी देंगे कैसे..?
पढ़ रहे वर्षो पुराना कोर्स
बरेली कॉलेज में जूलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र सिंह कहते हैं कि करीब 18 साल पहले सिलेबस बदला गया था। अब जो सिलेबस है, वो आउटडेटेड है। वर्षो से यूजीसी का यूनिफाइड पाठ्यक्रम ही पढ़ाया जा रहा है। इसे बदलने की सख्त जरूरत है। वरना न तो छात्रों का भला होगा और न रुहेलखंड को भविष्य में अच्छे वैज्ञानिक, शिक्षक मिल पाएंगे। वहीं, कॉमर्स का सिलेबस वर्ष 2012 में संशोधित किया गया था। बीकॉम, एमकॉम में वर्ष 1909-1920 के दिवालिया कानून आज भी पढ़ाए जा रहे हैं, जबकि वर्ष 2017 में नया दिवालिया अधिनियम बन चुका है। इसके अलावा कॉमर्सियल लॉ में बिजनेस रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में कई नए लॉ आ चुके हैं। वैट हटाकर जीएसटी हो गया है। जीएसटी को भी कोर्स में शामिल करने की दरकार है।
हर साल की कोशिशें बेकार
जूलॉजी विभाग के डॉ. राजेंद्र सिंह कहते हैं कि अमूमन हर साल हम लोग पाठ्यक्रम बदलने का मुद्दा उठाते हैं। हर बार नजरंदाज कर दिया जाता है। क्लासिकल कोर्स से युवाओं का भविष्य गर्त में जा रहा है। विवि और सीनियर प्रोफेसर का फर्ज है कि वो इसे गंभीरता से लें और संशोधन कराएं।
प्रोफेशनल का अपडेट कोर्स
रुविवि में बीबीए, बीसीए, बीटेक, एमबीए, एप्लाइड कोर्स समेत अमूमन सभी प्रोफेशनल कोर्स का सिलेबस समय-समय पर बदलता रहता है। अकादमिक कोर्स के डीन, बोर्ड ऑफ स्टडीज कोर्स अपडेट करने की कसरत से जी चुराते रहते हैं।
मनोविज्ञान का बेसिक तक नहीं
रुविवि के बीए मनोविज्ञान कोर्स में पीजी के चैप्टर डाल दिए गए हैं, जबकि मन पढ़ने की बेसिक जानकारियां नहीं है। बरेली कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुविधा शर्मा कहती हैं कि विषय का दोहराव भी है। जैसे बीए प्रथम वर्ष में एक्सपेरिमेंटल मैथडोलॉजी एंड स्टेटिक्स विषय है। ये फाइनल में होना चाहिए। इसकी बजाए फाइनल में भी स्टेटिक्स है। बीए द्वितीय वर्ष में एबनॉर्मल साइकोलॉजी विषय है, जबकि ये प्रथम वर्ष में होना चाहिए।
शोध-शिक्षक बनने की मुश्किल राह
बरेली कॉलेज के प्रोफेसरों का यह मत है कि साइंस, लाइफ साइंस और अन्य परास्नातक कोर्स करने वाले अधिकांश छात्र नेट-जेआरएफ की तैयारी करते हैं। कुछ सिविल, एसएससी की तैयारी में जुटते हैं। उन्होंने जो स्नातक-परास्नातक में पढ़ा, नेट-जेआरएफ का सिलेबस उससे परे आता है।
कंप्टीशन की तैयार करने वाले छात्रों की बात
स्नातक और परास्नातक में जो कोर्स पढ़ा है। नेट का पेपर उससे काफी एडवांस आता है। पीजी का कोर्स कम से कम नेट की तर्ज पर बनाया जाए।
-शिवम सक्सेना, नेट अभ्यर्थी
प्रतियोगी परीक्षा के लायक विवि का कोर्स नहीं है। राजनीतिक विज्ञान में एमए किया है। मगर अब तैयारी कर रहा हूं, तो उसमें विदेश नीति समेत कई चीजें नई लग रही हैं, जो पहले कभी पढ़ाई ही नहीं गई। -नदीम, प्रतियोगी अभ्यर्थी
एमएससी केमिस्ट्री के बाद अब जेआरएफ की तैयारी कर रहा हूं। कोचिंग में एकदम नया सिलेबस पढ़ाया जा रहा है, जो हमने पीजी में नहीं पढ़ा था। इसलिए तैयारी में दोगुनी मेहनत करनी पड़ रही है।
-अभिषेक श्रीवास्तव, नेट अभ्यर्थी
पीजी का सिलेबस प्रैक्टिकल और रिसर्च आधारित बनाया जाए। इससे छात्रों को सीखने को मिलेगा, कंप्टीशन में भी वे बेहतर कर पाएंगे।
-मोहित शर्मा, शोध छात्र