जागरण ने जगाया तो दौडे अफसर, बच्चों को नशे की गिरफत से निकालेंगे
नशे की कैद में फंसे दर्जनों बेसहारा बच्चों को बचाने के लिए अफसरों का दिल पसीज गया है। सोमवार को इन बच्चों की तलाश कर स्वास्थ्य की जांच कराई जाएगी।
जेएनएन, बरेली : नशे की कैद में फंसे दर्जनों बेसहारा बच्चों को बचाने के लिए अफसरों का दिल पसीज गया है। दैनिक जागरण ने जगाया तो अफसर सोमवार सुबह को ही इन बच्चों की तलाश में निकल पडे। जंक्शन और आसपास के इलाके से दर्जनों बच्चों को अपने साथ ले गए। जिला अस्पताल पहुंचकर उनका मेडिकल कराया। चिकित्सकों से राय ली कि किस तरह उनका नशा छुडवाया जा सकता है। साथ ही उनके पुर्नवास के इंतजाम भी किए जा रहे।
वाइटनर का नशा करते हैं बच्चे
दैनिक जागरण ने रविवार के अंक में 'पहले नशे की लत लगाई, अब लूट रहे आबरू' शीर्षक से रेलवे जंक्शन पर मांगने वाले बेसहारा बच्चों का दर्द बयां किया था। दरअसल, जंक्शन पर करीब दर्जनभर से ज्यादा बच्चे हैं, जो अब सलोचन, वाइटनर के नशे की गिरफ्त में फंस चुके हैं। इसमें शामिल करीब 12-13 साल की दो किशोरियों का उन्हीं के साथ रहने वाले लड़के शारीरिक उत्पीड़न भी कर रहे हैं। रेलवे स्टेशन पर चाइल्ड हेल्पलाइन से जुड़े पदाधिकारियों ने इन बच्चों का सर्वे किया। उनके रहन-सहन, खान-पान और गतिविधियों पर नजर रखी। तब यह हकीकत सामने आई कि बच्चे न सिर्फ ड्रग्स लेते हैं बल्कि उनके साथ ज्यादती भी हो रही है। दैनिक जागरण ने इस पूरे घटनाक्रम को प्रमुखता से प्रकाशित किया।
डीएम ने कहा, बच्चों को ठिकाना दो
जागरण ने मामले को प्रमुखता प्रकाशित किया तो डीएम ने तत्काल संज्ञान लेते हुए बच्चों के बचाव का निर्देश जारी किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि बच्चों को बेहतर जिंदगी दिलाई जाएगी। जिला प्रशासन ने संबंधित अधिकारियों को जिला प्रशासन के समन्वय से बच्चों को चिन्हित कर उनका स्वास्थ्य परीक्षण कराने के निर्देश दिए हैं। वहीं, चाइल्ड हेल्पलाइन की ओर से भी बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण के निर्देश दिए गए हैं। हेल्पलाइन से जुड़े पदाधिकारियों ने रेलवे स्थित केंद्र के नुमाइंदों को बच्चों पर नजर रखने को कहा है। नजर नहीं आए बचपन बचाने वाले बेसहारा और अनाथ बच्चों के रहनुमा बनने वाले कथित सामाजिक संगठन नशे में फंसे बच्चों की मदद के लिए आगे नहीं आए हैं। जबकि आए दिन कोई न कोई संगठन फोटो खिंचाने के लिए किसी अनाथालय में केले या जूस का एक पैकेट बांटते नजर आ जाता है। रुविवि के प्रोफेसर एके जेटली कहते हैं कि यह बच्चों के बचाव के लिए सामाजिक संगठनों का आगे न होना उनके कथित सेवाभाव को दर्शाता है। -
क्या बोले अधिकारी
डीएम वीरेंद्र कुमार सिंह का कहना है कि बच्चों का नशा छुड़ाकर उनकी जिंदगी में बदलाव लाया जाएगा ताकि वे एक अच्छी जिदंगी जी सकें। इसके निर्देश दिए गए हैं।
डीपीओ नीता अहरवार ने कहा कि बच्चों के बचाव के लिए उन्हें तलाशकर मेडिकल जांच कराएंगे। इसके बाद इन बच्चों को शेल्टर होम में रखकर नशा छुड़ाया जाएगा।
बच्चियों से की जा रही अश्लीलता
किसी के मां-पिता की मौत हो गई तो किसी के ऊपर छोटे भाई बहन का पेट पालने की जिम्मेदारी है। दो वक्त की रोटी की तलाश में ये लड़कियां जंक्शन के पास पहुंचकर ऐसे दलदल में फंस गईं कि अब बाहर नहीं निकल पा रहीं। उन्हें नशे का आदी बना दिया गया। अब उनका शारीरिक शोषण भी किया जा रहा। हरकतें जब बर्दाश्त से बाहर हो गईं तो दो किशोरियों से अपना मुंह खोला।
रेलवे जंक्शन पर स्थापित चाइल्ड हेल्पलाइन केंद्र के पास घेरा बनाकर बैठे बच्चों करीब पांच बच्चे बैठे थे। ये सभी बच्चे नशे के दलदल में फंस चुके हैं। इन्हीं में 12-13 साल की दो किशोरियों ने जो आपबीती सुनाई, वह हैरान करने वाली थी। एक बोली कि बचपन में ही मां की मौत हो गई, कुछ दिन बाद रिक्शा चालक पिता ने दम तोड़ दिया। पांच साल की एक बहन और सात साल के भाई का पेट भरने के लिए भीख मांगने लगे। जंक्शन पर आई तो यहां साथ में मांगने-खाने वाले पांच-छह लड़कों ने एक दिन वाइटनर का नशा सुंघा दिया। धीरे-धीरे उसका आदी बनाया और अब वे शारीरिक शोषण करते हैं। पांच साल का भाई और बहन भी नशे के आदी हो चुके हैं। एक अन्य किशोरी ने भी ऐसी ही आपबीती बताई। बोली कि नशा करने या उन लड़कों की बात मानने से इन्कार करो तो वे मारपीट करते हैं। नशे के लिए वाइटनर मिलता कहां से है, तो बोलीं कि लत पड़ गई इसलिए बांसमंडी की दुकानों से खरीदकर लाते हैं। पानी में घोल बना लेते हैं। फिर इसमें कपड़ा भिगोकर सूंघते हैं।
पुनर्वास का नहीं कोई ठिकाना
मुस्तफानगर की एक किशोरी की मां घरों में बर्तन धोती हैं। उन्हें बेटी की फिक्र है। वे चाहती हैं कि कोई अनाथालय उसे रख ले। ताकि वह नशे और अनहोनी घटना से बच जाए।