लघु फिल्मों में मुखर हुए मौन के स्वर
कोरोना वायरस का प्रकोप मार्च तक देश में ऐसा फैला कि सब कुछ मानो थम सा गया। लोगों को सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा की। इस दौर में लोग घरों में रहकर भी सृजनात्मकता के जरिए सकारात्मक रहें और कोरोना के खिलाफ वैचारिक प्रतिबद्धता मजबूत हो कुछ इसी इरादे से बरेली आकाशवाणी केंद्र की प्रभारी मीनू खरे ने स्मार्टफोन के जरिए पाच मिनट की लघु फिल्म बनाने की प्रतियोगिता आयोजित की।
बरेली, अनुपम निशान्त: कोरोना वायरस का प्रकोप मार्च तक देश में ऐसा फैला कि सब कुछ मानो थम सा गया। लोगों को सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा की। इस दौर में लोग घरों में रहकर भी सृजनात्मकता के जरिए सकारात्मक रहें और कोरोना के खिलाफ वैचारिक प्रतिबद्धता मजबूत हो, कुछ इसी इरादे से बरेली आकाशवाणी केंद्र की प्रभारी मीनू खरे ने स्मार्टफोन के जरिए पाच मिनट की लघु फिल्म बनाने की प्रतियोगिता आयोजित की। उल्लास मल्टीमीडिया संस्था के माध्यम से उन्होंने फेसबुक पर इस संबंध में देशभर से प्रविष्टिया आमंत्रित कीं। कोविड-19 राष्ट्रीय मोबाइल शॉर्ट फिल्म मेकिंग प्रतियोगिता-2020 में देश के कई शहरों के कुछ रचनात्मक लोगों ने घर में रहकर ही लॉकडाउन के दौरान मन के भीतर उपजते मौन को स्वर दिया।
हाल ही में प्रतियोगिता के परिणाम घोषित किए गए। इसमें बरेली के डॉ. कामरान की फिल्म 'लॉकडाउन के 21 दिन' को प्रथम, गोरखपुर के राधेश्याम गुप्ता की फिल्म 'कोरोना हारेगा, इंडिया जीतेगा' को द्वितीय और गोरखपुर के ही अशोक महíष की फिल्म 'वर्क फ्रॉम होम' को तृतीय पुरस्कार के लिए चुना गया। बरेली के राजकीय यूनानी अस्पताल में मेडिकल अफसर पद पर तैनात डॉ. कामरान खान को किशोरावस्था से ही फोटोग्राफी का शौक रहा। वर्ष 2016 में हिमालय की श्रृंखलाओं की बेहतरीन फोटोग्राफी के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हो चुका है। वास्तविक जीवन में भी कोरोना से लोगों को बचाने में जुटे डॉ. कामरान ने अपनी फिल्म में लॉकडाउन के दौरान जीवन, प्रकृति, परिवार और समाज के संवेदनशील पहलुओं को दर्शाने का प्रयास किया। इसी तरह गोरखपुर में रहने वाले रेलवे में कार्यरत राधेश्याम गुप्ता ने अपनी फिल्म में वैश्विक महामारी के दौरान रिश्तों की गरमाहट, परस्पर मदद और मानसिक संबल की जरूरत को अभिव्यक्ति दी। गोरखपुर के ही रेलवे से अवकाशप्राप्त अशोक महíष ने हास्य-व्यंग्य पर केंद्रित फिल्म बनाई।
मन को उदात्त बनाती है सृजनात्मकता : मीनू खरे
प्रतियोगिता की आयोजक मीनू खरे कहती हैं कि सृजनात्मकता हमारी सोच को व्यापकता प्रदान करती है। मन को उदात्त बनाती है। लोग नकारात्मक सोच की गिरफ्त में न आएं और अपनी रचनात्मकता को नया आयाम दें, इसी सोच के साथ यह प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसके सार्थक परिणाम मिले। उन्होंने बताया कि निर्णायक मंडल में 'इश्कजादे' और 'बाटला हाउस' जैसी फिल्मों में काम कर चुके जाने-माने अभिनेता डॉ. अनिल रस्तोगी और विज्ञान प्रसार, नई दिल्ली के वैज्ञानिक अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स के आयोजक डॉ. निमिष कपूर थे। देश भर से आई प्रविष्टियों में से नौ फिल्में शॉर्टलिस्ट होकर फाइनल राउंड में गईं जिनमें से तीन प्रविष्टियों को विजेता घोषित किया गया।