सावधान : सस्ते रंग और साबुन बनाने वाले तेल से तैयार हो रहा सरसों का तेल... जानिए कैसे Bareilly News
चावल का तेल जिसका प्रयोग पहले साबुन बनाने में होता था अब उसी में सरसाें की कुछ मात्रा मिलाकर सरसों का तेल तैयार हो रहा है इसके लिए सस्ते और खराब रंग का भी इस्तेमाल होता है।
जेएनएन, बरेली : बदायूं में कथा के बाद भंडारे में भोजन खाने पर छह सौ लोगों की तबीयत बिगड़ने में तेल की गुणवत्ता संदेह के घेरे में आई है। बरेली से आसपास के जिलों में भी भारी मात्र में तेल की सप्लाई होती है। कच्चे तेल से खाद्य तेल में बदलने तक की प्रक्रिया में कई चीजों की मिलावट नुकसानदेह साबित हो रही है। कई बार तेल खाने लायक नहीं पाया गया है। तेल की बड़ी मंडी होने के कारण मंगलवार को पड़ताल की गई तो बड़ा राजफाश हुआ। कई दुकानों पर खुला तेल और रिफाइंड बिकता हुआ मिला। दुकानों में घटिया क्वालिटी का तेल बिक रहा था। खाद्य तेल बनाने की प्रक्रिया ही उसे नुकसानदायक बना रही है। बड़े ब्रांड को छोड़ दें तो तमाम लोकल ब्रांड के तेल बिक रहे हैं।
दो तरह से बनाया जा रहा खाद्य तेल : खाद्य तेल दो तरीकों से बनाया जा रहा है। एक में कच्चा तेल है। मलेशिया से आयातित यह तेल नेपाल के रास्ते देश में आता है। इसे नेपाली तेल भी कहते हैं। दूसरा सॉल्वेंट ऑयल यानी राइस ब्रॉन तेल, इससे भी खाद्य तेल बना रहे हैं। चावल का तेल पहले साबुन बनाने में प्रयोग होता था। दो तरह के कच्चे तेल में कुछ मात्र सरसों की मिलाकर खाद्य तेल बना रहे हैं।
वर्ष 2006 में आई नीति से बढ़ी मिलावट : देश में 2006 में खराब तेल से कई लोगों की मौत हुई थी। उस समय सरसों के तेल में मिलावट पाई गई थी। तब कंटीला (झाड़ी से निकला दाना) का तेल खाना बनाने के लिए लोग इस्तेमाल करने लगे। तमाम शोध के बाद तिलहन बोर्ड ने बिलैंडिंग पॉलिसी लागू की। यह नीति मिलावट रोकने के लिए थी। इसके तहत चावल, पॉम या अन्य तेल से खाद्य तेल बनाने की छूट दी गई। इसकी गुणवत्ता, मात्र के लिए मानक निर्धारित हुए। तब से राइस ब्रान, पॉम ऑयल बेस ऑयल के रूप में इस्तेमाल होने लगा।
सस्ता रंग तेल को बना रहा खतरनाक : कुछ बड़े लोगों ने बिलैंडिंग नीति को माना लेकिन तमाम तेल उत्पादक और छोटे व्यापारियों ने इसकी परवाह नहीं की। नियम यह था कि तैयार माल जांच के बाद ही बाजार में निकाला जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। कारोबारी घटिया बेस ऑयल के साथ ही उसमें खराब एसेंस, सस्ता रंग इस्तेमाल करने लगे। सस्ता रंग जो दस रुपये में मिल जाता है, वहीं ब्रांडेड की कीमत एक लाख रुपये है। पुराने कनस्तर में रखना। सोडा कास्टिक से कनस्तर साफ करना, कई दिनों तक तेल रखा रहने के कारण वह नुकसानदायक साबित हो रहा है। कई बार पानी मिलने से तेल की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
अधिकारी नहीं दे रहे ध्यान : तेल में मिलावट करने वालों को चिह्नित कर उन पर कार्रवाई करने का काम खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग का है, लेकिन कार्रवाई नहीं होती। पैकेजिंग एक्ट का पालन नहीं होता। खुले में तेल बिकता है। इसे रोकने के लिए बांट-माप विभाग भी कार्रवाई नहीं करता। सेंपल फेल होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती।
यहां गरीब तबका तेल लेने को आता है, इसलिए 95 रुपये किलो से लेकर 110 रुपये किलो तक का तेल रखना पड़ता है। - प्रदीप अग्रवाल, व्यापारी
सबसे ज्यादा मांग लोकल तेल की ही है। सस्ता होने के कारण कई लोग इसे ले जाते हैं। कभी कोई शिकायत नहीं मिली। - हरिओम अग्रवाल, व्यापारी
लंबे समय से तेल का व्यापार कर रहे हैं। फैक्ट्री से खरीदते हैं और बाजार में बेच देते हैं। वहां क्या बना रहे हैं, इसकी जानकारी नहीं। - अजय कुमार, व्यापारी
यह भ्रांति है कि तेल से कोई नुकसान है। नई नीति में एसेंस और रंग नहीं डाले जा रहे हैं। मानक पर ही तेल बनाया जाता है। - पीयूष खंडेलवाल, तेल कारोबारी
मिलावटी तेल के इस्तेमाल से एकाएक कोई नुकसान नहीं दिखाई देता। इसका लगातार इस्तेमाल करने से पेट, लिवर, किडनी समेत अन्य अंगों से संबंधित बीमारियां होने की संभावना है। - डॉ. वागीश वैश्य, वरिष्ठ फिजिशियन, जिला अस्पताल
घटतौली व मिलावट खोरी सामाजिक अपराध है। व्यापार मंडल हर बार यह अपील करता है कि कोई भी व्यापारी घटतौली न करे और न ही मिलावटी सामान बेचे। बावजूद इसके अगर कोई व्यापारी इन गतिविधियों में संलिप्त मिलेगा तो उसका नाम उजागर किया जाएगा।- राजेंद्र गुप्ता, प्रांतीय महामंत्री, उप्र. उद्योग व्यापार मंडल
तेल में मिलावट को लेकर अभियान पूर्व में चलते रहे हैं। नमूने लेकर विभाग इन्हें जांच के लिए संबंधित लैब में भेजता है। इनमें कई बार नमूने फेल मिले तो विभाग की ओर से कार्रवाई भी हुई है। कुछ मामले कोर्ट में भी लंबित हैं। बदायूं प्रकरण के बाद जिले में व्यापक स्तर पर तेल व अन्य खाद्य पदार्थो की जांच के लिए टीमें भेजी जाएंगी। आम जन भी कहीं खाद्य पदार्थ की खराब क्वालिटी पाते हैं तो सीधे विभाग में शिकायत कर सकते हैं।- धर्मराज मिश्र, जिला अभिहित अधिकारी, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन, बरेली