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मुहल्लानामा बजरिया इनायतगंज : एक बेटा बागी भी और जंग में मददगार Bareilly News

मुहल्लानामा-बजरिया इनायतगंज का बाजार। यहां के संस्थापक इनायत खां की शख्सियत गढ़ने में इतिहासकार अापस में बंट गए थे।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Mon, 08 Jul 2019 11:49 AM (IST)Updated: Tue, 09 Jul 2019 09:58 AM (IST)
मुहल्लानामा बजरिया इनायतगंज : एक बेटा बागी भी और जंग में मददगार Bareilly News
मुहल्लानामा बजरिया इनायतगंज : एक बेटा बागी भी और जंग में मददगार Bareilly News

बरेली [वसीम अख्तर] : वह दूसरे रुहेला सरदारों की तरह बहादुर थे, यह सही है। पिता पर जांनिसार थे या उनकी जान लेने पर अमादा हो गए और बगावत का परचम थाम लिया था, यह तय करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इसलिए क्योंकि इतिहासकारों ने इनायत खां के दो रूप सामने रखे हैं। एक यह कि जब पिता हाफिज रहमत खां के बारे में पानीपत से खबर आई कि जंग में घिर गए हैं तो सैनिकों की टुकड़ी लेकर इनायत खां उनकी मदद के लिए कूच कर गए।

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दूसरी किताब में लिखा गया कि उन्होंने पिता की गैर मौजूदगी में महल पर कब्जा करके दरवाजे बंद कर लिए थे। इन्हीं इनायत खां के नाम पर शहर में मुहल्ला बजरिया इनायत गंज की नींव पड़ी, जो पुराना शहर में कुतुब शाह की मजार के पास सड़क से शुरू होता है थोड़ा आगे जाकर जहां सड़क दो हिस्सों में बंटती है, वहीं खत्म हो जाता है। दूसरे मुहल्लों से अपेक्षाकृत छोटा है।

बादशाह ने जवाब सुनकर भेंट की शमशीर 

नवाबों-रजवाड़ों के किस्से पढ़ने वालों के लिए हमेशा ही दिलचस्पी का सबब रहे हैं। इतिहासकारों ने किताबों और रिसालों में इन्हें अपनी तरह से पेश किया है।

रुहेला सरदार हाफिज रहमत खां के बड़े बेटे इनायत खां के बारे में सय्यद अल्ताफ अली बरेलवी ने अपनी किताब ‘हयात-ए-हाफिज रहमत खां’ (1932 में प्रकाशित) के पृष्ठ संख्या 123 पर एक वाकिये का जिक्र किया है। बताया है कि हाफिज रहमत खां जब पानीपत की लड़ाई में हिस्सा लेने गए तो 14 बेटों में बड़े बेटे इनायत खां को बतौर अपना नायब बरेली में छोड़ गए थे।

पिता के जाने के बाद इनायत खां बेचैन हो गए। उनकी मदद और पानीपत की जंग में बहादुरी दिखाने के लिए 200 सैनिकों की टुकड़ी लेकर कूच कर गए। उन्हें पानीपत में देखकर हाफिज रहमत खां हैरान रह गए और खुशी का इजहार किया। दूसरे दिन दरबार-ए-बादशाही में पेश किया। वहां शाह दुर्रानी से मुलाकात कराई।

बादशाह ने सवाल किया कि ऐ इनायत खां तू पानीपत में अपने पिता की शान देखने आया है? जवाब मिला- पिता को देखने की चाहत थी लेकिन असल मकसद अफगानों की शर्म-ओ-आबरू को बचाना था। यह सुनकर बादशाह ने इनाम में शमशीर देकर पीठ भी थपथपाई थी।

300 सैनिकों पर बल पर कब्जाया किला

कमिश्नर कम स्टेट एडीटर ईशा बंसली जोशी ने 1965 के गजेटियर में इनायत खां के बारे में काफी कुछ लिखा है। पेज 60 पर उस किस्से का भी जिक्र है, जिसमें इनायत खां के पिता से बगावत करने की बात आई है। गजेटियर के मुताबिक हाफिज रहमत खां अपने दो भाइयों के बीच जायदाद को लेकर खड़े हुए विवाद को निपटाने के लिए आंवला गए थे।

उसी दौरान इनायत खां ने बगावत करके बरेली पर कब्जा कर लिया। यह पता लगने पर हाफिज रहमत खां वापस लौटे तो इनायत खां ने खुद को किले में बंद कर लिया। जब पिता ने फौज के साथ किला की घेराबंदी की तो इनायत खां वहां से 300 सैनिकों की टुकड़ी लेकर भाग निकले।

बाद में उन्हें गिरफ्तार करके शहर बदर कर दिया गया। तब वह फैजाबाद चले गए। गजेटियर में ही लिखा है कि 31 साल की उम्र में इनायत खां की मौत हो गई थी। मुहल्ला बजरिया इनायत गंज उन्हीं के नाम पर बसा है।

इस नतीजे पर पहुंचे इतिहास के मौजूदा जानकार
शाहीन रजा जैदी बताते हैं कि उस दौर का इतिहास लिखने वालों ने अपनी-अपनी तरह से लिखा है। जो जिससे प्रभावित था, उसने वही लिखा।

किसी नतीजे तक पहुंचने के लिए उस दौर में लिखी गई सभी किताबें पढ़ीं जाएं, तभी स्थिति साफ होगी। इतना तो तय है कि रजवाड़ो-नवाबों में गद्दी को लेकर आपसी खींचतान थी। हाफिज रहमत खां के दौर में भी ऐसा हुआ है।

अपने भाई मुहम्मद खां और बहरम खां को हाफिज रहमत खां ने एक ही जायदाद दे रखी थी। जिसके लिए वे आपस में अकसर लड़ते रहते थे। तब बीच में पड़कर हाफिज रहमत खां सुलह कराते थे।

बजरिया मतलब छोटा बाजार
यह मुहल्ला बाजार की शक्ल में है। बजरिया इनायत गंज नाम के अनुरूप यहां छोटा बाजार है। मुहल्ले में सड़क के दोनों तरफ पुरानी दुकानें हैं। वैद्य रामप्रकाश शर्मा की मिठाई दुकान, पोले जनरल स्टोर और गुप्ता आटा चक्की पूरे इलाके में मशहूर है। ये लोग भी इनायत खां के बारे में कुछ नहीं जानते। मुहल्ले में अन्य लोगों से भी किसी पुराने भवन का हवाला नहीं मिलता, जिससे इनायत खां के यहां आकर रहने की बात साबित हो। 

मुहल्ले का इतिहास बहुत पुराना

इस्लामिया इंटर कॉलेज से रिटायर मुहम्मद इसराइल बताते हैं कि मुहल्ले का इतिहास बहुत पुराना है। इसे जानने की कोई कोशिश नहीं की। बुजुर्गो से भी नहीं सुना कि इनायत खां इस मुहल्ले में कभी आकर रहे।

बड़े शख्स के नाम पर ही मुहल्लों के नाम 

आटा चक्की चलाने वाले नेतराम राठौर कहते हैं कि किसी न किसी बड़े शख्स के नाम पर ही मुहल्लों के नाम पड़े। पहले इस मुहल्ले में ज्यादातर सिंधी रहते थे, जो बाद में सिंधुनगर चले गए। यहां इनायत खां का कोई वंशज नहीं रहता।

पहली बार पता लगा 
सरदार जसवीर सिंह के बेटे परमजीत सिंह सोनू को इनायत खां के बारे में जानकारी नहीं है। बताने पर कहते हैं कि पहली बार पता लगा कि वह रुहेला सरदार हाफिज रहमत खां के बेटे थे। उन्हीं के नाम पर यह मुहल्ला है। 


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