सफल हुआ 'मेरा' प्रयास, अब मिलेगा सबको 'हक'
फर्स्ट पर्सन.. मैं, फरहत नकवी। हर लड़की की तरह सम्मान देने वाले पति और अच्छी ससुराल की चाह मेर
मैं, फरहत नकवी। हर लड़की की तरह सम्मान देने वाले पति और अच्छी ससुराल की चाह मेरे भी दिल में थी। 28 अप्रैल 2005 को निकाह हुआ। सब कुछ ठीक था। 20 साल की उम्र में एक बेटी को जन्म दिया तो मानो गुनाह हो गया। पति समेत सभी का रुख बदल गया। आए दिन मारपीट शुरू हो गई और वर्ष 2013 में बेटी के साथ घर से निकाल दिया गया। सुलह की कोशिशें बेकार रहीं। लेकिन मैंने हार नहीं मानी और हक के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया।
आसपास देखा तो मेरी जैसी पीड़ा सैकड़ों की थी। बस यहीं से तलाक पीड़िताओं और इनके जैसी ही महिलाओं के लिए आवाज उठाने का फैसला कर दो साल पहले 'मेरा हक फाउंडेशन' की नींव रखी। अब तक 14 महिलाओं को उनका हक दिला चुकी हूं और बचा जीवन भी इंसाफ दिलाने में समर्पित करने की इच्छा दिल में है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुझे अपनी और अपने जैसी और सैकड़ों तलाक पीड़िताओं की कोशिश सफल होती दिख रही है। अब सभी को उनका हक मिलेगा। मुझे उम्मीद है कि सरकार भी मामले में कठोर कानून बनवाकर उसे लागू करवाएगी। जिससे कुरान को तोड़ मरोड़कर अपने हिसाब से पेश कर औरतों की जिंदगी दोजख करने वालों पर शिकंजा कसा जा सके।
मुफ्त न्याय दिलाने के लिए भाई को भी जोड़ा साथ
केस की पैरवी में हजारों खर्च भी होते हैं। ससुराल से निकाली पीड़िताएं कई बार अपने जेवर बेचकर अदा करती हैं या फिर दर-दर हाथ फैलाकर वकील की फीस का इंतजाम करती हैं। यही सोचकर मैंने हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले भाई अधिवक्ता मुख्तार वसीम को भी संगठन से जोड़ा। अब संगठन में मुफ्त कानूनी सलाह दी जाती है। अदालत में होने वाली दिक्कतों को भी दूर किया जाता है।
मुस्लिम नहीं हर पीड़ित महिला के लिए खुला घर
पहले मेरी हक दिलाने की लड़ाई केवल मुस्लिम महिलाओं तक ही सीमित थी। लेकिन पिता एएच नकवी की परवरिश ने महज मुस्लिम ही नहीं बल्कि हर पीड़ित महिला के लिए लड़ने की आवाज दी। आज एक दर्जन से ज्यादा हिंदू, सिख महिलाओं को भी संगठन के जरिये उनका हक दिलाने की कोशिश में जुटी हूं।
भाई केंद्रीय मंत्री लेकिन नहीं लिया नाम का सहारा
मेरे पिता ने जो तालीम दी, उसने मुझे खुद के पैरों पर खड़ा होना सिखाया था। शायद यही वजह रही कि केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद भाई मुख्तार अब्बास नकवी के नाम का मैंने कभी सहारा नहीं लिया। खुद की लड़ाई लड़ने के दौरान भी अकेले ही कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटे। शायद यही वजह है कि दूसरी तलाक पीड़ित महिलाओं के हक के लिए मजबूती से खड़ी होने में कामयाब रही हूं। मेरी कोशिश भी यही रही है कि सालों से अलग परिवारों को कोर्ट और तलाक से दूर कर वापस उनका मिलन कराया जा सके। ताकि जो मेरी पीड़ा रही है वह किसी दूसरे की न हो। क्योंकि काउंसलिंग के दौरान कई बार यह सामने आया है कि मसले छोटी-छोटी बातों पर बढ़ते हैं और सही सलाह की कमी के चलते तलाक में तब्दील हो जाते हैं।
(मेरा हक फाउंडेशन की अध्यक्ष फरहत नकवी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जागरण संवाददाता दीपेंद्र प्रताप सिंह को बताया)