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    आरटीआइ से सामने आया महापौर और नगर आयुक्त का झूठ

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 04 Jun 2018 04:59 PM (IST)

    रजऊ परसपुर स्थित सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट शिफ्ट करने और बहगुलपुर में जमीन का सच जनसूचना अधिकार के जरिये सामने आ गया है।

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    आरटीआइ से सामने आया महापौर और नगर आयुक्त का झूठ

    बरेली (जेएनएन)। रजऊ परसपुर स्थित सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट शिफ्ट करने और बहगुलपुर में जमीन खरीद का 'सच' आखिरकार जनसूचना अधिकार (आरटीआइ) के जरिये सामने आ गया है। नगर निगम ने इन्वर्टिस विश्वविद्यालय के बगल में स्थित प्लांट शिफ्ट करने के लिए कोई भी भूमि नहीं खरीदी है। न ही इस बाबत शासन या नगर निगम ने किसी भी व्यक्ति या संस्था से समझौता नहीं किया है। इस खुलासे के बाद महापौर डॉ. उमेश गौतम और नगर आयुक्त की साख पर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है। यही वजह है, इस मामले को भी सुप्रीम कोर्ट में दायर मुकदमे में लगाने की तैयारी की जा रही है।

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    -शिकायत पर हुए जांच के आदेश : कैंट निवासी सत्यवीर सिंह ने बीते दिनों रजऊ परसपुर में ही सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट चलाने और हवाई उड़ानों में बर्ड हिट के खतरे की चिंता जताते हुए केंद्र व राज्य सरकार के अफसरों को शिकायती पत्र भेजा था। गलत तरीके प्लांट शिफ्ट कराने व बहगुलपुर में भूमि खरीद की शिकायत की थी। इस पर केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने नगर आयुक्त की जांच के निर्देश दिए। डीएम ने जांच शासन स्तर पर करवाने को पत्र प्रमुख सचिव को भेजा है। इधर, सत्यवीर ने फरवरी में नगर निगम में भी सूचना के अधिकार के तहत दर्जन भर बिंदुओं पर सूचनाएं मांगी थी। जन सूचना अधिकारी ने सूचनाएं उपलब्ध करा दी हैं, जिसमें बड़ा खुलासा हुआ है।

    -मांगी गई थी ये सूचनाएं : प्लांट की स्थापना में भारत सरकार, प्रदेश सरकार व नगर निगम प्रशासन की कितनी धनराशि व्यय हुई है।

    - प्लांट कब से कब तक चलाया गया व किसी तिथि से किन कारणों से बंद है।

    - प्लांट से संबंधित क्या कोई वाद भारत के किसी न्यायालय में लंबित है, तो इस वाद की स्थिति क्या है।

    - प्लांट को उप्र. शासन द्वारा अन्यत्र कही शिफ्ट करने के संबंध में नगर निगम से कोई पत्राचार हुआ है।

    - क्या किसी व्यक्ति या संस्था ने प्लांट को शिफ्ट करने के लिए कोई आवेदन, प्रस्ताव शासन, नगर निगम प्रशासन को दिया है। इस प्रस्ताव पर निगम प्रशासन ने क्या कार्रवाई की है।

    निगम ने दिए जवाब

    - प्लांट की स्थापना में भारत सरकार द्वारा 13.86 करोड़ रुपये जल निगम के सीएनडीएस को मिले थे।

    - प्लांट 31 मार्च 2013 को शुरू हुआ जो एनजीटी के आदेश पर 18 जुलाई 2013 को बंद हो गया। फिर सर्वोच्च न्यायालय के 13 सितंबर के आदेश में दोबारा शुरू हुआ, जो एनजीटी के आदेश पर 30 मई 2014 से पूरी तरह बंद है।

    - प्लांट से संबंधित कोई विवाद भारत के किसी न्यायालय में लंबित है।

    - प्लांट को उप्र शासन द्वारा अन्यत्र कही शिफ्ट करने के संबंध में कोई पत्राचार नहीं हुआ है।

    - प्लांट को शिफ्ट करने के लिए इन्वर्टिस यूनिवर्सिटी द्वारा प्रस्ताव दिया गया।

    - उप्र शासन या नगर निगम, प्रशासन द्वारा प्लांट को अन्यत्र शिफ्ट करने के लिए किसी व्यक्ति एवं संस्था से कोई समझौता नहीं हुआ है।

    - प्लांट को शिफ्ट करने के लिए कोई भूमि क्रय नहीं की गई है।

    महापौर और नगर आयुक्त के खुले झूठ

    - केंद्र सरकार की रकम से प्लांट बनने के बावजूद उसे शिफ्ट करने की जानकारी नहीं भेजी गई।

    - प्लांट से संबंधित विवाद न्यायालय में लंबित है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से केस वापस लेने की बात निगम प्रशासन कर रहा है।

    - निगम प्रशासन राज्यपाल के आदेश पर बहगुलपुर में भूमि खरीद बता रहा है, जबकि प्लांट शिफ्ट करने के बाबत शासन से कोई पत्राचार हुआ ही नहीं।

    - बहगुलपुर में भूमि निगम को दान में मिलने की बात कही जा रही है, जबकि निगम से किसी भी संस्था या व्यक्ति का समझौता नहीं हुआ है।

    - निगम रजऊ परसपुर से प्लांट को बहगुलपुर में शिफ्ट कर रहा है, जबकि प्लांट शिफ्ट करने के लिए कोई भूमि की खरीद नहीं की गई है। -पर्यावरण अभियंता ने जाते-जाते किया बड़ा खुलासा : प्लांट से मामला संबंधित होने के कारण नगर निगम के सहायक जनसूचना अधिकारी ने पर्यावरण अभियंता उत्तम कुमार से सूचना मांगी। पर्यावरण अभियंता का भी नगर निगम से तबादला हो गया है। उन्होंने जाने से पहले बड़ा खुलासा किया। मांगी गई सूचनाओं के अतिरिक्त एक बिंदु जोड़ते हुए सूचना दी है, जो सबसे महत्वपूर्ण है। अंतिम बिंदु में उन्होंने प्लांट को शिफ्ट करने के लिए कोई भूमि क्रय नहीं करने की सूचना दी है।