बलिदानी रोशन सिंह के बारे में नहीं सुनी होगी यह बात, अंग्रेजों पर लगाते थे ऐसा निशाना
काकोरी एक्शन में अपने प्राणों का बलिदान देने वाले ठाकुर रोशन सिंह की शनिवार को जयंती है। 22 जनवरी 1892 को रोशन ङ्क्षसह का जन्म खुदागंज के नवादा दरोवस्त गांव में ठाकुर जंगी सिंह व कौशल्य देवी के घर हुआ था।
जेएनएन, शाहजहांपुर : काकोरी एक्शन में अपने प्राणों का बलिदान देने वाले ठाकुर रोशन ङ्क्षसह की शनिवार को जयंती है। 22 जनवरी 1892 को रोशन ङ्क्षसह का जन्म खुदागंज के नवादा दरोवस्त गांव में ठाकुर जंगी ङ्क्षसह व कौशल्य देवी के घर हुआ था। रोशन ङ्क्षसह महात्मा गांधी से प्रभावित रोशन ने असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। फरवरी 1922 में बरेली के टाउनहाल में आंदोलन के दौरान चल रहे धरने पर जब पुलिस ने लाठीचार्ज किया। तो वहां मौजूद रोशन सिंह पुलिसकर्मियों से भिड़ गए। उनके हाथ से बंदूक छीन ली। इस बीच गोली चल गई। कोई घायल नहीं हुआ, पर रोशन को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। उनका बलिदान आज भी क्षेत्र के युवाओं को प्रेरणा देता है।
जेल से छूटने के बाद वह पं. राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए। बिस्मिल के ङ्क्षहदुस्तान रिपब्लिकन दल के रोशन ङ्क्षसह अचूक निशानेबाज थे। जिले के प्रमुख इतिहासकार बताते हैं कि पड़ोसी जिले पीलीभीत के बिचपुरी में हुई क्रांतिकारियों की डकैती में पुलिस को उनकी तलाश थी। नौ अगस्त 1925 को काकोरी एक्शन में भी उनका नाम आया, जिसके बाद गिरफ्तार कर उन्हें इलाहाबाद की नैनी जेल में भेजा गया। जहां 19 दिसंबर 1927 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। रोशन ङ्क्षसह के प्रपौद्ध केपी ङ्क्षसह व अन्य स्वजन के परिवार अब भी गांव में रहते हैं। क्रांतिकारी के इस गांव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी आ चुके हैं। उनकी जयंती पर गांव वाले अपने स्तर से कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। बलिदानी ठाकुर रोशन सिंह की वीरगाथाओं का साझा किया जाता है।