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आंखों को बीमार बना रही नीली एलईडी

लाइट एमिटिंग डायोड (एलईडी) की रोशनी जितनी चमकदार है उतनी ही खतरनाक भी है। खासकर नीली रोशनी फेंकने वाली एलईडी।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Mon, 20 May 2019 12:37 AM (IST)Updated: Mon, 20 May 2019 10:00 AM (IST)
आंखों को बीमार बना रही नीली एलईडी
आंखों को बीमार बना रही नीली एलईडी

जेएनएन, बरेली : लाइट एमिटिंग डायोड (एलईडी) की रोशनी जितनी चमकदार है, उतनी ही खतरनाक भी है। खासकर नीली रोशनी फेंकने वाली एलईडी। उसकी रोशनी रेटीना को बेहद नुकसान पहुंचा सकती है। फ्रांस की सरकारी स्वास्थ्य निगरानी संस्थान (एएनएसईएस) की हालिया रिपोर्ट कह रह कि बिजली की खपत में ज्यादा रोशनी देने वाली एलईडी आंखों की रोशनी छीन रही है।

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फ्रांस की सरकारी स्वास्थ्य निगरानी संस्थान (एएनएसईएस) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक एलईडी लाइट की नीली रोशनी से आंख के रेटीना को इतना नुकसान पहुंचा सकती है कि इलाज से भी वह ठीक नहीं की जा सकती हैं। इसके साथ ही नीली रोशनी वाली एलईडी प्राकृतिक रूप से आने वाली नींद पर भी खराब असर डाल रही है। 

नीली एलईडी से निकलते ज्यादा फोटान

दैनिक जागरण ने इस बाबत बरेली कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर डॉ.सुंदर सिंह से बात की। डॉ.सुंदर के मुताबिक, एलईडी से सात रंग की लाइट निकलती हैं। इसमें लाल और हरे रंग की वेब लेंथ ज्यादा होती है। इससे फोटान की एनर्जी कम निकलती है। वहीं, नीली रोशनी वाली एलईडी की वेब लेंथ सबसे कम होती है। इस वजह से फोटान की एनर्जी ज्यादा निकलती है। यही हमारी आंखों की रेटिना में कोशिकाओं को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं।

मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी में ब्लू एलईडी

खास बात कि जो ब्लू एलईडी हमारे लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक है वही हमारे आसपास सबसे ज्यादा है। मसलन, एलईडी टीवी, डेस्कटॉप की एलईडी स्क्रीन, लैपटॉप और यहां तक कि मोबाइल सभी में ब्लू एलईडी ही है। चूंकि, हम इनके बेहद करीब और आंखों का सीधा फोकस होता है। ऐसे में फोटान एनर्जी आंखों की रेटीना को सीधे प्रभावित करती हैं। हां, एक राहत की बात है कि एलईडी बल्व, ट्यूबलाइट की सफेद रोशनी कम नुकसानदायक है। चूंकि, इन पर सीधा फोकस भी नहीं होता। 

बीस मिनट बाद डालना शुरू करती असर

विशेषज्ञ बताते हैं कि एक 60 वाट का साधारण बल्व 17 घंटे जलाने पर एक किलोवाट बिजली की खपत होती है। वहीं, करीब तीन वाट का एलईडी बल्व एक किलोवाट बिजली से 333 घंटे जलाया जा सकता है। यही वजह है कि एलईडी की डिमांड देश-दुनिया में तेजी से बढ़ी है। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक, नीली एलईडी करीब 20 मिनट बाद से अपना असर शुरू कर देती है। चूंकि, फिलहाल ऊर्जा खपत बचाने के लिहाज से एलईडी से बेहतर विकल्प हमारे पास नहीं है।

यूं कर सकते बचाव 

- एलईडी उपकरण जैसे टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर स्क्रीन पर लगातार काम नहीं करें। 

- स्मार्ट फोन, एलईडी कंप्यूटर स्क्रीन आदि को पंद्रह से बीस मिनट में कुछ देर को बंद कर दें। 

- एलईडी उपकरणों से पर्याप्त दूरी बनाकर रखें।

- बीच-बीच में सामान्य पानी से आंखों को धोएं। 

- एलईडी बल्व या ट्यूबलाइट को एकटक ना देखें। 

क्या कहते हैं आंकड़े 

- नगर निगम क्षेत्र में लगी हैं 22,429 एलईडी

- 110 वाट, 70 वाट और 35 वाट की हैं स्ट्रीट लाइट

- पहले शहर में लगी सोडियम 70, 110 और 250 वाट की थीं।

- साल में औसतन 11,500 एलईडी टीवी की बिक्री।

- करीब 2 लाख स्मार्ट फोन एक साल में खरीदते शहरवासी।

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