मेजर साहब ने हिटलर का ऑफर ठुकराया, अब खिलाड़ी 'नीलाम'
जागरण संवाददाता, बरेली : हॉकी के जादूगर के रूप में दुनिया भर में विख्यात पिता (मेजर ध्यानचंद) का
जागरण संवाददाता, बरेली : हॉकी के जादूगर के रूप में दुनिया भर में विख्यात पिता (मेजर ध्यानचंद) का खेल देखकर हिटलर ने उन्हें कई गुना ज्यादा दौलत और सेना में पद का लालच देकर जर्मनी से खेलने को कहा था। लेकिन वो देश प्रेम का जज्बा ही था, जिसके चलते पिता ने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया। आज जब आइपीएल जैसे खेलों में खिलाड़ियों को महज पैसे के लिए नीलाम होते हुए देखता हूं तो लगता है कि इनमें जमीन से जुड़ाव और प्रेम कहां से आएगा। शायद इसीलिए डोपिंग, फिक्सिंग जैसी बात सामने आने लगी हैं।
मेजर ध्यानचंद के बड़े बेटे अशोक ध्यानचंद ने दैनिक जागरण से बात करते हुए आज के समय में खेलों की स्थिति और अन्य कई मुद्दों पर बात साझा की। वे शहर में आयोजित एक निजी संस्थान के कार्यक्रम में शरीक होने के लिए आए थे। बातचीत के प्रमुख अंश..
पिता ने खुद देख ली थी हॉकी की दुर्दशा
वर्ष 1956 में पद्म भूषण पदक विजेता मेजर ध्यानचंद ने अपनी जिंदगी में ही हॉकी की दुर्दशा देखनी शुरू कर दी थी। अशोक बताते हैं कि शायद इसीलिए उन्होंने विश्वस्तरीय खिलाड़ी होने के बावजूद अपने बेटों को हॉकी से दूर रखने की भरपूर कोशिश की। हाथ में हॉकी दिखने पर बेहिसाब डांटते। हालांकि पिता की जिंदगी से प्रेरित बच्चे हॉकी खेले।
कई वित्तमंत्री ले चुके फाइल, पर भारत रत्न दूर
मेजर ध्यानचंद को अभी तक देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न न मिलने की टीस उनके बेटों के चेहरे पर साफ दिखती है। अशोक कहते हैं कि कांग्रेस सरकार हो या भाजपा की, खेल मंत्रियों के पास कई बार फाइल पहुंचाई। कुछ मौकों पर खेल मंत्रियों ने खुद मांगी। तीन दिन पहले ही मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने भी फाइल ली। अब तक हर बार भारत रत्न दूर ही रहा है।
.. तो सचिन होते सबसे बड़े खिलाड़ी
महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलने के बाबत कहते हैं कि वह वाकई योग्य हैं। लेकिन उनसे पहले हक मेजर ध्यानचंद का था। काश कि सचिन खिलाड़ी होने के नाते इस हक की बात खुद उठाते तो वाकई सबसे बड़े खिलाड़ी बन जाते।
सीमित लोगों तक ही सिमटे संसाधन
देश में खेलों की स्थिति पर अशोक ध्यानचंद कहते हैं कि क्रिकेट को छोड़ दें तो महज टॉप-50 को ही सही संसाधन मिलते हैं। बाकी सभी खेलों में खिलाड़ी पेट ही नहीं भर पाते हैं। जबकि विदेशों में बचपन से ही संसाधन मुहैया होते हैं। फिलहाल सुशील कुमार जैसे कुछ खिलाड़ी ही जी-तोड़ मेहनत करते हैं।
कॉमनवेल्थ में पदक अच्छी बात, पर मंजिल दूर
दो बार ओलंपिक, तीन एशियाड और चार हॉकी वर्ल्ड कप में टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके अशोक बताते हैं कि कॉमनवेल्थ में पदक अच्छी बात है। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि कुछ ही प्रतिस्पर्धा स्तरीय रही हैं। फिलहाल वैश्विक स्तर पर पदक और नाम की मंजिल अभी दूर है।