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Jagran Special : बरेली में भी है बनारस का महागिरजाघर... पढ़िए ये खास रिपोर्ट Bareilly news

समाजिक समरसता और सौहार्द की उर्वर धरा है बरेली। इसकी माटी में शहर की हर दिशा में नाथ मंदिर स्थापित हैं तो पूरी दुनिया में मशहूर आला हजरत की दरगाह भी यहां है।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Sat, 21 Dec 2019 05:25 PM (IST)Updated: Sat, 21 Dec 2019 05:43 PM (IST)
Jagran Special : बरेली में भी है बनारस का महागिरजाघर... पढ़िए ये खास रिपोर्ट Bareilly news
Jagran Special : बरेली में भी है बनारस का महागिरजाघर... पढ़िए ये खास रिपोर्ट Bareilly news

शशांक अग्रवाल, बरेली : समाजिक समरसता और सौहार्द की उर्वर धरा है बरेली। इसकी माटी में शहर की हर दिशा में नाथ मंदिर स्थापित हैं तो पूरी दुनिया में मशहूर आला हजरत की दरगाह भी यहां है। ऐसे ही यूरोपीय स्थापत्य और वास्तुकला को अपनी दर-ओ-दीवार में नक्श किए हैं शहर में स्थापित विभिन्न गिरजाघर। यह चर्च ब्रितानी हुकूमत के साक्षी हैं। डेढ़ शताब्दी से अधिक समय से रोमन और इंडो-गॉथिक वास्तुकला की खासियत समेटे चर्च आज भी शान से खड़े हैं। क्रिसमस करीब है तो यह सजने-संवरने लगे हैं। इन चर्चो की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा को बताती ये खास रिपोर्ट । 

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नुकीली मीनारें हैं फ्रिविल बैप्टिस्ट चर्च की पहचान

कैंट इलाके में १८३८ में फ्रिविल बप्टिस्ट चर्च की स्थापना हुई थी। यह शहर का सबसे पुराना चर्च है। चर्च के पादरी सुनील सी लाल बताते हैं कि लाल ईंटों से टस्कन वाह्य सज्जा पर निर्माण के वक्त विशेष ध्यान दिया गया था। नुकीली मीनारें और हवादार हॉल चर्च की खासियत हैं। पहले-पहल कोलकाता से बुलाए गए ब्रिटिश बिशप डैनियल विल्सन को प्रार्थना का जिम्मा सौंपा गया। कुछ वर्षो बाद देश की आजादी के लिए बिगुल बजा। ३१ मई, १८५७ को क्रांतिकारियों ने चर्च में आग लगा दी।

तब चर्च तो खंडहर बन गया लेकिन किसी तरह चर्च में रखी कुर्सियां बच गईं। तब ब्रिटिश सेना को हथियारों के साथ चर्च में आने की इजाजत दी गई। इसके बाद राइफल रखने के लिए कुर्सियों के पीछे ऊपरी और निचले हिस्से में खांचे बनाए गए। ईसाई समुदाय ने एक साल मेहनत कर इसका जीर्णोद्धार किया। १८५८ में जीर्णोद्धार के बाद इसे नया नाम एंग्लिकन चर्च मिला। १९८९ में चर्च ऑफ नार्थ इंडिया की आगरा डायसस ने इस चर्च को लाइसेंस दिया, तब से इस चर्च को विल बैपटिस्ट चर्च ऑफ इंडिया के नाम से पहचाना जाता है।

इंडो-गॉथिक शैली की मिसाल सेंट स्टीफन चर्च

कैंट में स्थित इस चर्च की खासियत इसकी दर-ओ-दीवार, बुर्ज और कंगूरे हैं। इंडो-गॉथिक शैली में बने प्राचीन चर्च का फैलाव काफी बड़े भूभाग में है। पादरी अमन प्रसाद ने बताया कि कार्यकारी इंजीनियर कैप्टन ह्यूम ने सात जनवरी १८६१ में चर्च की आधारशिला रखी। दीवारें पांच फीट मोटी हैं। एबोनी लकड़ी की कुर्सियां और खिड़कियां घनी नक्काशीदार हैं। संगमरमर से बने पल्पिट और बपतिस्मा फांट आज भी अपनी भव्यता से लकदक हैं।

इंग्लैंड के आर्किटेक्ट ने भारतीय स्थापत्य और गॉथिक शैली के संगम से इसका निर्माण पूरा किया। प्रभु यीशु के प्रमुख शिष्य स्टीफन के नाम पर चर्च का नाम रखा गया। तत्कालीन ब्रिटिश सेना के कैप्टन रेव डब्ल्यूजी कोवी ने २५ दिसंबर १८६२ को चर्च में पहली सर्विस की। उसी दिन पहली शादी भी हुई थी।

पाइप आर्गन व पियानो के साथ होती है प्रार्थना : चर्च के प्रमुख स्थल पर रखा करीब १५० वर्ष पुराना पाइप आर्गन पूरे सूबे में अपनी तरह का अनूठा है। चर्च में ६६ कुर्सियां हैं, जबकि एक साथ करीब एक हजार लोग प्रार्थना कर सकते हैं।

प्रोटेस्टेंट शैली की मिसाल क्राइस्ट मेथोडिस्ट चर्च

वर्ष १८५६ में अमेरिका से मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च ने भारत में मिशन शुरू किया। पादरी सुनील के मसीह ने बताया कि जब विलियम बटलर अमेरिका से आए, उन्होंने अवध और रुहेलखंड में बरेली को चर्च निर्माण के लिए चुना। हालांकि निर्माण कार्य प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत होने के चलते बाधित हो गया। इसके बाद १८७० में पुन: चर्च की स्थापना के लिए वलियम बटलर ने मेथोडिस्ट चर्च इन सदर्न एशिया नाम की संस्था बनाई। प्रोटेस्टेंट शैली में चर्च का निर्माण किया गया। चर्च में वेल टॉवर से मुख्य प्रवेश द्वार बना। उसी वर्ष निर्माण पूरा होने के बाद चर्च का नाम क्राइस्ट मैथोडिस्ट चर्च रखा गया।

बेहद खास है सेंट माइकल एंड ऑल एंजिल चर्च 

शुरुआत में यह चर्च कविगंज चर्च कहलाता था। पादरी अमन अभिषेक प्रसाद ने बताया कि १८६२ में पादरी विल्यिम गार्डन कॉवी ने यहां पहली प्रार्थना कराई थी। चर्च का निर्माण एंग्लिकन शैली में कराया गया, जिसमें पवित्र क्रास का निशान पूरब दिशा की ओर होता है। सुरक्षा के लिहाज से मोटी दीवारें और खपरैल से छत बनाई गई। तब चर्च के चारों ओर घना जंगल था। मसीह समुदाय की मान्यता है कि जंगल में स्वर्गदूत का वास करते हैं। इसी आधार पर चर्च का नाम सेंट माइकल एंड ऑल एंजिल्स चर्च रखा गया।

रोमन व आधुनिक का संगम है सेंट अल्फॉन्सस महागिरजाघर

१८६८ में बना सेंट अल्फॉन्सस महागिरजाघर है जो अपनी ऐतिहासिकता के लिए जाना जाता है। समय के साथ यह खंडहर हो गया था जिसका कुछ साल पहले पुनर्निर्माण कराया गया। पादरी हेराल्ड डि कून्हा ने बताया कि यह शहर का ऐसा एकलौता महागिरजाघर है जहां प्रभु यीशु पवित्र क्रास पर विराजमान हैं। ३१ मई २००८ को तत्कालीन बिशप एंथनी फर्नाडीस ने जीर्णोद्धार की नींव रखी। बनारस में स्थित सेंट मेरीज महागिरजाघर की हूबहू प्रति बनाई गई।

२० अप्रैल २०१० को यह चर्च पुन: बनकर तैयार हो गया। रोमन कैथोलिक के साथ ही आधुनिक यूरोपीय शैली में बने इस महागिरजाघर की सबसे बड़ी खासियत इसके हॉल के ऊपर बना पक्का लिंटर है, जिसपर विशालकाय पंखा टंगा है। खिड़कियों पर लगे कांच पर संतों के चित्र उकेरे गए हैं तो दरवाजों पर प्रभु यीशु की छवि बनाई गई है। दीवारों पर ईसा मसीह के संदेश लिखे हैं। इसके बराबर में एक वचन वाटिका और माता मरियम की विशेष मूर्ति बनी हुई है।


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